बिहार के अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट पर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच कांटे की टक्कर कहा जा रहा था, लेकिन जिस तरह से रिजल्ट आया उससे यही लगता है कि परिणाम एकतरफा रहा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय बन गई थी तो वहीं तेजस्वी यादव की ख्वाहिश यहां से जीत हासिल कर बड़े नेता के रूप में उभरने की थी जिसमें वह कामयाब हो गए.
जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में 24 राउंड तक चली मतगणना के बाद आरजेडी उम्मीदवार शहनवाज आलम ने बड़ी जीत हासिल कर ली है. शाहनवाज ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी जेडीयू के मुर्शीद आलम को 41,224 मतों के अंतर से हराया. शाहनवाज को 81,240 जबकि मुर्शीद को 40,016 मत हासिल हुए.
हालांकि यहां पर शुरुआती दौर में कांटे की टक्कर नजर आ रही थी. कभी जेडीयू का उम्मीदवार आगे जा रहा था तो कभी आरजेडी का. लेकिन कुछ दौर के बाद हालात बदलते चले गए और आरजेडी अपनी स्थिति मजबूत करता चला गया.
जोकीहाट विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में 53 प्रतिशत मतदान हुआ. यहां से विधायक सरफराज आलम के पिछले दिनों अररिया संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने जाने के बाद इस्तीफा देने से यह सीट खाली हो गई थी. यह सीट 2005 से लगातार चार बार जेडीयू के पास रही है.
2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के टिकट पर जोकीहाट विधानसभा सीट से सरफराज विजयी हुए थे. लेकिन बाद में वह अपने पिता और अररिया से राजद सांसद मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली संसदीय सीट से चुनाव लड़ने के लिए आरजेडी में शामिल हो गए थे और सांसद चुन लिए गए.जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में इस बार कुल नौ प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे थे. यहां पर करीब 2.70 लाख मतदाताओं ने सोमवार को मतदान में हिस्सा लिया था.
इस उपचुनाव में सांसद सरफराज के भाई शाहनवाज आलम आरजेडी के टिकट पर महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर उतरे थे जबकि जेडीयू के मोहम्मद मुर्शीद आलम एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर मैदान पर थे.
इनके अलावा मधेपुरा से आरजेडी से निष्कासित सांसद पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार पार्टी के उम्मीदवार गौसुल आजम भी ताल ठोंक रहे थे.इस चुनाव को जेडीयू और आरजेडी दोनों के लिए प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा था. सीएम नीतीश कुमार ने भी अपने प्रत्याशी का जमकर प्रचार किया जबकि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी यहां अपना जोर लगाया. हालांकि नीतीश इस बार कोई कमाल नहीं कर सके.
वहीं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान यहां सांप्रदायिकता का मुद्दा उठाया था. यह मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र है और राज्य की दोनों बड़ी पार्टियों ने यहां से जीत के लिए जमकर मेहनत की थी. तेजस्वी के लिए यहां पर मिली जीत का मतलब यह है कि पार्टी में ना केवल उनका कद बढ़ गया बल्कि यह संदेश भी गया कि वे नीतीश को टक्कर दे सकते हैं, जिसका फायदा उन्हें 2019 लोकसभा चुनाव में मिल सकता है.