वित्तीय प्रबंधन के मामले में बिहार एक सर्वेक्षण में पिछड़े राज्यों में अग्रणी बनकर उभरा है. एसोचैम के इस सर्वेक्षण के मुताबिक टैक्स और गैर कर राजस्व के मामले में बिहार ने सर्वोच्च विकास दर क्रमश: 66 फीसदी और 284 फीसदी हासिल किया है.
2011-12 के दौरान टैक्स से होने वाली आय 12,600 करोड़ थी, जो 2013-14 के दौरान 20,900 करोड़ हो गई. वहीं 2011-12 के दौरान गैर कर से होने वाली आय 890 करोड़ थी, जो 2013-14 के दौरान बढ़कर 3,400 करोड़ हो गई.
स्टेट फायनांस कनवर्जेंस-2 के अध्ययन के मुताबिक, 2006-12 के बीच सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 13.13 फीसदी मिडियन के साथ बिहार पारंपरिक रूप से पिछड़े राज्यों का अगुवा बनकर उभरा.
बिहार एसोचैम परिषद के सह-अध्यक्ष आरएल खेतान ने कहा, 'बिहार ने अर्थव्यवस्था को जमीनी स्तर पर बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण सड़कों, कृषि विकास, शिक्षा और लोक स्वास्थ्य में प्रभावी ढंग से निवेश किया.'
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत के साथ उन्होंने गुरुवार को पटना में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान अध्ययन को जारी किया.
अध्ययन के मुताबिक, 'राज्य स्तर पर मूल्य संवर्धित कर (वैट) लाने से राज्य के राजस्व में इजाफा हुआ. हालांकि प्रारंभ में थोड़ी परेशानियां जरूर आईं. अब यह राज्य उच्च आय वाले राज्यों जैसी विकास दर की ओर अग्रसर है.'
राज्य की प्रति व्यक्ति आय की सालाना विकास दर 1980-93 के दौरान 1.1 फीसदी थी, जो 1993-2004 के दौरान बढ़कर 1.7 फीसदी हो गई, जबकि 2004-13 के दौरान 7.2 फीसदी हो गई.
एसोचैम इकोनॉमी रिसर्च ब्यूरो के मुताबिक, यह बिहार का दृढ़ संकल्प ही है, जिसके बल पर उसने बिना खनिज संपदा के विकास के बेहतरीन आंकड़ों को छुआ है.
2012-13 में बिहार के राज्य सकल घरेलू उत्पाद को पांच अंक बढ़ाकर 14.48 फीसदी किया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि इस राज्य ने विकास के लिए कृषि की जगह निर्माण और सेवा पर अधिक ध्यान दिया है. इसके अलावा, राज्य में 2009-10 के दौरान गरीबी 53.8 फीसदी थी, जो 2011-12 के दौरान घटकर 33.7 फीसदी हो गई, जो अभी भी हालांकि राष्ट्रीय औसत से अधिक है. अध्ययन के अनुसार, देश में उच्च आय वाले राज्य लगातार विकास कर रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि निम्न आय वाले राज्य पीछे हैं. वे भी लगातार बेहतर कर रहे हैं.