फिलहाल बिहार के सियासी हालात ही वह फैक्टर हैं, जो बीजेपी के लिए दिल्ली में मिले दर्द का मरहम साबित हो रहा है. मांझी और नीतीश के झगड़े का पूरा लुत्फ बीजेपी उठा रही है. उसकी कोशिश है कि इस झगड़े का उसे जितना भी फायदा मिल सके, ले ले. बिहार के इस खेल में बीजेपी ही ऐसी पार्टी है जिसके पास मौके ही मौके हैं.
पहला मौका: बीजेपी को तो बस इसी बात का इंतजार है कि मांझी और नीतीश में से कोई भी विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाए. ऐसे में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगेगा जो बीजेपी के लिए सबसे फायदेमंद होगा.
दूसरा मौका: मांझी जेडीयू को जितना ज्यादा नुकसान पहुंचा सकें, बीजेपी को फायदा होगा. बीजेपी चाह रही है कि ये खेल अपने क्लाइमेक्स पर पहुंचे. वैसे बीजेपी का एक धड़ा मांझी के पक्ष में वोट देकर सरकार को बाहर से सपोर्ट देने की वकालत कर रहा है. बीजेपी नेता खुले तौर पर सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि उनका यह विकल्प खुला है.
तीसरा मौका: मांझी के बहुमत न साबित कर पाने की स्थिति में बीजेपी इस रणनीति पर विचार कर रही है कि उन्हें अपनी अलग पार्टी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. अगर मांझी अपनी पार्टी बना लेते हैं तो बीजेपी को खुल कर आगे नहीं आना पड़ेगा. बीजेपी सवर्णों को नाराज नहीं करना चाहती. जो मांझी को पसंद नहीं करते.
चौथा मौका: इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा दबाव में हैं नीतीश कुमार. बीजेपी चाहेगी कि ये हालात यू ही बने रहें ताकि नीतीश गलतियों पर गलतियां करते जाएं. चाहे बयानों के जरिए या फिर अपने निर्णयों से. ताकि उन गलतियों को चुनाव में मुद्दे के रूप में भुनाने का मौका रहेगा.
पांचवा मौका: मांझी को विधानसभा में समर्थन देकर बड़े नुकसान के बजाए बीजेपी छोटे नुकसान को ज्यादा तवज्जो देगी. बीजेपी के लिए छोटा नुकसान यही है कि वह नीतीश कुमार की सरकार बन जाने दे और चुनावों में एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर का फायदा उठाए. वैसे बीजेपी को ये रास भी खूब आता है. पिछले चुनाव इस बात के गवाह हैं.