बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपनी कुर्सी बचाने के लिए अब फ्लोर टेस्ट देना है. राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने मांझी से कहा है कि वो 20 फरवरी को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करें. माना जा रहा है कि बजट सत्र से पहले राज्यपाल के अभिभाषण के बाद मांझी को ये मौका दिया गया है. मौजूदा राजनीतिक हालात में मुख्यमंत्री मांझी के पास अब कुछ ही ऑप्शन बचे हैं.
पहला मौका: मांझी के पास बेस्ट ऑप्शन तो यही है कि वो विधानसभा में अपना बहुमत साबित करें. मांझी को उम्मीद है कि बहुमत साबित करने में उन्हें बीजेपी की पूरी मदद मिलेगी. मांझी का दावा है कि जेडीयू और आरजेडी के 56 विधायकों के अलावा बीजेपी के 87 विधायक भी उनका साथ देंगे. अगर मांझी ऐसा कर लेते हैं तो आने वाले चुनाव में भी उन्हें इसका फायदा मिलेगा. वह दलितों का मसीहा बन कर उभरेंगे. तब मांझी लोगों को समझा सकते हैं कि सही रहते हुए भी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने की इसलिए कोशिश हो रही थी क्योंकि वह दलित समुदाय से आते हैं.
दूसरा मौका: विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाने की स्थिति में मांझी खुद की अलग पार्टी बना सकते हैं. अपनी नई पार्टी के बैनर तले वह चुनाव मैदान में अपने बूते उतर कर लोगों को अपनी बात समझा सकते हैं.
तीसरा मौका: मांझी अगर पार्टी बनाने के बाद भी चुनाव में अकेले नहीं उतरना चाहें तो उनके पास दूसरे विकल्प भी हैं. मांझी चाहें तो राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की तरह बीजेपी से चुनाव पूर्व गठजोड़ कर सकते हैं.
चौथा मौका: मांझी के लिए अगर चुनाव पूर्व गठजोड़ संभव न हो तो चुनाव बाद बीजेपी या जो भी बड़ी पार्टी हो उससे सरकार में भागीदारी के लिए मोलभाव कर सकते हैं – बशर्ते उनके पास इस लायक संख्या बल हो.
पांचवां मौका: मांझी के पास एक मुश्किल ऑप्शन और भी है. मांझी चाहें तो गिले-शिकवे भुलाकर नीतीश कुमार के साथ समझौता कर लें और मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर से नीतीश के हवाले कर दें. वो चाहें तो नीतीश की नई पारी में उप-मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री भी बन सकते हैं. या फिर, अपने सभी समर्थकों के लिए मंत्री पद की मांग रख सकते हैं. वैसे भी मांझी के साथ उन समर्थकों की तादाद ज्यादा है जो मंत्री बनना चाहते हैं.