सुशील कुमार मोदी, बिहार की राजनीति में बीजेपी का वो चेहरा रहे जिनकी बदौलत बीजेपी की सियासत दशकों तक चमकती रही. जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के साथ महागठबंधन की सरकार बना ली, तब उसे धूल तोड़कर वापस बीजेपी को सत्ता में लाने की धुरी सुशील मोदी ही रहे. तब उन्होंने लगातार एक के बाद एक 48 प्रेस कांफ्रेंस की और लालू यादव के परिवार को पूरी तरह एक्सपोज कर दिया. लेकिन बिहार में अब सुशील मोदी की राजनीतिक विरासत दरकती नजर आ रही है. हाल में बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने बिहार का दौरा किया. पार्टी के दो बड़े कार्यक्रम हुए, लेकिन पार्टी के पोस्टरों से जहां सुशील मोदी नदारद रहे, वहीं बैठकों में भी वो सबसे आगे नहीं दिखे. क्या सुशील मोदी बिहार की राजनीति में भुला दिए गए हैं?
दोनों बड़े आयोजनों से मोदी की दूरी
बिहार में हाल के दिनों में बीजेपी के दो बड़े कार्यक्रम हुए. पहला कार्यक्रम भोजपुर के जगदीशपुर में हुआ, जिसकी जिम्मेदारी गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय को सौंपी गई. इस कार्यक्रम से सुशील मोदी कहीं भी सीधे तौर पर नहीं जुड़े रहे. दूसरा कार्यक्रम 30 और 31 जुलाई को पटना में हुआ. जहां बीजेपी के सभी मोर्चों की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हुई. इसकी पूरी जिम्मेदारी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को दी गई. उन्होंने भी किसी और को आगे नहीं आने दिया और सुशील मोदी से जुड़े नेताओं को दूर ही रखा गया.
इतना ही नहीं इस दौरान पटना के पार्टी कार्यालय में राज्य के नेताओं की शीर्ष नेताओं के साथ एक बैठक हुई. इसमें भी सुशील मोदी सबसे पीछे बैठे दिख रहे हैं. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और बीजेपी की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहना है कि सुशील मोदी की स्थिति पार्टी में पहले की तरह नहीं है. उन्हें बिहार से बिल्कुल अलग करके रखने की प्लानिंग है. सुशील मोदी के दिल्ली जाने के बाद उनके गुट के नेता भी अब सक्रिय भूमिका में नहीं हैं.
वहीं कई सियासी जानकारों का मानना है कि बिहार में सुशील मोदी की भूमिका बीजेपी के नेता की कम, बल्कि नीतीश कुमार के सहयोगी के तौर पर ज्यादा हो गई थी. इसलिए भाजपा ने उनका कद घटा दिया है. वह बीजेपी के अन्य नेताओं को बढ़ने का मौका नहीं दे रहे थे. हालांकि प्रमोद दत्त ऐसा नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि सुशील मोदी बीजेपी के कद्दावर नेता आज भी हैं. अन्यथा उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा जाता. हालांकि ये बात सही है कि उनके दिल्ली जाने के बाद प्रदेश के अन्य बीजेपी नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के करीब आए हैं.
जब नीतीश के बचाव में उतरे सुशील मोदी
वहीं सियासी जानकारों का कहना है कि बिहार बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष से सुशील मोदी की दूरी का एक कारण नीतीश कुमार भी हैं. अग्निपथ योजना के मुद्दे और जायसवाल के घर पर हुए हमले के बाद जब वो बिहार सरकार पर हमलावर हुए, तो सुशील मोदी, नीतीश कुमार के बचाव में उतर आए. उन्होंने बयान देकर बिहार सरकार का बचाव किया. ये बात संजय जायसवाल को चुभ गई. उसके बाद से बिहार में सुशील मोदी गुट को वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष ने तरजीह देना बंद किया.