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शराबबंदी के बाद महंगे कपड़ों और शहद पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं बिहारवासी: रिसर्च

'एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान' (एडीआरआई) और सरकारी वित्त पोषित 'ज्ञान संस्थान विकास प्रबंधन संस्थान' (डीएमआई) द्वारा किए इन अध्ययनों में यह भी पाया गया कि 19 प्रतिशत परिवारों ने उन पैसों से नई संपत्ति ली जिसे वे पहले शराब पर खर्च किया करते थे. दोनों अध्ययन शराबबंदी के परिणामों का मूल्यांकन करने के लिए राज्य द्वारा कराए गए थे. अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू की गई थी.

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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार

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बिहार में शराबबंदी की वजह से, साल के शुरुआती 6 महीने में ही महंगी साड़ियों, शहद और चीज़ की बिक्री गढ़ गई है. नए अध्ययनों में पाया गया है कि मंहगी साड़ियों की बिक्री में 1751 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई हैं जबकि शहद की खपत 380 प्रतिशत और चीज़ की 200 प्रतिशत तक बढ़ी है.

'एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान' (एडीआरआई) और सरकारी वित्त पोषित 'ज्ञान संस्थान विकास प्रबंधन संस्थान' (डीएमआई) द्वारा किए इन अध्ययनों में यह भी पाया गया कि 19 प्रतिशत परिवारों ने उन पैसों से नई संपत्ति ली जिसे वे पहले शराब पर खर्च किया करते थे. दोनों अध्ययन शराबबंदी के परिणामों का मूल्यांकन करने के लिए राज्य द्वारा कराए गए थे. अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू की गई थी.

अध्ययन को आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के साथ इस साल विधानसभा के पटल पर रखा गया था. 'एडीआरआई' ने कॉम्फेड (बिहार स्टेट मिल्क को-ऑपरेटिव फेडरेशन) की दुकानों पर हुई खरीदारी का विश्लेषण किया. कॉम्फेड को 'सुधा' के नाम से जाना जाता है. इसमें पाया गया कि शहद की खपत में 380 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी और चीज़ की खपत में 200 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई.

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रिपोर्ट के अनुसार, दूध की बिक्री में 40 प्रतिशत, फ्लेवर्ड मिल्क की बिक्री में 28.4 प्रतिशत और लस्सी की बिक्री में 19.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.  'एडीआरआई' ने बिक्री कर राजस्व के आधार पर कुछ अन्य उत्पादकों के बिक्री संबंधी आकंड़े भी एकत्रित किए, जिसके अनुसार महंगी साड़ियों की बिक्री में 1751 प्रतिशत, महंगे कपड़े में 910 प्रतिशत, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ में 46 प्रतिशत, फर्नीचर में 20 प्रतिशत और खेल संबंधी सामान की बिक्री में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

'डीएमआई' द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में शराबबंदी के 'अर्थव्यवस्था पर पड़े ठोस प्रभाव' को भी रेखांकित किया गया. 'डीएमआई' अध्ययन 5 जिलों नवादा, पूर्णिया, समस्तीपुर, पश्चिम चम्पारण और कैमूर के 2,368 परिवारों से एकत्रित प्राथमिक आंकड़े पर आधारित है. इसमें कहा गया है कि शराबबंदी के बाद परिवारों द्वारा प्रति सप्ताह 1331 रुपए खर्च किए जाने की खबर है जबकि शराबबंदी से पहले हर सप्ताह खर्च की जाने वाली औसतन राशि 1005 रुपए थी.

अध्ययन के अनुसार, 'शराबबंदी के बाद, 19 प्रतिशत परिवारों ने नई संपत्ति खरीदी और पांच प्रतिशत ने अपने घरों की मरम्मत कराई.' इसके अनुसार, 58 प्रतिशत महिलाओं ने पाया कि उन्हें अधिक सम्मान दिया गया और परिवार संबंधी निर्णय लेने में भी उनकी भूमिका बेहतर रही. वहीं 22 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि केवल परिवार के मामलों में ही नहीं बल्कि गांव से जुडे़ मामलों में भी उनकी राय ली जा रही है.

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अपराध के मामलों में 'एडीआरआई' ने पाया कि अपहरण के मामलों में 66.6 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि हत्या के मामलों में 28.3 प्रतिशत और डकैती के मामलों में 2.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. वर्ष 2011 के आंकड़ों के आधार पर अप्रैल 2016 में जब शराबबंदी लागू हुई तब राज्य में कम से कम 44 लाख लोग शराब पीते थे.

'एडीआरआई' के अध्ययन के अनुसार इनमें से प्रत्येक व्यक्ति शराब पर प्रति माह कम से कम 1000 रुपए जरूर खर्च करता था. अध्ययन के अनुसार, इस अनुमान के आधार पर प्रत्येक महीने 440 करोड़ रुपए बचाए जा रहे हैं.

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