बिहार के अररिया लोकसभा और जहानाबाद व भभुआ विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 11 मार्च को मतदान होने हैं. राजनीतिक पार्टियां इस उपचुनाव को मिशन-2019 का सेमीफाइनल मानकर चल रही हैं. आरजेडी के साथ कांग्रेस अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद में जुट गई है. तो वहीं बीजेपी नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ गठबंधन करके दोबारा से जीत के फॉर्मूले को वापस पाना चाहती है.
बिहार की एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का सियासी विरासत संभाल रहे पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के लिए राजनीतिक परीक्षा माना जा रहा है. इसी के चलते उपचुनाव का मुकाबला जबरदस्त और दिलचस्प हो गया है.
इन तीन सीटों पर उपचुनाव
बता दें कि बिहार के अररिया लोकसभा सीट से आरजेडी सांसद रहे मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, जहानाबाद विधानसभा से आरजेडी विधायक मुंद्रिका सिंह यादव और भभुआ विधानसभा से बीजेपी विधायक आनंद भूषण पांडेय के निधन के बाद उपचुनाव हो रहे हैं. इस तरह तीनों सीटों में से दो पर आरजेडी का कब्जा था और एक पर बीजेपी का था.
अररिया में बीजेपी-आरजेडी का मुकाबला
अररिया लोकसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर प्रदीप कुमार सिंह को मैदान में उतारा है. वो 2014 में मोदी लहर के बावजूद आरजेडी के तस्लीमुद्दीन से हार गए थे. वहीं आरजेडी ने इस सीट पर तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को उम्मीदवार बनाया है. जबकि सरफराज आलम जेडीयू से विधायक थे. वे नीतीश कुमार का साथ छोड़कर अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए आरजेडी से उतरे हैं.
आरजेडी को एम-वाई समीकरण से उम्मीद
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले पिछले एनडीए शासन के दौरान अररिया सीट को 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 2014 में जब नीतीश बीजेपी से अलग हुए तो आरजेडी के तस्लीमुद्दीन जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थे. तस्लीमुद्दीन को 4 लाख 8 हजार मत मिले थे. वहीं बीजेपी के प्रदीप सिंह को 2 लाख 61 हजार वोट और जेडीयू उम्मीदवार को 2 लाख 22 हजार मत प्राप्त हुए थे.
अररिया में पिछले चुनाव के बीजेपी और जेडीयू को मतों को जोड़कर प्रदीप सिंह अपनी जीत तय मान रहे हैं. वहीं आरजेडी उम्मीदवार सरफराज आलम मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे जीतने की कवायद में जुटे हैं. इतना ही नहीं वो दलित और ओबीसी मतों से भी उम्मीद लगाए हुए हैं, क्योंकि सुखदेव पासवान ने बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी का दामन थामा है. इसके अलावा पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने भी एनडीए से अलग होकर आरजेडी के साथ दोस्ती की है. आरजेडी इसी समीकरण के सहारे बीजेपी को मात देने की जद्दोजहद कर रही है.
तेजस्वी-नीतीश की प्रतिष्ठा दांव पर
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल बना उपचुनाव बिहार की भविष्य की सियासी राह तय करेगा. तेजस्वी यादव के लिए उपचुनाव जीतकर अपने आपको नेता के रूप में साबित करने की चुनौती है. वहीं नीतीश कुमार के लिए दोबारा से अपने जादू को बरकरार रखने की परीक्षा को पास करना होगा.