पटना हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार को झटका देते हुए जातीय और आर्थिक जनगणना पर तत्काल प्रभाव से अंतरिम रोक लगा दी है. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वी चन्द्रन की बेंच अब इस मामले में 3 जुलाई को सुनवाई करेगी. कहना है कि जातिगत जनगणना राज्य सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है यानी संघ सूची का हिस्सा है. राज्य तभी यह जनगणना करवा सकता है, जब विधानसभा में इस संबंध में कानून पारित किया गया हो.
नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है. हालांकि, केंद्र लगातार इसका विरोध कर रही है.
बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया था. इसका काम जनवरी 2023 से शुरू हुआ था. अभी दूसरे चरण की जनगणना चल रही थी. ऐसा माना जा रहा था कि 15 मई को यह काम पूरा हो जाता, लेकिन अब हाईकोर्ट ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी है.
जातीय गणना को लेकर नीतीश सरकार ने हाई कोर्ट में बताया कि सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए सभी अपनी जाति बताने को आतुर रहते हैं. सरकार ने नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण न देने का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 फीसदी और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है. राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है. सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि इसलिए भी जातीय गणना जरूरी है.
आइए जानते हैं कि केंद्र में किसके पास जनगणना कराने का अधिकार है, संविधान में इसकी क्या व्यवस्था की गई है और किस आधार पर कहा जा रहा है कि जनगणना राज्य सरकारें नहीं करा सकतीं.
सेंसस इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक देश में दशकीय जनगणना कराने की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त के पास है. भारत में 1951 तक हर जनगणना के लिए जनगणना संगठन की स्थापना की गई थी. इसके बाद जनगणना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के तहत जगणना कराई जाने लगी. अधिनियम को बनाने के लिए तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल विधेयक पेश किया था.
विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना को संघ सूचा का विषय बना लिया गया. यह संविधान की सातवीं अनुसूची के क्रमांक 69 में सूचीबद्ध है.
जनगणना के दौरान जुटाई गई सूचना बहुत गोपनीय होती है. जनगणना अधिनियम, 1948 द्वारा इसकी गोपनीयता की गारंटी दी जाती है. कानून सार्वजनिक और जनगणना अधिकारियों दोनों के लिए गैर-अनुपालन या अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन पर दंड निर्दिष्ट करता है. यह न्यायालयों के लिए भी सुलभ नहीं होती है.
संविधान में बताया गया है कि केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार में कौन-कौन से विषय आते हैं. संविधान की सातवीं अनुसूची में इनकी शक्तियों के बारे में बताया गया है. इन शक्तियों को तीन भागों में बांटा गया- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची.
इनमें जिन विषयों को शामिल किया गया, उसमें केवल संसद को कानून बनाने का अधिकार है. इस शामिल किए गए विषयों में राष्ट्रीय महत्व पर विशेष ध्यान दिया गया है. इसमें राष्ट्रीय महत्व के 100 विषयों को शामिल किया गया है, जिसमें भारत की रक्षा, विदेशी मामले, वायु मार्ग, शेयर बाजार, बैंकिंग, बीमा, जनगणना, करेंसी और सिक्का, रेल, टेलीफोन आदि.
इस सूची में क्षेत्रीय महत्व पर विशेषों को शामिल किया गया है. इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमंडल के पास है. इसमें 61 विषयों को शामिल किया गया, जिनमें कोर्ट, पुलिस, लोक व्यवस्था, लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, भूमि सुधार, प्रति व्यक्ति कर, कृषि, गैस, रेलवे पुलिस, पंचायती राज, कारागार, वन, सड़क जैसे विषय शामिल हैं.
संविधान में कुछ ऐसे विषय भी हैं, जिन पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों कानून का निर्माण कर सकती हैं. अगर केंद्र किसी विषय पर कानून बना लेता है तो राज्य सरकार अनिवार्य रूप से उसे मानेगी. इस सूची में 52 विषयों को शामिल किया गया है. इन विषयों में आर्थिक नियोजन, योजना आयोग, जनसंख्या नियंत्रण व परिवार नियोजन, आपराधिक मामले, शिक्षा, बिजली, विवाह, विवाह-विच्छेद, गोद लेना, कारखाने, समाचार पत्र आदि को शामिल किया गया है.