बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने एक बार फिर विवादास्पद बयान दिया है. उन्होंने खुलेआम स्वीकार किया, 'हम राजनेता वोट की खातिर गरीबों के पैसे हड़पने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाते.' ...तो मोदी से हाथ मिलाने को तैयार: मांझी
इसके साथ ही जीतनराम मांझी ने मीडिया से अपील की कि वह हाशिए पर रहने वाले और गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं की राशि ठगने वाले सक्रिय ‘ताकतवर बिचौलियों’ को उजागर करे. राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर आयोजित ‘लोक व्यवहार में पारदर्शिता- मीडिया की भूमिका’ विषय एक संगोष्ठी में मांझी ने कहा, 'आज की राजनीति में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक आदि की बातों को कहकर हम अपना आधार बनाने का प्रयास करते हैं. यह भी सच है कि कहीं न कहीं इसका लाभ राजनीतिक बंधुओं को मिलता रहा है. इन समुदायों की आर्थिक स्थिति में जो परिवर्तन होना चाहिए था, वह अभी तक नहीं हो पाया है.' उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं कि इन समुदायों की स्थिति में परिवर्तन नहीं हुआ है. लेकिन परिवर्तन की जिस ट्रेन को 120 किलोमीटर की गति से चलना चाहिए था, वह 15 किलोमीटर की गति से चल रही है.
मांझी ने कहा कि यह स्थिति समाज के वैसे लोगों की है, जो हाशिए पर हैं और गरीब हैं और जिनका नाम लेकर योजनाएं बनाई जा रही हैं. उन्होंने कहा कि इसे उजागर करने में प्रेस की भूमिका होनी चाहिए, लेकिन कभी सेवा माने-जाने वाली पत्रकारिता आज ‘प्रोफेशन’ बन जाने के कारण वह भी वहां तक नहीं पहुंच पा रही है.
मांझी ने कहा कि हम राजनीतिक लोग जाति, धर्म और भाषा के नाम पर राजनीति कर रहे हैं और नाम गरीबों का लेते हैं. लेकिन उनके लिए हम काम उस तरह नहीं कर रहे, जिस तरह करना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह कहने में उन्हें कोई संकोच नहीं है.
मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि हाशिए पर रहने वाले और गरीबों के लिए हम काम करते भी हैं. पर एक ऐसा वर्ग है, जो कहीं न कहीं उनके लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजना की राशि डकार जाता है. उन्होंने कहा कि ऐसी योजनाओं का उन्हें मात्र 10 से 20 प्रतिशत ही लाभ मिल पाता है. मांझी ने इंदिरा आवास योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए उसे रोकने के लिए कई कदम उठाए जाने की बात कही. लेकिन फिर भी बिचौलियों द्वारा कोई न कोई रास्ता निकालकर लाभार्थियों से राशि ठगने की बात कही. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ गवाह व सबूत के अभाव में कार्रवाई नहीं हो पाती.
उन्होंने कहा, 'हम समाज में रहने वाले लोग निहित स्वार्थ के चलते ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. कहीं जात के नाम पर मुकर जाते हैं, कभी यह सोचते हैं कि यह हमारी जाति का है खा रहा तो खाने दो, तो कहीं भय से मुकर जाते हैं. हम जनप्रतिनिधि जात-पात के नाम पर वोट लेते हैं और जनता की बात को नकार देते हैं.'
मांझी ने कहा कि मीडिया देश का चौथा स्तंभ है और यदि यह मजबूत हो, तो न तो जनप्रतिनिधि व प्रशासन अपने कर्तव्यों से भाग नहीं सकता.