बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के बीच तल्खी खत्म हो गई है. सीएम ने स्पीकर के साथ एनेक्सी में बैठक कर सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए हैं. हालांकि, विपक्षी अभी भी मुख्यमंत्री से सदन में माफी की मांग कर रहा है. विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने विवाद का खात्मा शायराना अंदाज में किया है. वे सदन में 3 पन्नों में लिखी अपनी बात लेकर पहुंचे. उन्होंने कहा कि सारे शिकवे गिले भूला के जियो क्योंकि 'कदम मिलाकर चलना होगा'.
स्पीकर ने आगे कहा कि कहा जाता है इंसान को मृत्यु से नहीं बल्कि अपयश और बदनामी से डरना चाहिए. मैंने इसी मूल मंत्र को लेकर आज तक अपना व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन जीया है. हमेशा सिर झुकाकर लोगों से मिले प्यार और प्रतिष्ठा को ग्रहण किया है. खुले दिल से हंसते-हंसते चुनौतियों को स्वीकार किया है. मेरी अटल आस्था रही है. हमसे पहले या देश और देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था है. लोग आएंगे, चले जाएंगे. लेकिन यह देश बना रहेगा. अतः मेरे मन वचन और कर्म से इस महान देश की विराट प्रतिष्ठा पर ज़रा भी आंच नही आनी चाहिए.
विधानसभा स्पीकर के कथन में उनका दर्द साफ नजर आया, लेकिन उन्होंने आहत मन से ही सही पर सियासी रंजिश भुलाने की कोशिश की. विपक्ष अपनी मांग पर अड़ा है, लेकिन विधानसभा स्पीकर ने तल्खी वाले माहौल को शांत करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि बीते दिनों सदन में जो कुछ भी हुआ उसे इस पवित्र सदन की गरिमा के लिहाज से कतई उचित नहीं कहा जा सकता है. हमारा आज आने वाले कल का इतिहास है. और इतिहास की दृष्टि बड़ी और व्यापक होती है. हमारा आज का आचरण और व्यवहार जब इतिहास का हिस्सा बन जाता है. तो उसे सही या गलत साबित करने को हम मौजूद नहीं होते हैं. इसलिए हम वर्तमान व्यवहार को नियम कायदे और मर्यादा की परिसीमा में रखे, तो आने वाला समय हमें याद रखे ना रखे पर हम हमें नजर चुराने को मजबूर नहीं होना होगा.
बयान में नजर आया तंज
विधानसभा स्पीकर के वक्तव्यों में सियासी तंज की मात्रा भरपूर दिखी. उन्होंने इशारों-इशारों में ही सही. सदन को नसीहत के साथ-साथ जवाब देने की कोशिश की. उन्होंने आगे कहा कि राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जहां परस्पर विरोध हो सकता है ,विरोधियों को मित्र बनाने की कोशिश होती है, लेकिन यहां कोई शत्रु नहीं होता है, राजनीति के टेढ़े-मेढ़े रास्तों में फूल भी हैं, धूल भी है, गुलाब भी कीचड़ भी है, चंदन भी सुंदरता भी है, कुरूपता भी और इनमें से किसी से भी अपना दामन बचाकर नहीं चल सकते. हमें बुराई के कीचड़ पर पैर जमा कर फूल की तरह खिलना होता है. हमें फूल की तरह संघर्ष का धूप से जल कर अपने क्षेत्र और परिवेश को खूबसूरत बनाने का प्रयास करना पड़ता है.
जब हम यहां नहीं होंगे, हमारे निशां होंगे
विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि यह संकल्प लेकर आगे बढ़ना होगा कि जब हम यहां नहीं होंगे हमारे निशां यहां होंगे. तब नाम पद प्रतिष्ठा के बजाय वही हमारी पहचान होंगे. हम जिस महान सदन के अंग हैं. वहां की परंपरा हमें यही कहती है स्वीकार करने की हिम्मत और सुधार करने की नियत हो तो इंसान बहुत कुछ सीख सकता है. हमने देश में लोकतंत्र की जड़ें इतनी गहरी है, जिसे हवा के छोटे-मोटे झोंके हिला नहीं सकते यह व्यवस्था हमें सिखाती है कि बिना विरोध और बिना हिंसा के समाज की बेहतरी हो सकती है.
अटल बिहारी वाजपेयी की पंक्तियों का सहारा
अपने बयान के अंत में अध्यक्ष ने अटल बिहारी वाजपेयी की पंक्तियों का सहारा लिया और कहा कि सबको साथ लेकर चलने का मेरा संकल्प है, मैं अंत में अटल बिहारी वाजपेयी की चार पंक्तियों के साथ अपने भाषणा का अंत करना चाहूंगा. उन्होंने अटल जी पंक्ति दुहराते हुए कहा कि- उजियारे में अंधकार में. कल कछार में. बीच धार में. घोर घृणा में. पूत प्यार में. क्षणिक जीत में. दीर्घ हार में. जीवन के शत-शत आकर्षक अरमानों को ढलना होगा. कदम मिलाकर चलना होगा.