बिहार में सियासी बदलाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ खड़े हैं तो बीजेपी अकेले पड़ गई है. बीजेपी को बिहार में एक सहारे की जरूरत है तो चिराग पासवान को भी अपने सियासत को बचाए रखने की चुनौती है. चिराग को मोदी सरकार ने जेड कैटेगरी की वीआईपी सुरक्षा मुहैया कराई है. चिराग पासवान पर बीजेपी भले ही मेहरबान हो, लेकिन चाचा पशुपति पारस के साथ तालमेल कराना आसान नहीं है.
चाचा-भतीजे में अदावत
बता दें कि चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान एनडीए में थे और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. साल 2020 में रामविलास के निधन के बाद सियासी विरासत को लेकर भतीजे चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस आमने-सामने आ गए थे, जिसके चलते एलजेपी में दो फाड़ हो गए. चिराग को छोड़कर बाकी एलजेपी के सभी सांसद चाचा पशुपति पारस के साथ हो गए. इस तरह रामविलास के निधन से मोदी कैबिनेट में खाली हुई जगह पर पशुपति पारस केंद्रीय मंत्री बन गए और चिराग हाथ पर हाथ धरे बैठे रह गए.
एलजेपी में टूट के बाद चिराग पासवान पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गए थे. इसके बाद उन्होंने लोजपा (रामविलास) नाम से नई पार्टी बनाई. रामविलास केंद्रीय मंत्री थे तब दिल्ली में 12 जनपथ पर सरकारी बंगला हुआ करता था, लेकिन उनके निधन के बाद बंगला खाली करवा लिया. इस तरह चिराग को पार्टी, पद और बंगले से हाथ धोना पड़ा. चाचा पशुपति की बगावत के दौरान चिराग पासवान ने पीएम मोदी और अमित शाह से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन नीतीश कुमार के साथ होने के चलते बीजेपी से उन्हें सियासी तवज्जे नहीं मिल सकी.
बीजेपी-चिराग को एक दूसरे की जरूरत
बिहार के बदले राजनीतिक समीकरण और नीतीश कुमार से दोस्ती टूट जाने के बाद बीजेपी अकेले पड़ गई है तो एलजेपी के दो धड़ों के बंट जाने के बाद चिराग पासवान को सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. चिराग ये बात को भी जानते हैं कि बिहार में अकेले रहकर उन्हें सियासी रूप से सफलता नहीं मिलने वाली है. वहीं, बीजेपी भी इस बात को समझ रही है कि 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार को टक्कर देनी है तो एक मजबूत साथी का सहारा जरूरी है. चिराग के लिए जितनी जरूरत बीजेपी की है, उतनी ही जरूरत बीजेपी को चिराग पासवान की भी है.
पशुपति पारस से कैसे होगा समझौता
चिराग पासवान इस बात को जानते हैं कि उनके लिए महागठबंधन में कोई जगह नहीं बन सकती, लेकिन एनडीए में चाचा पशुपति पारस भी उनकी राह में एक रोड़ा है. चिराग का अपने चाचा पशुपति पारस से छत्तीस का आंकड़ा है. पशुपति पारस ने उनके हाथों से पार्टी और सांसद सब छीन लिया था. केंद्र में मंत्री पद भी चिराग पासवान के बजाय पशुपित पारस के हिस्से में आया था. पशुपित पारस भी चिराग पासवान को दोबारा अहमियत देने के पक्ष में नहीं हैं तो चिराग पासवान भी कई बार कह चुके हैं कि जब तक उनके चाचा एनडीए में हैं, वे एनडीए में शामिल नहीं होंगे.
हाजीपुर में पशुपति पारस ने साफ कह दिया है कि चिराग पासवान से कोई समझौता नहीं होगा. इसकी कोई उम्मीद ही नहीं है. कहा कि दल टूटता है तो जुट जाता है, लेकिन चिराग पासवान ने दिल तोड़ा है. पशुपति ने कहा कि आखिर क्या वजह थी कि बड़े भाई रामविलास पासवान की मौत के बाद पार्टी के साथ परिवार टूटा? पूरा बिहार जानता है कि हमारे तीनों भाई का कैसा रिश्ता था. पशुपति पारस ने पार्टी टूटने की वजह बताते हुए कहा कि चिराग पासवान को किसी पंडित ने बताया था कि तुम एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ोगे तो बिहार के मुख्यमंत्री बन जाओगे. चिराग पासवान ने पंडित की बात में आकर पार्टी और परिवार को तोड़ दिया. ऐसे में कैसे समझौता हो सकता है.
पासवान वोटर एक बड़ा फैक्टर
दरअसल, चिराग पासवान अब बीजेपी के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाने में जुट गए हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी चिराग पासवान ने एनडीए उम्मीदवारों का समर्थन किया था. वहीं, अब उपचुनाव में मोकामा, गोपालगंज और कुढ़नी सीट पर समर्थन किया है और चुनाव प्रचार किया. बीजेपी भी चिराग को साथ लाने की कोशिश कर रही है, लेकिन पशुपति पारस रजामंद नहीं हैं. बीजेपी चिराग के जरिए दलित वोटों को अपने पक्ष में जोड़ना चाहती है ताकि 2024 में महागठबंधन के लिए चुनौती खड़ी कर सके.
चिराग पासवान ने खुद को अपने पिता रामविलास पासवान के सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित किया है. बिहार में करीब 6 फीसदी पासवान मतदाता हैं जिन्हें एलजेपी का हार्ड कोर वोटर माना जाता है. यही वो वोटबैंक है जिसे महागठबंधन के जाति समीकरणों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी बिहार के उपचुनावों और भविष्य की सियासत को देखते हुए अपने साथ करना चाहती है, लेकिन चाचा पशुपति पारस रोड़ा बन रहे हैं. ऐसे में देखना है कि बीजेपी चाचा-भतीजे के बीच किस तरह से संतुलन बनाती है.