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बिहार में स्पीडी ट्रायल में कमी से चिंतित नीतीश कुमार

बिहार में स्पीडी ट्रायल की स्पीड में आई कमी से सीएम नीतीश कुमार खासा परेशान नजर आ रहे हैं.  पढ़ें पूरी खबर...

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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार

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बिहार में स्पीडी ट्रायल में कमी आने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चिन्ता जताई है. साल 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई थी, उस समय स्पीडी ट्रायल के जरिए सरकार ने रूल ऑफ लॉ को बिहार में कायम किया था. लेकिन इन 12 वर्षों में काफी कुछ बदल गया है. अब फिर से कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठने लगे हैं. ऐसे में उसके पीछे की वजह स्पीडी ट्रायल में कमी आने को बताया जा रहा है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इफेक्टिव इन्वेस्टिगेशन, स्पीडी ट्रायल एंड टाइमली जस्टिस पर आयोजित सेमिनार में कहा कि बिहार में रूल ऑफ लॉ अगर स्टैब्लिश हुआ तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका न्यायपालिका की होगी. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति लोगों का भरोसा और विश्वास कायम रहना चाहिए. इसके लिए लेजिस्लेटर, जुडिसियरी और एग्ज‍िक्यूटिव बॉडी अपनी तरह से अपनी-अपनी जिम्मेदारी पर निर्वहन करते हैं, जिससे यह संभव होता है.

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नीतीश कुमार ने कहा कि उस समय बिहार की जो स्थिति थी, सबको मालूम है. समय सीमा पर ट्रायल नहीं होता था. अपराधी छूट जाते थे. कानून का डर नहीं रहता था. हमने जल्द से जल्द मुकदमों के ट्रायल पर जोर दिया. खासकर आर्म्स एक्ट पर. क्योंकि इसमें दो-तीन ही गवाह होते थे और ज्यादातर सरकारी होते थे.

साल 2000 में जब राज्य का बंटवारा हुआ था तो हमारे कुछ अधिकारी झारखंड में चले गए. उनका कैडर बदल गया.

'मैंने कहा कि जितने भी विटनेश अधिकारी हैं, उनकी सूची अपडेट की जाए. इसके बाद इसका प्रभावकारी परिणाम सामने आया. ट्रायल तेजी से हुआ और समय सीमा के अंदर सजा मिली. रुटीन ट्रायल में भी तेजी आई.'

साल 2006 में कुल कनविक्ट्स की संख्या 6,839, साल 2007 में 9,853, साल 2008 में 12,007,  साल 2009 में 13,146 और साल 2010 में 14,311 रही, जो  शुरू में बढ़ते क्रम को दर्शा रहा है. लेकिन बाद में यह संख्या घटने लगी और साल 2016 में इसकी संख्या घटकर मात्र 5,508 हो गई.

आंकड़ों से साफ है कि साल 2006 से 2010 तक बिहार में कानून का राज स्थापित करने के लिए कितनी मेहनत की गई. इसका असर भी उस समय दिखने लगा था. नीतीश कुमार का वो पहला टर्म था और लोगों को लगने लगा था कि बिहार में अब कानून का राज स्थापित हो गया. लेकिन दूसरे टर्म में स्पीडी ट्रायल या अपराधियों को सजा दिलाने में कमी आने लगी.

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2010 में नीतीश कुमार और बीजेपी ने विधानसभा में प्रचंड जीत हासिल की थी और यह प्रचंड जीत ने ही एक तरह से बिहार में अपराधियों के खिलाफ हो रही गंभीर कार्रवाई को कमजोर कर दिया. फिर साल 2013 में नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गए. साल 2015 लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर चुनाव जीते और अब फिर से बीजेपी के साथ बिहार में सरकार है.

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