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नीतीश का तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने का फैसला? राजनीतिक मजबूरी या राजनीतिक चाल

नीतीश कुमार का तेजस्वी यादव को 2025 में मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने का फैसला उनकी कोई राजनीतिक मजबूरी है या फिर एक सोची-समझी राजनीतिक चाल? सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि आखिर नीतीश कुमार ने तेजस्वी के नाम की घोषणा पिछले सप्ताह कुढ़नी उपचुनाव में बीजेपी के हाथों मिली जबरदस्त शिकस्त के बाद ही क्यों किया?  

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नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब मंगलवार को ऐलान किया कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव करेंगे तो उनके इस ऐलान के साथ ही सवाल खड़े होने लगे कि जिन नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए कई बार पलटी मारी, पहले बीजेपी के साथ सरकार बनाई, फिर आरजेडी के साथ, उसके बाद फिर बीजेपी के साथ और अब एक बार फिर आरजेडी के साथ, उन्होंने आखिर कैसे इतनी आसानी के साथ 3 साल पहले ही यानी 2022 में ही 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा कर दी? 

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नीतीश कुमार की राजनीति को करीब से समझने वाले लोग जानते हैं कि नीतीश कुमार के काम करने का तरीका भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह बिल्कुल गुप्त रहता है और अंतिम समय तक केवल उन्हें ही पता होता है कि वह क्या करने वाले हैं. जनता दल यूनाइटेड में अगर कोई यह दावा करता हो कि वह नीतीश कुमार के फैसले को पहले से समझ चुका है तो यह केवल हवा हवाई बातें हैं. 

ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि नीतीश कुमार का तेजस्वी यादव को 2025 में मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने का फैसला उनकी कोई राजनीतिक मजबूरी है या फिर एक सोची-समझी राजनीतिक चाल? सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि आखिर नीतीश कुमार ने तेजस्वी के नाम की घोषणा पिछले सप्ताह कुढ़नी उपचुनाव में बीजेपी के हाथों मिली जबरदस्त शिकस्त के बाद ही क्यों किया?  

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नीतीश कुमार के इस घोषणा को ऐसे समझिए. दरअसल, देश में लोकसभा चुनाव के लिए अब केवल डेढ़ साल का वक्त बचा है. 2024 में होने वाले चुनाव के लिए नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पालकर बैठे हुए हैं. जाहिर सी बात है, नीतीश कुमार अगर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो इसके लिए यह जरूरी है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीते मगर कुढ़नी उपचुनाव में जो हुआ है उसने नीतीश कुमार को जबरदस्त झटका दिया है. 

2014 में जेडीयू को मिली थी 2 सीटें

याद कीजिए 2014 का लोकसभा चुनाव. नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गए थे जिसके बाद उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड लोकसभा चुनाव में केवल 2 सीट ही जीत पाई थी. अब नजर डालते हैं 2019 के लोकसभा चुनाव पर. इस वक्त जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी गठबंधन में चुनाव लड़ रही थी जिसके कारण नीतीश कुमार को इसका फायदा मिला और उनकी पार्टी की 2 सांसदों की पार्टी से बढ़कर 16 सांसदों वाली पार्टी बन गई. बात स्पष्ट है, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन होने का फायदा नीतीश कुमार को मिला और बीजेपी का वोट भी नीतीश कुमार को ट्रांसफर हुआ जिसकी वजह से उनकी पार्टी के 16 सांसदों ने जीत हासिल की. 

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कुढ़नी पर जेडीयू की हार का विश्लेषण

अब बात करते हैं कुढ़नी उपचुनाव की जहां पर नीतीश कुमार ने अपने पार्टी के मनोज कुशवाहा को महागठबंधन का साझा उम्मीदवार बनाया. महागठबंधन के सभी 7 दलों का समर्थन भी मनोज कुशवाहा को मिला मगर इसके बावजूद भी वह बीजेपी के हाथों चुनाव हार गए. चुनावी नतीजों के विश्लेषण करने पर पता चला कि कुढ़नी में आरजेडी का वोट नीतीश कुमार के पार्टी को पूरी तरीके से ट्रांसफर नहीं हुआ जिसकी वजह से मनोज कुशवाहा की हार हो गई. 

नीतीश ने 2024 के लिए बनाया है प्लान!

अब ऐसे में 2024 का लोकसभा चुनाव जब सर पर है तो नीतीश कुमार को इस बात का डर सता रहा है कि अगर लोकसभा चुनाव में भी आरजेडी का वोट पूरी तरीके से जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों को ट्रांसफर नहीं हुआ तो फिर उनकी पार्टी चुनाव हार सकती है और उनके प्रधानमंत्री बनने का सपना सपना ही रह जाएगा. शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार चाहते हैं कि 2024 लोकसभा चुनाव में आरजेडी का वोट उन्हें पूरी तरीके से ट्रांसफर हो और इसीलिए उन्होंने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने का ऐलान कर दिया है ताकि आरजेडी के मतदाता इस बात को लेकर खुश रहे कि नीतीश कुमार 2025 में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाएंगे और इसी उम्मीद पर उन्हें 2024 में नीतीश कुमार को समर्थन करना चाहिए. 

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नीतीश को सता रहा है डर!

कुढ़नी उपचुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार को इस बात का भी डर सता रहा है कि कहीं तेजस्वी यादव जनता दल यूनाइटेड को आउट करके अपने दम पर ही बिहार में सरकार ना बना लें. संख्या बल पर नजर डालें तो वह आरजेडी के इस वक्त 79 विधायक हैं. कांग्रेस के 19, वामपंथियों के 16, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के 4 और 1 अन्य. इस संख्या बल को जोड़िए तो 120 हो जाता है और बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 का आंकड़ा चाहिए. ऐसे में, नीतीश कुमार की सियासी चाल से अपनी कुर्सी पर तुरंत आने वाले किसी भी संकट से बचने का रास्ता ढूंढने की कोशिश की है वहीं दूसरी तरफ 2024 में प्रधानमंत्री बनने के सपनों को भी मजबूती देने की जुगत भिड़ा लिया है. 

 

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