बिहार सरकार के अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना आने के बाद प्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में हुई. ये वक्त कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच का है. लेकिन इसी दौरान विधानसभा चुनाव भी हुए थे तो ऐसे में एक आशंका भी जताई जा रही है कि क्या चुनाव के कारण मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ गई. इन आंकड़ों में सभी मौतें शामिल हैं.
देश में कोरोना की शुरुआत मार्च 2020 से हो गई थी. उसके बाद से मई 2021 तक यानी 15 महीनों में बिहार में 5,55,864 लोगों की मौत हुई है. ये आंकड़े अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय ने एक आरटीआई के जवाब में दिए हैं. लेकिन इन्हीं 15 महीनों के दौरान कोरोना से 5,522 मौतें ही हुई हैं. ये आंकड़े भी बिहार सरकार के ही हैं. यानी कि, 15 महीनों में जितनी मौतें हुईं, उनमें से 1% से भी कम मौतें कोरोना के कारण हुई.
लेकिन अगर कोरोना के तीन पीक महीनों की तुलना की जाए तो तस्वीर और साफ हो जाती है. पता चलता है कि कोरोना की दूसरी लहर में बिहार में ज्यादा मौतें हुई हैं. 2020 में मार्च, अप्रैल और मई में कुल 54,847 मौतें हुई थीं. जबकि, 2021 में इन्हीं तीन महीनों में कुल 1,22,081 मौतें हुईं हैं, जो 2020 की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा है.
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हालांकि, अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय के आंकड़े ये भी बताते हैं कि इन 15 महीनों के दौरान सबसे ज्यादा मौतें दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में हुई हैं. दिसंबर 2020 में जहां 63,248 मौतें हुई थीं तो वहीं जनवरी 2021 में 53,806 मौतें हुईं.
इन आंकड़ों से अब बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं. सवाल है कि जब इस दौरान इतने ज्यादा लोग मरे तो कोरोना जैसी भयावह महामारी से मरने वाले लोगों का आंकड़ा इतना कम कैसे है?