बाढ़ की मार झेलने वाले दरभंगा ज़िले के कुशेश्वरस्थान इलाके में बाढ़ के समय न सिर्फ जिंदगी को बचाये रखना बेहद चुनौती पूर्ण काम है बल्कि मौत के बाद शव का अंतिम संस्कार करना उससे भी ज्यादा चुनौती भरा काम है. ऐसी की कुछ तस्वीर देखने को मिली कुशेश्वरस्थान के महिसुत गांव में. जहां बाढ़ के पानी के कारण श्मशान में सुखी जमीन नहीं मिली. ऐसे में यहां न सिर्फ शव को जलाना एक चुनौती था बल्कि शमशान तक पहुंचना भी कठिन था.
ऐसे में शव को कन्धा देते हुए लोगों ने नाव से श्मशान घाट तक की यात्रा की. साथ ही श्मशाम भूमि में बाढ़ के पानी लगे होने के कारण शव को जलाने के लिए बाढ़ के पानी के बीच करीब छह से सात फुट ऊंचा बांस का मचान बनाया गया फिर उस मचान पर मिट्टी की बनी एक कोठी को रखा गया और उसी कोठी में शव को रखा गया और कोठी में लकड़ी डाल कर दाह संस्कार किया गया.
बात इतने पर ही खत्म नहीं होती है. शव को मुखाग्नि देने के लिए भी इसी नाव के सहारे शव के चारों तरफ घूमकर आग देने का काम किया गया. बाढ़ के समय मौत, मातम और मज़बूरी की यह तस्वीर एक कड़वी हकीकत से सामना कराती नजर आती है.
बता दें, कुशेश्वरस्थान दरभंगा जिला का ऐसा प्रखंड है, जहां बाढ़ का पानी हर साल अपने साथ तबाही लाता है. ये इलाका बाढ़ के समय 6 महीने तक पानी से डूबा हुआ रहता है. यहां जिधर नजर जाएगी सिर्फ पानी ही पानी और नाव ही नाव चलती देखी जा सकती है. यूं कहें कि जिंदगी नाव के सहारे ही होती है.
यही कारण है कि जब कुशेश्वरस्थान के महिसौत गांव के 90 वर्षीय सिवनी यादव की मौत हो गई तो बाढ़ के पानी के कारण उनके अंतिम संस्कार की समस्या आन पड़ी. ऐसे में ग्रामीणों ने मजबूरी में एक तरकीब निकाली फिर श्मशान में पानी के बीच बांस का मचान बनाया और मुखाग्नि दी.
इससे पहले शव को ग्रामीणों ने बकायादा गाजा बाजा के साथ नाव पर ही अंतिम यात्रा निकाली और नाव से ही शव को लेकर शमशान पहुंचे. मृतक के बेटे राम प्रताप यादव का कहना है कि पिता जी उम्र 90 साल से ज्यादा हो गई है और वो बीमार रहते थे जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई थी.
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