प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर बिहार सरकार और केंद्र सरकार आमने सामने हैं. बिहार में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू नहीं हो पा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजना पर कड़ी आपत्ति जताई है. उनकी आपत्ति इस बात को लेकर है कि हर राज्यों के लिए बीमा की प्रीमियर दर अलग-अलग रखी गई है. इस योजना में राज्य और केन्द्र को 50:50 अंश दान राशि देना है, ऐसे में इस योजना का नाम प्रधानमंत्री फसल बीमा ही क्यों होना चाहिए.
बिहार सरकार का मानना है कि सभी राज्यों में बीमा के प्रीमियर दर में एकरूपता होनी चाहिए और इस योजना का 90 प्रतिशत खर्च केंद्र को वहन करना चाहिए. केंद्र और राज्य के इस झगड़े में पीस रहे हैं बिहार के किसान. समस्तीपुर के किसानों ने फसल क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजा न मिलने पर आत्महत्या करने की धमकी दी है.
अलग-अलग हैं बीमा दर
प्रधानमंत्री फसल बीमा की नई योजना के तहत 15 अगस्त तक राज्य सरकार को बीमा कंपनियों का चयन कर लेना है, लेकिन बिहार सरकार इस योजना की व्यवस्था को लेकर ही सवाल उठा रही है. इस योजना के तहत
केंद्र और राज्य सरकारों को 50-50 फीसदी राशि देनी है. साथ ही सभी राज्यों के लिए प्रीमयम राशि अलग-अलग तय की गई है. मसलन उतर प्रदेश के किसानों को 5 फीसदी प्रीमियम राशि का भुगतान करना है तो बिहार के किसानों को 15 प्रतिशत.
बिहार सरकार ने नहीं मानी योजना
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इससे लगता है कि यह योजना किसानों के लिए नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है. बिहार सरकार चाहती है कि बीमा के प्रीमियम में एकरूपता होनी चाहिए. ये नहीं होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव हैं तो वहां के किसानों को कम प्रीमियम देना पड़े और बिहार के किसानों को ज्यादा. इस योजना के तहत बिहार को साढ़े छह सौ करोड़ रूपये देना पड़ेगा. सरकार का मानना है कि इतनी राशि किसानों को क्षतिपूर्ति के लिए क्यों नहीं दी जाए, बजाए बीमा कंपनियों को देने.
सभी राज्य तैयार: कृषि मंत्री
बिहार सरकार के सहकारिता मंत्री ने केंद्रीय कृषि मंत्री के सामने मांग रखी है की इस योजना के तहत केंद्र को 90 फीसदी राशि देनी चाहिए और 10 फीसदी राज्य के लिए निर्धारित होनी चाहिए. साथ में ये भी मांग रखी की प्रीमियम में एकरूपता होनी चाहिए. लेकिन केंद्र ने बिहार की किसी मांग को नही माना. केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह कहते है कि राजनीतिक कारणों से बिहार में ये योजना लागू नही हो पा रही है. मुख्यमंत्री ऐसा तर्क दे रहे हैं, जैसै बिहार देश से अलग है. सभी राज्य तैयार हैं तो फिर बिहार को क्यों आपत्ति है.
इस राजनीतिक खींचतान का सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है. कहीं बाढ़ तो कहीं सुखे के साथ-साथ बीज का धोखा देना किसानों के लिए जी का जंजाल बना हुआ है. उन्हें कहीं से उम्मींद की किरण नहीं दिख रही है, ऐसे में किसान आत्महत्या की धमकी नही देंगे तो और क्या करेंगे.