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'बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन' पार्ट-5

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की सियासी तस्‍वीर पल-पल बदलती जा रही है. ऐसे ही राजनीतिक समीकरणों के पीछे की थ्‍योरी तलाश रही है ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन’ की पांचवीं किस्‍त...

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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की सियासी तस्‍वीर पल-पल बदलती जा रही है. ऐसे ही राजनीतिक समीकरणों के पीछे की थ्‍योरी तलाश रही है ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन’ की पांचवीं किस्‍त...

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1. ‘‘हम अंडा-टमाटर युग से जूता-तमाचा के जमाने में प्रवेश कर गए हैं. देखा जाए, तो तमाचा-जूता से भी तुष्टकारी है. व्यक्तिगत संतुष्टि मिलती है. जूता में सामूहिकता का बोध था. दूर से लगता था, प्रतीकात्मक ही रह जाता था. कई बार लक्ष्य पर नहीं लगता था. न लगने पर पिटने वाला मुस्कुराकर शहीद होने का नाटक करता था. अक्सर जूता खाने वाले नहीं देख पाते थे कि किस सज्जन से पिटे.’’ ‘‘तमाचा खाकर मुस्कुराना कठिन है. तमाचा ज्यादा वस्तुनिष्ठ है. टारगेट तय है और संदेश स्पष्ट. वैसे इतिहासकार इस बात को दर्ज करेंगे कि टमाटर से तमाचा के सफर में देश में कितनी बेरोजगारी, कितनी जीडीपी और कितने अपराध बढे़. कोई मेहनत करे, तो ‘टमाटर से तमाचा तक’ एक बेहतर किताब भी बन पड़ेगी. टीवी वाले चाहें, तो इस नाम से कोई कार्यक्रम बना लें.’’

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2. ‘‘पूर्णिया में जगहों के अंग्रेजी शॉर्टनेम जितने मिल जाएंगे, राज्य के दूसरे शहरों में शायद ही मिलें. यहां खजांची हाट को ‘के हाट’ बोलते हैं, कृत्यानंद नगर को ‘के नगर’ और बरहड़ा कोठी को ‘बी कोठी’. अंग्रेजों से ज्यादा ताल्लुकात था या इलाके में बड़े जमींदारों के अंग्रेजीदां मिजाज का नतीजा? यों, हाल तक शहर के एलीट बंगाली हुआ करते थे और ‘रॉबिनहुड पप्पू’ के जमाने में बंगालियों के साथ बहुत सारे मारवाड़ी भी शहर से पलायन कर अपने-अपने ‘मुलुक’ वापस चले गए. शहर में कई कालीबाड़ी और आरके मिशन केंद्र बंगालियों के होने का सबूत अब भी देते हैं. गुलाबबाग अनाज मंडी मारवाड़ियों का अड्डा है. कहते हैं कि एक जमाने में गुलाबबाग अनाजमंडी हिंदुस्तान भर में मशहूर था, जहां से चावल बंग्लादेश और बर्मा तक जाता था.’’

3. ‘‘पूर्णिया में बीजेपी सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह के सामने फिर से आ खड़े हुए हैं उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी और हमनाम पप्पू यादव. पप्पू सिंह साफ छवि वाले खानदानी रईस ठाकुर हैं, तो पप्पू यादव एक जमाने के रॉबिनहुड. पप्पू सिंह पिछले दो बार से चुनाव जीत रहे हैं. अब पप्पू यादव की रॉबिनहुडी नहीं है, लेकिन मरा हाथी भी नौ लाख का है! पप्पू सिंह, मोदी के घोड़े पर सवार हैं, लेकिन जेडीयू और राजद-कांग्रेस गठजोड़ के पहलवानों का अखाड़े में इंतजार है. जेडीयू की लेसी सिंह, नीतीश की करीबी हैं, लेकिन उन्हीं की पार्टी की विधायक बीमा भारती उन्हें देखना नहीं चाहती.’’

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‘‘'ऐसे में नीतीश बाबू अगर किसी मुसलमान को पूर्णिया से टिकट दे दें, तो कोई ताज्जुब नहीं होगा. कांग्रेस-राजद गठजोड़ में यह तय नहीं हो पाया है कि सीट किसे मिलेगी. यों, पप्पू यादव ने मधेपुरा से भी दावेदारी ठोक दी है और वे इस कोशिश में हैं कि जेडीयू या राजद में से कोई उन्हें टिकट या समर्थन दे दे. सांसद पप्पू सिंह ऐसे पहले बीजेपी नेता हैं, जिन्होंने नीतीश के खिलाफ ‘वेदना प्रदर्शन रैली’ करके बगावत का पहला झंडा उठाया था. नीतीश की टेढी़ निगाह उन पर है और ये भी तय है कि पप्पू सिंह को यहां पप्पू यादव ही मजबूत चुनौती दे सकते हैं. लेकिन 'सेकुलर' वोटों का बंटना यहां तय है और ‘रॉबिनहुड’ पप्पू पर ‘कुलीन’ पप्पू भारी दिख रहा है!’’

(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)

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