नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले गया में हो रही अफीम की खेती को पुलिस ने नष्ट कर दिया है. लाल इलाके में नक्सलियों के द्वारा की जा रही मौत की इस खेती को गया पुलिस, CRPF और एसएसबी के जॉइंट ऑपरेशन में नष्ट कर दिया गया. नक्सलियों द्वारा 40 एकड़ जमीन पर की जा रही इस अफीम की खेती को SSB के जवानों ने ड्रोन की मदद से खोजा था.
बता दें कि गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड के सुदूरवर्ती इलाकों में जहां पुलिस बल अपने वाहनों से नहीं पहुंच सकती है, उन इलाकों में नक्सलियों के द्वारा मौत की खेती की जाती है. वहीं ऊपरी गोहिया गांव की बात करें तो यह पहाड़ के तलहटी में बसा हुआ है. और ऐसे इलाकों का फायदा उठा कर नक्सली अफीम की खेती करते हैं.
आप को बता दें कि इन इलाकों में अफीम के फसलों को ट्रेस-आउट ड्रोन के माध्यम से किया जाता है. ट्रेस-आउट होने के बाद पूरी पुलिस बल वहां पहुंचती है और फिर नष्ट करने का सिलसिला शुरू होता है. नक्सलियों के द्वारा वन विभाग के 40 एकड़ जमीन पर की जा रही इस अफीम की खेती को नष्ट किया गया. तो वहीं छोटे अफीम के पौधे पर दावा छिड़कने के बाद उन्हें भी नष्ट कर दिया गया.
ज्ञात हो की नक्सली अपने संगठन को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए अफीम की खेती ग्रामीणों से करवाते है. चुकी जिस जगह पर अफीम की खेती कराई जाती है उसके आस-पास कोई गांव नहीं होते है. पुलिस बल को पहाड़ पर चढ़ते देख अफीम की खेती की देखरेख करने वाले भी फरार हो जाते हैं.
बता दें कि 10 किमी कच्ची सड़को पर पैदल चलने के बाद पुलिस बल वहां तक पहुंची और सभी जवान कंधों पर अत्याधुनिक हथियार लिए अफीम के फसलों को नष्ट करते दिखे. अफीम की खेती समीप ही नक्सलियों ने खेती की देखभाल करने कि लिए बंकर तक बनाए थे.
वहीं जब इस संबंध में बाराचट्टी के थाना प्रभारी ने बताया की हर साल इन इलाको में अफीम की खेती की जाती है और हर साल सैकड़ों एकड़ जमीन में लगी अफीम की फसलों को नष्ट भी किया जाता है. थाना प्रभारी ने यह भी बताया कि 3 महीनों में करोड़ों रुपये की अफीम तैयार की जाती है और यहां से पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्यों में भेजा जाता है. और उस पैसे से नक्सलियों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, उन्होंने यह भी बताया की अफीम की खेती करने के लिए पैसों की फंडिंग ग्रामीणों को उपलब्ध कराई जाती है. और होने के बाद यह पैसा नक्सलियों तक पहुंच जाता है.