जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अररिया जिले के जदयू उम्मीदवार मुर्शीद आलम के पक्ष में प्रचार-प्रसार किया. जोकीहाट के मतदाताओं के बीच पहुंचे नीतीश ने लोगों से कहा कि वह यहां सिर्फ हाजिरी लगाने आए हैं. जनसभा को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि वह 2005 से लगातार प्रदेश की जनता के लिए काम करते चले आ रहे हैं और इसीलिए अपने काम के दम पर वह लोगों से वोट मांगने आए हैं. बता दें कि जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव के लिए 28 मई को मतदान होंगे.
जोकीहाट विधानसभा पारंपरिक तौर पर जदयू का गढ़ रहा है और यहां 2005 से लगातार जदयू उम्मीदवार की जीत होती रही है. हालांकि, इस बार जोकीहाट में जदयू उम्मीदवार मुर्शीद आलम को आरजेडी उम्मीदवार शहनवाज आलम से कड़ी टक्कर मिल रही है.
2015 के विधानसभा चुनाव में अररिया से आरजेडी सांसद तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम जदयू के टिकट पर जोकीहाट से विधायक बने थे, मगर अपने पिता की मृत्यु के बाद सरफराज आलम जदयू का दामन छोड़कर आरजेडी में शामिल हो गए और अररिया लोकसभा उपचुनाव लड़कर सांसद बने. इसी वजह से जोकीहाट विधानसभा सीट खाली पड़ी थी. आरजेडी ने जोकीहाट से तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलम को टिकट दिया है.
सभा को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने बिहार सरकार के उस फैसले का जिक्र किया, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र जो UPSC या BPSC की प्रारंभिक परीक्षा पास करते हैं, उन्हें क्रमशः ₹1 लाख और ₹50 हज़ार प्रोत्साहन राशि दिए जाने की बात है. नीतीश ने कहा कि उन्होंने अल्पसंख्यक समाज के लिए भी विकास के कई कार्य किए हैं.
नीतीश कुमार के लिए जोकीहाट विधानसभा सीट जीतना साख का सवाल बन गया है, क्योंकि पिछले 4 बार से यहां पर जदयू के उम्मीदवार जीतते रहे हैं. लेकिन पिछले साल आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने का उनका फैसला उनकी साख पर बट्टा लगा सकता है.
'आजतक' ने जोकीहाट पहुंचकर स्थानीय लोगों से बातचीत की तो पता चला कि लोगों में इस बात को लेकर काफी नाराजगी है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की मदद से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उन्होंने बीच में लालू को धोखा दिया और बीजेपी के साथ मिल गए.
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा आखिर नीतीश कुमार जोकीहाट को बचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं? अगर इस सीट पर उनकी जीत होती है तो भाजपा के साथ उनके गठबंधन करने को कहीं ना कहीं जनता की मुहर के रूप में देखा जाएगा अगर वह चुनाव हार जाते हैं तो इसे उस फैसले के जवाब के रूप में देखा जाएगा जब उन्होंने महागठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई.