बिहार की सियासत के बेताज बादशाह माने जाने वाले लालू प्रसाद यादव राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कमी की भरपाई करने की कवायद में जुट गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को अपने साथ मिलाकर लालू यादव को बड़ी राजनीतिक मात दी. अब लालू प्रसाद इसका हिसाब बराबर करने में जुटे हैं. पिछले दिनों लालू प्रसाद यादव और मोदी कैबिनेट के मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के बीच गुप्त मुलाकात हुई. बिहार के दोनों नेताओं के बीच हुई इस मुलाकात के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं.
बता दें कि 2014 के लिए जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा की तो नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर लालू यादव से हाथ मिला लिया. ऐसे में बीजेपी ने बिहार के छोटे छोटे दलों को अपने साथ लेकर 2014 के रण को फतह किया था. इनमें उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी शामिल थी. बीजेपी के साथ गठबंधन का नतीजा ये रहा कि RLSP के तीन लोकसभा सदस्य जीतने में सफल रहे और जब मोदी सरकार बनी तो उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री पद से नवाजा गया.
बिहार की सियासत ने फिर करवट ली और नीतीश लालू का साथ छोड़कर दोबारा एनडीए में शामिल हो गए. नीतीश और बीजेपी के बीच गहरी होती दोस्ती 2014 में मोदी के साथी बने उपेंद्र कुशवाहा को रास नहीं आ रही है. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है की कहावत को चरितार्थ करने की कवायद बिहार में हो रही है.
16 अक्टूबर को लालू यादव और आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के बीच मुलाकात हुई. आरजेडी सूत्रों ने बताया कि दोनों नेताओं में साल 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बात हुई है. दोनों नेताओं ने इस मुलाकात पर सार्वजनिक रूप से कुछ कहा नहीं. लेकिन इस मुलाकात से दो दिन पहले ही आरएलएसपी नेता नागमणि ने बिहार की सियासत में सरगर्मी तेज करते हुए कहा था कि उपेंद्र कुशवाहा को बिहार का अगला मुख्यमंत्री होना चाहिए. इस बयान और इसके बाद हुई मुलाकात को जोड़कर देखें तो नई सियासी खिंचड़ी पकती दिख रही है.
लालू प्रसाद यादव इस बार यादव, मुस्लिम और दलित मतों के साथ-साथ ओबीसी मतों को भी अपने पाले में लाने की कवायद कर रहे हैं. इसके लिए उपेंद्र कुशवाहा उनके लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं. उपेंद्र कुशवाहा कोइरी समाज से आते हैं, बिहार में इस समुदाय का करीब 3 फीसदी वोट है. जो लालू के लिए बेहद काम का है, दूसरी ओर लालू यादव का जनाधार और बिहार व देश की किसी भी सत्ता विरोधी लहर का फायदा उपेंद्र कुशवाहा उठा सकते हैं. ऐसे में अगर बिहार में कोई नया समीकरण बनता भी है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.