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सरेंडर नहीं संघर्ष...चाचा पशुपति की बगावत के बाद चिराग के सामने क्या-क्या हैं विकल्प?

पशुपति नाथ पारस ने एलजेपी के छह में से पांच सांसदों को अपने साथ मिलाकर भतीजे चिराग पासवान का तख्तापलट कर संसदीय दल के नेता के पद के साथ-साथ पार्टी पर भी अपना कब्जा जमा लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि चिराग के सामने अब क्या-क्या सियासी विकल्प बचे हैं और आगे उन्हें कैसी चुनौतियों का सामना करना होगा? 

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चिराग पासवान
चिराग पासवान
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चिराग के खिलाफ चाचा ने किया बगावत
  • रामविलास पासवान की विरासत पर जंग
  • चिराग पिता की विरासत को बढ़ा पाएंगे?

लोक जनशक्ति पार्टी का गठन करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के एक साल भी अभी पूरे नहीं हुए थे कि 'पासवान परिवार' में चाचा-भतीजे के बीच संग्राम छिड़ गया है. चाचा पशुपति नाथ पारस ने एलजेपी के छह में से पांच सांसदों को अपने साथ मिलाकर भतीजे चिराग पासवान का तख्तापलट कर दिया. उन्होंने संसदीय दल के नेता के पद के साथ-साथ पार्टी पर भी अपना कब्जा जमा लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि चिराग के सामने अब क्या-क्या सियासी विकल्प बचे हैं और आगे उन्हें कैसी चुनौतियों का सामना करना होगा? 

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एलजेपी में दो फाड़ होने के बाद चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति नाथ पारस के सामने आत्मसमर्पण तो नहीं करने जा रहे हैं बल्कि संघर्ष करने का बिगुल फूंक दिया है. चिराग पासवान ने बुधवार को चाचा पर पलटवार करते हुए कहा कि पार्टी ने समझौते की बजाय संघर्ष का रास्‍ता चुना था. पिता के निधन के बाद मैंने परिवार और पार्टी दोनों को लेकर चलने का काम किया. इसमें संघर्ष था, जिन लोगों को संघर्ष का रास्‍ता पसंद नहीं था. उन्‍होंने ही धोखा दिया. इससे साफ जाहिर है कि चिराग ने अब अपने दम पर पिता रामविलास पासवान की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है. 

एलजेपी में चिराग पासवान के खिलाफ बगावत के लिए जेडीयू के नेता नीतीश कुमार और पार्टी के अन्य नेताओं की भूमिका से औपचारिक रूप से भले ही इनकार करें, लेकिन उनके इशारों से उनकी खुशी देखी जा सकती है. यह बात भी जगजाहिर है कि जेडीयू सांसद ललन सिंह और जेडीयू के दलित नेता महेश्वर हजारी ने किस तरह से पशुपति को साधने का काम किया है.  

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एलजेपी में बगावत के बाद संकट में घिरे चिराग पासवान के के सामने आगे तीन संभावनाएं नजर आ रही हैं. पहली स्थिति ये हो सकती है बीजेपी की ओर से चिराग को कुछ सपोर्ट मिल जाए. मोदी अपनी कैबिनेट में मंत्री बना देते हैं तो चिराग दोबारा से पावर पा सकते हैं. हालांकि, जेडीयू जिस तरह से उनके सियासी राह में रोड़ा बनी हुई है, उसे देखते हुए फिलहाल बीजेपी चिराग को भाव नहीं दे रही है. 


ये भी पढ़ें: पशुपति पारस से विवाद के बीच चिराग ने राजू तिवारी को बनाया बिहार LJP का प्रदेश अध्यक्ष

यही वजह है कि चिराग को कहना पड़ा कि अगर हनुमान को राम से मदद मांगनी पड़ी तो काहे का राम और काहे का हनुमान. इसका मतलब है कि चिराग को बीजेपी से किसी तरह का कोई सहारा नहीं दिख रहा. इसलिए चिराग के पास कोई और रास्ता नहीं बचता सिवाए एकला चलो रे. बिहार का पासवान समुदाय का वोटबैंक और 6 फीसदी वोट फिलहाल उनके पास है, लेकिन अपनी सियासत को आगे बढ़ाने के लिए उसमें इजाफा करना होगा. 

बिहार की सियासत पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी चिराग पासवान ने लगभग 6 फीसदी वोट हासिल कर यह साबित कर दिया कि बिहार के महादलित समुदाय पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है. इतने वोट बैंक के बलबूते वे बिहार की राजनीति में एक प्रभावशाली दखल रखेंगे और उन्हें खारिज करना संभव नहीं होगा. सांसद पार्टी छोड़कर भले ही पशुपति पारस के साथ चले गए हैं, लेकिन रामविलास पासवान के सियासी वारिस चिराग पासवान ही हैं. 

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अरविंद मोहन कहते हैं कि एलजेपी के जिन पांच सांसदों ने बगावत किया है, उसमें पासवान परिवार से बाहर के जो तीन सांसद हैं, वे तीनों सवर्ण समुदाय से हैं और अभी पशुपति पारस के साथ हैं. लेकिन यह तीनों सांसद उनके साथ कितने दिन रहेंगे. यह अलग बात है. वहीं, चिराग युवा हैं और पासवान समुदाय के बीच पकड़ भी बनी है. एलजेपी का कॉडर भी उनके साथ खड़ा दिख रहा है, लेकिन अब चिराग के किसी तरह का कोई समझौता करने के बजाय संघर्ष के रास्ते बढ़ते हैं तो निश्चित तौर पर पार्टी को आगे ले जा सकते हैं. 

वहीं, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि रामविलास पासवान ने अपने जीते ही चिराग पासवान को अपना सियासी वारिस घोषित कर दिया था जबकि पशुपित पारस कभी भी अपने भाई रामविलास पासवान की छाया से नहीं निकल पाये थे. बिहार में पशुपति की तस्वीर अब भी कम लोग ही पहचान पाएंगे, लेकिन चिराग विधानसभा चुनाव में पिता की छाया से निकलकर अपनी छवि बना लिए हैं. युवा होने के नाते चिराग के पास वक्त है. ऐसे में संघर्ष के रास्त आगे बढ़ते हैं तो उनकी राजनीतिक समझ और परिपक्व होगी. 

मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि चिराग की कई कमजोरियां हैं, जिनमें अनुभवहीनता और अक्खड़पन शामिल हैं. इसके बवाजूद रामविलास पासवान का बेटा और उनकी एलजेपी का वारिस होना सबसे बड़ी पहचान है. ऐसा सियासी वारिस जिसे पासवान ने अपनी जिंदगी में ही बनाया था. चिराग पासवान के साथ युवा जुड़े हुए. चिराग के ट्विटर हैंडल के नाम में भी युवा बिहारी लगा है. एलजेपी का अपना कोर वोट दुसाध-पासवान जाति का है, जिसकी बिहार की सियासत में काफी अहम मानी जाती है. बिहार में पार्टी स्तर पर और सामाजिक स्तर पर चिराग को काफी हद तक अपनी जाति का समर्थन जुटा लेंगे, क्योंकि रामविलास के वारिस का तमगा चिराग के साथ ही है. 

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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अभी चार साल का समय है और चिराग के पास पार्टी को दोबारा से खड़ा करना का पूरा मौका है. हालांकि, इससे पहले 2024 में लोकसभा चुनाव होगा तो यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी चिराग पासवान से उसी तरह किनारा किए रहेगी या उसके लिए यह समय नीतीश कुमार से भी किनारा करने का होगा. बीजेपी अगले दो सालों में नीतीश को एनडीए का चेहरा वाले दावे से हटाना चाहेगी तो चिराग के सहारा बनने की संभावना है. ऐसे में बीजेपी उनसे किनारा किए रहे तो चिराग के लिए दूसरे विकल्प के रूप में आरजेडी मौजूद है.  

एलजेपी में बगावत के बाद चिराग पासवान के लिए आरजेडी और कांग्रेस दोनों ही ओर से खुले ऑफर दिए जा रहे हैं. ऐसे में बीजेपी क्या चाहेगी कि चिराग किसी भी तरह से महागठबंधन का हिस्सा बनें? माना जा रहा कि बीजेपी फिलहाल भले ही खुलकर चिराग पासवान के समर्थन में खुलकर न आए, लेकिन पर्दे के पीछे से जरूर हाथ रख सकती है. बीजेपी का साथ मिलने से खुद चिराग पासवान को भी बड़ी राहत मिलेगी. उन्हें फिर से एलजेपी में खुद को साबित करने का मौका मिल सकता है. हालांकि, ये सबकुछ बीजेपी नेतृत्व के फैसले पर ही निर्भर होगा. ऐसे में देखना है कि चिराग अब आगे का सियासी भविष्य कैसे तय करते हैं? 

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