महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत इच्छुक लोगों को रोजगार मुहैया कराने में बिहार की सरकार नाकाम साबित हुई है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार का रोजगार देने का वादा खोखला साबित हुआ है. बिहार में भूमिहीन मजदूरों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है. मनरेगा में निबंधित मजदूरों की संख्या 8 से 10 प्रतिशत है.
राज्य में भूमिहीन मजदूरों की संख्या 88.61 लाख है लेकिन रोजगार मांगने के इच्छुक 90 हजार लोगों में 3.34% का ही जॉब कार्ड है. इनमें भी केवल 1% लोगों को ही 100 दिनों तक काम मिला. मनरेगा के तहत 100 दिन काम देने की गारंटी होती है लेकिन इनमें अधिकतर लोगों को 34 से 45 दिनों का ही रोजगार दिया गया.
सरकार का तर्क है कि कृषि कार्यों में ज्यादा मजदूरी होने की वजह से मजदूर मनरेगा में काम करने नहीं आते हैं. मनरेगा के तहत प्रतिदिन 177 रुपये मजदूरी तय है तो कृषि कार्यों में 300 के करीब मजदूरी मिलती है. अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा कि 2014 से 2019 के बीच 26 से 36 फीसदी लोगों ने मनरेगा के तहत सरकार से काम मांगा था लेकिन महज 2 से 9 फीसदी को ही रोजगार मिले थे.
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100 दिन के रोजगार की है गारंटी!
वहीं, योजना के तहत काम मांगने वालों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध करवाने का नियम है. कैग के अनुसार इस अवधि में बिहार में 1 से 3 फीसदी लोगों को ही 100 रोजगार मिल सका. महालेखाकार राम अवतार शर्मा ने कहा कि वर्ष 2014-19 के दौरान योजना निधि 11181 करोड़ में से 10960 करोड़ का उपयोग किया गया था, वहीं 99.44 लाख परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया था. इस अवधि में राज्य में परिवारों द्वारा 33642 रुपए मजदूरी अर्जित की गई थी, जो राष्ट्रीय औसत 37639 रुपए से कम थी. औसत मजदूरी सृजन के मामले में बिहार का देश में 21 वां स्थान था.
बिहार में 3,007 परिवार का ही बना जॉब कार्ड
बिहार, देश में सर्वाधिक भूमिहीन आकस्मिक श्रमिकों वाला राज्य है. यह संख्या 88.61 लाख थी, जिसमें मनरेगा के तहत रोजगार को ध्यान में रखकर 60.88 लाख का सर्वेक्षण किया गया था. यहां केवल 3.34 फीसदी को ही जॉब कार्ड जारी किया गया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 90,161 भूमिहीन परिवारों ने काम की मांग की थी, जिसमें से महज 3007 परिवारों को ही जॉब कार्ड जारी किए गए थे.
9 फीसदी बुजुर्गों को रोजगार!
संवेदनशील समूहों के परिवारों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए राज्य में विशेष योजना बनाई गई थी. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इसकी आवश्यकता नहीं थी. वहीं, पंजीकृत 9 से 14 फीसदी विकलांग और 5 से 9 फीसदी वरिष्ठ नागरिक को ही योजना के तहत रोजगार उपलब्ध करवाए गए थे.
42 लाख योजना में से 36 लाख योजनाओं पर काम अधूरे
CAG रिपोर्ट के मुताबिक इन पांच साल में मनरेगा के तहत ली गई 42 लाख योजनाओं से 36 लाख योजनाओं में काम अधूरे थे. वर्ष 2014-19 के बीच में एक से पांच वर्षों तक काम अपूर्ण पड़े हुए थे. महालेखाकार ने कहा कि मनरेगा के तहत निजी घरों में भी काम हुए हैं.
निजी भूमि पर मनरेगा के तहत तालाब खुदाया गया. कुछ ऐसे भवन भी मनरेगा के तहत बनवाए गए जिनकी जरूरत नहीं थी और वो बेकार पड़े हैं. उन्होंने ये भी कहा कि केवल 25 फीसदी मनरेगा मजदूरों का भुगतान आधार कार्ड के आधार पर हो रहा है.