scorecardresearch
 

चमकी बुखार का अभी तक इलाज नहीं खोज पाए हैं वैज्ञानिक

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार का कोई इलाज नहीं है. यह दुर्भाग्य है कि तमाम कोशिशों और रिसर्च के बाद भी ऐसी कोई दवाई नहीं बनाई जा सकी जिससे पीड़ित रोगियों का इलाज हो सके.

Advertisement
X
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चा (फाइल फोटो-आईएएनएस)
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चा (फाइल फोटो-आईएएनएस)

Advertisement

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार का कोई इलाज नहीं है. यह दुर्भाग्य है कि तमाम कोशिशों और रिसर्च के बाद भी ऐसी कोई दवाई नहीं बनाई जा सकी जिससे पीड़ित रोगियों का इलाज हो सके. यहां तक कि अभी तक इस बीमारी के पीछे के वायरस की भी पहचान नहीं हो सकी है. ऐसे में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के लिए इलाज के लिए वैक्सीन कैसे बन सकती है.

मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में बच्चों में ये बीमारी मई से शुरू होकर जुलाई तक चलती है. उसके बाद यह अपने आप खत्म हो जाती हैं. बरसात के बाद यह बीमारी क्यों खत्म हो जाती है, ये भी एक रहस्य है. वैज्ञानिकों ने एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम पर काफी रिसर्च किया लेकिन जो कुछ भी नतीजे सामने आए हैं, वो बहुत कन्विन्सिंग नहीं हैं.

Advertisement

इस बीमारी के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए साइंटिस्टों की एक टीम बनाई गई. उसमें से एक कारण जो साइंटिस्टों ने ऑब्जर्व किया कि लीची का फसल सीजन इसी महीने में है और जब लीची पकने लगती है और टपक जाती है तो बच्चे लीची के बागान में जाकर गिरी हुई लीची को भी खा लेते हैं, उसमें वायरस हो सकता हैं. लेकिन फिर यह 6 महीने साल भर के बच्चों के कैसे पाया जा रहा है यह सवाल उठता है.

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के रिसर्च से जुड़े डॉक्टर प्रभात कुमार सिन्हा ने बताया कि वैसे इस बीमारी की शुरुआत नब्बे के दशक में हो गई थी लेकिन यह महामारी के रूप में साल 2011 में सामने आई. उन्होंने कहा कि साल 2011 में एईएस के रिसर्च पर एक टीम ने काम करना शुरू किया था. जिसके तहत वेक्टर बिलोजिस्ट टेस्ट किए गए. उन्होंने बताया कि रिसर्च टीम ने सीएसएफ स्पाइनल फ्लूड के सैम्पल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणे को भेजे लेकिन रिपोर्ट नकारात्मक आई.

साल 2014 में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के मामले बड़े पैमाने पर सामने आए. इसके बाद रिसर्च टीम ने फिर इसकी खोज शुरू की जिसमें सीएमसी वेल्‍लूर के जैकब जॉर्ज (प्रोफेसर ऑफ प्रिडियकटिस) भी उस टीम में मौजूद थे, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया. हांलाकि, मुजफ्फरपुर के केजरीवाल अस्पताल में उन्होंने कहा कि बच्चों ग्लूकोज दीजिए. ग्लूकोज देने से बच्चे मरेंगे नहीं और सचमुच ग्लूकोज देने से बहुत से उन बच्चों की जान बच जाती है जो समय पर अस्पताल पहुंच जाते हैं.

Advertisement

डॉक्टर प्रभात कुमार सिन्हा ने बताया कि डॉक्टर जैकब ने एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को लेकर एक थ्योरी दी जिसमें उन्होंने बताया कि ये बीमारी सबसे पहले नॉर्थ वियतनाम में पाई गई. इसके बाद अफ्रीदी देश जमैका में इसके मामले सामने आए. संयोग कि बात ये है कि इन दोनों जगहों पर लीची का उत्पादन होता है. मुजफ्फरपुर भी लीची उत्पादन के लिए जाना जाता है. डॉक्टर प्रभात बताते हैं कि हम लोगों ने डॉक्टर सीपी ठाकुर के साथ मिलकर रिसर्च की. कुछ सैम्पल भी इकट्ठे किए गए थे.

उन्होंने बताया कि हमारी टीम को लीची में टॉक्सिन मिला जो ब्लड शुगर वकीप्लेसेमिया की वजह बनता है. उससे पता चला कि ये भी मौतों का एक कारण है. एक तीसरी बात जो स्टडी में सामने आई है कि जब यूरिन की जांच करने पर उसमें ओरगोनोफोस्फोर्स पेस्टीसाइड की मात्रा पाई गई जोकि लीची की फसल पर पेस्टीसाइड के रूप में स्प्रे होता है.

डॉक्टर प्रभात का कहना है कि जब तक इस वायरस का आइडेंटिफाइड नहीं होता तब तक वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है. डॉक्टरों की टीम इस पर रिसर्च कर रही है. रिसर्च में है कि अभी तक वायरस आइडेंटिफाइ नहीं हुआ है. उन्होंने कहा है कि लोगों को इससे जागरूक किया जाना चाहिए. 

Advertisement
Advertisement