बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में भले ही एनडीए ने सरकार बना ली हो, लेकिन चार दलों के सहारे टिकी हुई है. काफी जद्दोजहद के बाद नीतीश कैबिनेट का तीन महीने के बाद विस्तार हुआ और अब हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी और वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी की नई मांग ने एनडीए की मुश्किल बढ़ा दी है. राज्यपाल द्वारा मनोनीत होने वाली विधान परिषद सीट को लेकर सहयोगी दलों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है.
जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी ने पहले नीतीश मंत्रिमंडल में दो-दो मंत्री पद की मांग की थी. मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भी खाली हाथ रह जाने के बाद अब इनकी नजर विधान परिषद की सीट पर टिक गई है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने बुधवार ने एक विधान परिषद सीट पर दावा किया है. वे विधान परिषद की राज्यपाल कोटे से मनोनयन वाली सीट की भी मांग कर रहे हैं.
वहीं, वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी ने भी मंगलवार राज्यपाल कोटे से एमएलसी सीटों में से एक सीट की मांग अपनी पार्टी और एक सीट की मांग मांझी के लिए की थी. दो मंत्री पद की मांग पूरी नहीं होने पर नाराज सहनी अमित शाह से मिलने दिल्ली गए थे और वहां से लौटते ही उन्होंने विधान परिषद की एक सीट की मांग रख दी थी. उन्होंने यह भी कहा कि वीआइपी और हम को विधान परिषद की एक-एक सीट देने का फैसला अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी नेतृत्व को करना है
बिहार में फिलहाल राज्यपाल कोटे की सभी 12 सीटें खाली हैं, जिन्हें जल्द भरा जाना है. खेल, कला संस्कृति, विज्ञान एवं समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर काम करने वाले लोगों का इन एमएलसी सीटों पर मनोनयन किया जाता है. बिहार की इन 12 सीटों को लेकर बीजेपी और जेडीयू में अभी तक सहमति नहीं बन पाई है और अब जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है.
हालांकि, बिहार में भाजपा और जदयू के बीच विधान परिषद की इन 12 सीटों के लिए 50-50 का फॉर्मूले की बात कही जा रही हैं. ऐसे में अब मांझी और मुकेश सहनी ने भी एक-एक सीट की डिमांड रख दी है. बता दें कि विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने कोटे से वीआईपी को 11 सीटें दी थीं जबकि जेडीयू ने अपने कोटे से जीतनराम मांझी की पार्टी हम को सात सीटें दी थीं. अब मांझी-सहनी एक-एक एमएलसी सीट की मांग कर रहे हैं.
दरअसल, बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में जनादेश ऐसा है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटों का बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. एनडीए को 125 सीटें मिली हैं जबकि महागठबंधन के खाते में 110 सीटें आई थीं. इसके अलावा आठ सीटें अन्य दलों को मिली थीं. एनडीए को बहुमत से महज दो सीटें ज्यादा मिली हैं, जिसमें मांझी और सहनी की पार्टी के चार-चार विधायकों का समर्थन है. यही वजह है कि मांझी और सहनी दोनों एनडीए पर दबाव बनाने में जुटे हैं.
हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बसपा और एक निर्दलीय विधायक को अपने साथ मिलाकर आंकड़ा 127 का कर लिया है. इसके बाद भी एनडीए और महागठबंधन दोनों की ओर से एक दूसरे के विधायकों को अपने साथ मिलाने की बयान आते रहते हैं. ऐसे में देखना है कि मांझी और सहनी की डिमांड इस बार पूरी होती है कि नहीं?