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नीतीश की शपथ में पहुंचेंगे शाह-नड्डा, महागठबंधन ने किया बहिष्कार, नहीं जाएंगे तेजस्वी

बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. शाम साढ़े 4 बजे शपथ ग्रहण समारोह होगा. इस समारोह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल होंगे.

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अमित शाह के साथ जेपी नड्डा (फाइल फोटो)
अमित शाह के साथ जेपी नड्डा (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सातवीं बार नीतीश कुमार की सरकार
  • अमित शाह और जेपी नड्डा करेंगे शिरकत

बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. शाम साढ़े 4 बजे शपथ ग्रहण समारोह होगा. इस समारोह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल होंगे. नीतीश के साथ 14 मंत्री भी शपथ लेंगे, जिनमें बीजेपी के सात और जेडीयू के पांच होंगे. बाकी दोनों सहयोगियों हम और वीआईपी कोटे से एक-एक मंत्री बनेंगे.

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बीजेपी विधायक नंदकिशोर यादव स्पीकर हो सकते हैं. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस समेत वामदलों ने शपथ ग्रहण का बहिष्कार कर दिया है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव दिल्ली के दौरे पर हैं. वो शपथ ग्रहण में नहीं जाएंगे. इसके अलावा कांग्रेस और सीपीआईएमएल की ओर से महबूब आलम ने शपथ ग्रहण में जाने से इनकार कर दिया है.

बिहार में एनडीए सरकार का शपथ ग्रहण समारोह शाम 4.20 बजे होगा. नीतीश कुमार अपने सहयोगियों के साथ शपथ लेंगे. कयास लगाए जा रहे हैं कि आज 14 मंत्रियों को शपथ दिलाई जाएगी. गृह मंत्री अमित शाह और  बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा इस शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे.

इस बार की शपथ नीतीश के लिए अग्निपथ की तरह ही होगी. कैबिनेट में भी नीतीश अल्पमत में होंगे. कयास तो ये भी है कि बीजेपी कोटे से दो-दो उपमुख्यमंत्री होंगे और इनमें सुशील मोदी नहीं होंगे, जिनके साथ उनका सालों का साथ रहा है. एक वक्त तो ऐसा भी आया जब नीतीश ने बीजेपी के मुख्यमंत्री की बात कर सबको हैरान कर दिया.

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कल एनडीए की बैठक में राजनाथ सिंह के साथ उन्होंने कहा कि बीजेपी की ज्यादा सीटें हैं, मुख्यमंत्री बीजेपी का ही हो, लेकिन बड़े नेताओं के मनाने पर वो मान गए. नीतीश कुमार के लिए इस बार की जंग आसान नहीं थी. वो जानते थे हवा उनके खिलाफ है. 15 साल की एंटीइनकमबेंसी है.. कोरोना काल में बिहार लौटने वाले मजदूर नाराज हैं.

बेरोजगार युवा गुस्से में हैं, लेकिन वो ये भी जानते थे कि हवा का रूख कैसे मोड़ा जाता है. यही कारण है कि चुनाव अभियान में वो खुद पीछे रहे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर दिया. इस बार सीटें भले उनकी कम हुई, लेकिन कमान फिर से उन्हीं के हाथों में आ गई. कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला.

 

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