
कोरोना का संक्रमण भले ही कम हो गया है लेकिन मौतों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है. इसका अंदाजा बिहार के गया जिले के पटवाटोली जाकर लगाया जा सकता है. पटवाटोली के हर घर से पावरलूम चलने की आवाज आपको सुनाई देगी. सब लोग अपने कामों में लगे हैं, चाहे वो पावरलूम के मालिक हो या फिर मजदूर. कोरोना की वजह से लॉकडाउन है लेकिन इसका कोई फर्क पटवाटोली में नहीं दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके पीछे का कारण भी कोरोना ही है.
दरअसल, पटवाटोली आमतौर पर अपने गमछा और बेडशीट के उत्पादन के लिए जाना जाता है लेकिन आजकल यहां हजारों की संख्या में कफन बनाने का काम चल रहा है.
बिहार का मेनचेस्टर कहे जाने वाले पटवाटोली में पहले भी पीतांबरी यानी कफन बनता था, लेकिन इतना नहीं जितना आज बनाना पड़ रहा है. बाजार बंद होने की वजह से गमछा और बेडशीट का डिमांड नहीं के बराबर है, वहीं कफन की डिमांड दो सौ गुना बढ़ गई है. जिसको यहां के बुनकर पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
‘डिमांड इतनी कि पूरी नहीं कर पा रहे’
कफन बनाने का काम पिछले 40 वर्षों से द्वारिका पटवा का परिवार कर रहा है. उनके मुताबिक, कफन बनाने का इतना दबाव पहले कभी नहीं आया था, आज हम डिमांड पूरी नहीं कर पा रहे हैं. पिछले दो महीनों में द्वारिका पटवा ने 50 से 55 हजार कफन बेचे हैं.
गमछा और बेडशीट की डिमांड नहीं होने की वजह से सभी पावरलूम कफन बनाने में लगे हैं. वस्त्र उद्योग बुनकर सेवा समिति के अध्यक्ष प्रेम नारायण पटवा कहते हैं कि पिछले साल के कोरोना में लॉकडाउन के दौरान पावरलूम बंद रहे और कफन की भी इतना डिमांड नहीं थी लेकिन पिछले दो महीने से इतना डिमांड आ रही है कि हम उसे पूरी नहीं कर पा रहे हैं.
प्रेम नारायण ने कहा कि मृतकों की संख्या कितनी होगी, ये तो हम नहीं कह सकते हैं लेकिन कफन की इतनी डिमांड पहले नहीं देखी गई थी.
सीधे आईआईटी जाते हैं यहां के बच्चे...
ये वही पटवाटोली है जहां थोक भाव में बच्चे IITian बनते हैं. यहां के निवासी मूलत: बुनकर हैं और इन्हीं पावरलूम की आवाजों के बीच यहां के बच्चे आईआईटी पास करते हैं. लॉकडाउन की वजह से जहां सभी उद्योगों पर असर पड़ा है, बाजार पर असर पड़ा है लेकिन पटवा टोली के बुनकरों ने इस आपदा को भी अवसर में बदल दिया है.
कफन के साथ-साथ यहां काफी मात्रा में मास्क के कपड़ों का उत्पादन भी हो रहा हैं. यहां काम की कोई कमी नहीं है, पटवाटोली के बुनकर बिहार के अलावा झारखंड, बंगाल और ओडिशा तक सप्लाई करते हैं.
कोरोना संक्रमण के मामले भले ही कम हो रहे हो लेकिन कफ़न के डिमांड में कमी नही है. कफन का जिस तरीके से डिमांड बढ़ी है उससे साफ है कि कोरोना ने बहुतों की जान ली है भले ही सरकारी आंकड़ा कुछ कहे लेकिन कफन की इस बढ़ी हुई डिमांड से जो अंदाजा लग रहा है उससे एक भयावह तस्वीर उभर कर सामने आ रही है.