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बिहारः बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं, क्या नीतीश कुमार बदल रहे हैं?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अब कुछ बदले-बदले नजर आ रहे हैं. न सिर्फ बीजेपी को लेक उनके तेवर बदल रहे हैं, बल्कि उनके कामकाज का तरीका भी बदल रहा है.

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सीएम नीतीश कुमार (फाइल फोटो-PTI)
सीएम नीतीश कुमार (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नीतीश के कामकाज का तरीका भी बदल रहा
  • नीतीश के विचार बीजेपी से मेल नहीं खा रहे

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अब कुछ बदले-बदले नजर आ रहे हैं. खासकर पेगासस (Pegasus) पर दिए गए बयान के बाद उनका अंदाज़ बदला नजर आ रहा है. नीतीश कुमार ने फोन टैपिंग मामले की जांच के साथ संसद में इस पर चर्चा करने के जरूरत पर भी बल दिया.

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यही नहीं, उनके कामकाज के ढंग में भी बदलाव दिख रहा है. भले ही 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी की सीटें कम हो गईं लेकिन उनके कामकाज के तरीके में फर्क दिख रहा है. चाहे वो बालू माफियाओं के साथ-साथ बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई की बात हो या फिर आर्थिक अपराध इकाई के द्वारा अवैध कमाई करने वालों पर कार्रवाई करने का मामला हो. अवैध बालू कारोबार में तो उन्होंने अबतक की सबसे बडी कार्रवाई करते हुए 17 अफसरों को सस्पेंड किया जिसमें 2 आईपीएस अधिकारी भी थे.

मंगलवार को इसी सिलसिले में उन्होंने 5 ज़िलों का सड़क मार्ग से दौरा किया और कोरोना के इस दौर में प्रोटोकॉल का कितना पालन हो रहा है इसका जायजा लिया. 6 अगस्त को अनलॉक 3 प्रक्रिया से पहले वो खुद जानने की कोशिश में रहे कि अब और कितनी ढील देनी है.

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नीतीश कुमार ने 6 साल बाद फिर से जनता दरबार की शुरुआत की है. अब वो जनता से सीधे मिलकर उनकी समस्या सुन रहे हैं और ऑन द स्पॉट उसका निवारण भी कर रहे हैं. 

नीतीश कुमार का 2005 से 2010 का कार्यकाल सबसे अच्छा माना जाता रहा है. लेकिन उसके बाद का कार्यकाल देखें तो 2010 से 2015 के बीच उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ आरजेडी का दामन थामा और 2015 से 2020 के दौरान आरजेडी का साथ छोड़ बीजेपी के साथ गए. कहने का मतलब इन दोनों कार्यकालों में काम कम और राजनीति पर ज्यादा फोकस रहा. यही वजह है कि नीतीश कुमार 2020 से 2025 के अपने कार्यकाल को एक नया आयाम देना चाहते हैं. 

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बीजेपी को लेकर बदल रहे हैं तेवर!

पेगासस मामला हो या फिर जातिगत जनगणना का सवाल हो. कम सीट होने के बावजूद नीतीश ने बीजेपी को आइना तो दिखा ही दिया है. इन दोनों मुद्दे पर नीतीश कुमार के विचार लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) की पार्टी आरजेडी से मेल खा रहे हैं. 

इसी बीच जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को पीएम मटीरियल भी बता दिया तो बीजेपी कोटे के मंत्री ने गठबंधन सरकार में कुछ दिक्कतों का ज़िक्र भी किया. लगभग यही स्थिति 2013 में भी हुई थी जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ था. तब बीजेपी 4 सालों तक सत्ता से बाहर रही लेकिन नीतीश कुमार हमेशा सत्ता में. 

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हालांकि, तब और अब की परिस्थितियों में बहुत अंतर है. आज केंद्र में बीजेपी की मजबूत सरकार है. लेकिन ये भी सोचना गलत नहीं है कि 2019 की लोकसभा चुनाव में बम्पर जीत हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) कोरोना काल मे कुछ कमजोर हुए हैं. खासकर बंगाल में बीजेपी की हार ने भी असर डाला है. यही वजह है कि सहयोगी भी अपनी बात रख रहे हैं. भले ही बीजेपी जातीय जनगणना नहीं चाहती है लेकिन नीतीश कुमार प्रधानमंत्री से मिलकर जातीय जनगणना करने की मांग करेंगे.

नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती अपने पुराने फॉर्म में लौटने की है साथ ही उनकी सरकार ने जो कदम उठाए उसका सख्ती से पालन कराने की. फिर चाहे वो शराबबंदी का मामला हो या फिर भ्रष्टाचार का. 2020 से 2025 के कार्यकाल को मिसाल बनाना है तो बहुत कुछ बदलने की जरूरत है जिसकी शुरुआत उन्होंने कर दी है.

 

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