बिहार की सियासत में राजनीतिक बदलाव के बाद से सियासी कशमकश चल रही है. जेडीयू में अपनी पार्टी का विलय करने वाले उपेंद्र कुशवाहा को उम्मीद थी कि नीतीश कुमार उन्हें अपनी कैबिनेट में जगह देंगे. एक समय तो खुद को पवेलियन में बैठा हुआ बढ़िया बल्लेबाज बताया था, लेकिन नीतीश कुमार उन्हें सरकार की पिच पर नहीं उतारा रहे. वह दिल्ली से बिहार लौट गए हैं, लेकिन लगता कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्ते पटरी पर नहीं चल रहे हैं. कुशवाहा की बातों से ही उनकी बेचैनी साफ झलक रही है.
दिल्ली के एम्स में भर्ती रहते हुए जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की बीजेपी नेताओं से मुलाकात ने सियासी चर्चाओं को हवा दे दी. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी (जेडीयू) ही दो-तीन बार बीजेपी के संपर्क में गई और फिर अलग हुई. बीजेपी के नेताओं से हमारी पार्टी में जो जितना बड़ा नेता है, वो उतना ही बड़ा संपर्क में है. हमारी चिंता का विषय है कि जेडीयू कमजोर हो रही है, इसकी मजबूती के लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं.
JDU के पोस्टर से कुशवाहा गायब
वहीं, नीतीश कुमार ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा जो कुछ कह रहे हैं, उनसे ही पूछा जाना चाहिए. इससे पहले नीतीश ने कहा था कि वह तो दो-तीन बार पार्टी छोड़कर गए थे और फिर खुद वापस आए हैं. वे यह भी कह रहे कि उपेंद्र कुशवाहा की क्या इच्छा है, यह उनको नहीं मालूम है. इतना ही नहीं पटना में जेडीयू की ओर से कई पोस्टर लगाए गए हैं, जिसमें नीतीश कुमार समेत तमाम बड़े नेताओं की फोटो लगी है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा की तस्वीर गायब है. ऐसे में नीतीश-कुशवाहा की सियासी राह एक बार फिर से जुदा होती दिख रही है?
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद ही उपेंद्र कुशवाहा 14 मार्च 2021 को अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर दिया था. इस विलय के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में घर वापसी कर गए थे. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा को उम्मीद थी कि नीतीश कैबिनेट में उन्हें मंत्री के तौर पर शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. कुशवाहा ने जब विलय किया था तो नीतीश कुमार एनडीए के साथ थे, लेकिन अब महागठबंधन का हिस्सा है.
उपेंद्र कुशवाहा खुद को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के सवाल पर कहा था कि वह संन्यासी तो नहीं हैं. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा के डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा तेज हो गई थी, लेकिन नीतीश कुमार ने उससे भी इनकार कर दिया है. एक तरह से कुशवाहा के लिए तब तक किसी बड़े पद की उम्मीद पर पानी फिर गया जब राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का दूसरी बार अध्यक्ष बना दिया. कुशवाहा को न तो मंत्री बनाया गया, न ही डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली और न ही जेडीयू की कमान हाथ आई. उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर जेडीयू के भीतर खुद को असहज महसूस करने लगे हैं.
बीजेपी के साथ हाथ मिलाने पर क्या होगा?
जेडीयू में अपनी पार्टी का विलय करने के बाद उपेंद्र कुशवाहा के पास बहुत कम विकल्प बचे हैं, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई. वह इस समय खुद ऊहापोह की स्थिति में हैं, क्योंकि उनकी कशमकश इस बात को लेकर है कि अगर जेडीयू में रहते हैं तो उनकी आगे की राजनीति का क्या होगा, तो दूसरी तरफ बीजेपी के साथ हाथ मिलाने पर भी उनका कोई खास भला होता नहीं दिख रहा है.
नीतीश कुमार के प्रति मरते दम तक समर्पित रहने का सार्वजनिक रूप से कसम खाने वाले उपेंद्र कुशवाहा की सियासी बेचैनी बढ़ती जा रही है. शराबबंदी कानून को फेल बताने और शरद यादव के निधन के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने यह कहा था कि शरद यादव ने जिसे बनाया उन लोगों ने ही अंतिम समय में मुंह मोड़ लिया. इस तरह से उन्होंने कहीं न कहीं नीतीश और लालू यादव पर निशाना साधा था तो अब बीजेपी नेताओं के साथ भी मेल-मिलाप शुरू कर दिया है, लेकिन अभी भी जेडीयू को मजबूत करने की बात कर रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा का जेडीयू को कमजोर बताना बड़ा सियासी संकेत दे रहा है.
क्यों लिया था बीजेपी में विलय का फसैला?
हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने एक समय कहा था आइडियोलॉजी को बर्बाद करने की हो रही साजिश को नाकाम करने के एक खास मिशन से मैंने अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में करने का फैसला लिया था, क्योंकि हमारे सभी साथियों का निष्कर्ष था और है कि राज्य ही नहीं पूरे देश के स्तर पर नीतीश कुमार एक मात्र ऐसे कर्मठ, अनुभवी और साफ छवि के नेता हैं, जिनके नेतृत्व में इस विचार धारा को बचाया और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इस बयान के एक साल बाद ही बीजेपी नेताओं से संपर्क कर रहे हैX और उन्हें पार्टी में लेने का आफर भी दे रहे हैं.
हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने पटना लौटते ही एयर पोर्ट पर कहा कि मैं जेडीयू में में हूं. मेरे लिए चिंता की बात ये है कि मेरी पार्टी कमजोर हो रही है. वो पार्टी को मजबूत करने का ही काम कर रहे हैं. जेडीयू के बारे में कोई व्यक्ति पार्टी की सच्चाई बताने का काम कर रहा है तो उसका कोई दूसरा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए, जहां तक बीजेपी से संपर्क में रहने की बात है तो यह मेरे अलावा कोई तय नहीं कर सकता. साथ ही उपेंद्र कुशवाहा ने पत्रकारों से कहा कि नीतीश कुमार से मिलने के लिए और उनसे बात करने के लिए उन्हें किसी मिडिएटर की जरूरत नहीं है. इस तरह से उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर से बिहार की सियासी केंद्र में बन गए हैं, जिसे लेकर तरह-तरह की राजनीतिक चर्चा गर्म है.