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राज्यसभा चुनाव पर बिहार में जारी है सियासी ड्रामा, बीजेपी के खि‍लाफ लालू-नीतीश आए साथ

बिहार में 19 जून को होने वाला राज्यसभा चुनाव किसी थ्रिलर ड्रामे से कम नहीं. बीजेपी के समर्थन के सहारे साबिर अली और अनिल शर्मा जेडीयू प्रत्याशियों को मात देने में कामयाब होंगे या फिर अपने धुर विरोधी लालू यादव के समर्थन से बिहार के पूर्व सीएम नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित करने में कामयाब होंगे यह तो वोटों की गिनती के बाद ही साफ होगा. इस बीच सियासत तेज है.

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बिहार में 19 जून को होने वाला राज्यसभा चुनाव किसी थ्रिलर ड्रामे से कम नहीं. बीजेपी के समर्थन के सहारे साबिर अली और अनिल शर्मा जेडीयू प्रत्याशियों को मात देने में कामयाब होंगे या फिर अपने धुर विरोधी लालू यादव के समर्थन से बिहार के पूर्व सीएम नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित करने में कामयाब होंगे यह तो वोटों की गिनती के बाद ही साफ होगा. इस बीच सियासत तेज है, जोड़-तोड़ की राजनीति जोरों पर है और ऐसे में नतीजे बहुत हद तक जीतन राम मांझी की सरकार का भविष्य भी तय करेंगे.

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लालू बोले, नीतीश तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं
नीतीश ने फोन करके अपने उम्मीदवारों के लिए समर्थन मांगा तो पहले लालू ने पहले तो सियासी हमला किया, फिर विधायक दल की बैठक की दुहाई देकर आगे की रणनीति पर सस्पेंस बना दिया. मंगलवार को विधायक दल की बैठक हुई, 21 में से 4 एमएलए नदारद रहे. इसके बाद एक और मीटिंग हुई. आरजेडी सुप्रीमो ने फैसला किया कि बीजेपी की राजनीति को मात देना जरूरी है इसलिए उनकी पार्टी के विधायक नीतीश के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे.

लालू ने दिया समर्थन तो नीतीश बोले...थैंक्यू
आरजेडी का समर्थन मिला तो नीतीश ने धन्यवाद देने में देरी नहीं लगाई. अपने घर पर बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश ने कहा कि बीजेपी का असली चेहरा सबके सामने आ गया है. बीजेपी मांझी सरकार को गिराने की योजना बना रही थी पर वह सफल नहीं होगी. बीजेपी राज्यसभा चुनाव में खुलेआम पार्टियों में तोड़-फोड़ में लगी हुई थी, पर यह साजिश विफल हो गई है. हमारी पार्टी लालू यादव को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देती है.

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लालू के फैसले के बाद बीजेपी का ऐलान
सियासी विरोधियों के साथ आने के बाद बीजेपी ने ऐलान किया कि वह जेडीयू के बागी विधायकों के उम्मीदवार का समर्थन करेगी. पार्टी विधायकों के साथ हुई बैठक के बाद सुशील मोदी ने बताया कि उनकी पार्टी साबिर अली और अनिल शर्मा के पक्ष में वोट डालेगी.

क्या है इस राज्यसभा चुनाव की अहमियत
इन चुनावों पर बहुत हद तक बिहार की मौजूदा सरकार का भविष्य टिका हुआ है. दरअसल, मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कांग्रेस, सीपीआई और आरजेडी के बाहरी समर्थन से विधानसभा में बहुमत साबित करने में कामयाब हो सके थे. लेकिन मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद जेडीयू के कुछ विधायकों ने बगावती तेवर अख्तियार कर लिए. विरोध सार्वजनिक हो गया. निशाने पर नीतीश कुमार आ गए. जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव के समर्थक माने जाने वाले इन विधायकों ने अपनी ही पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पहले निशाना साधा फिर दो सीटों पर अपने उम्मीदवार भी उतार दिए. जेडीयू की ओर से गुलाम रसूल बलियावी और पूर्व राजदूत पवन वर्मा के खिलाफ साबिर अली तथा रियल एस्टेट कंपनी आम्रपाली ग्रुप के एमडी अनिल शर्मा ने पर्चा भरा जिन्हें बागियों का समर्थन मिल गया. हालांकि नीतीश अब भी इस उम्मीद में हैं कि बागी वापस लौटेंगे और जीत उनकी ही होगी. अगर ऐसा होता है तो जीतन राम मांझी सरकार के लिए आने वाले दिन अच्छे हैं. लेकिन साबिर अली या फिर अनिल शर्मा की जीत से नीतीश की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. खासकर यह साफ हो जाएगा कि अब पार्टी में ही उनका वो रसूख नहीं है. बिहार में जल्द ही चुनाव की मांगें तेज हो जाएंगी. आने वाले दिन में कई बागी विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं.

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बदल सकते हैं धर्म और जाति आधारित सियासी समीकरण
बिहार की पूरी सियासत मुस्लिम मतदाताओं के आसपास केंद्रित हो गई है. खासकर लोकसभा चुनाव के नतीजों से यह साफ हो गया है कि अगड़ी जाति के वोटर पूरी तरह से बीजेपी के साथ हैं. कभी नीतीश के समर्थक माने जाने वाले महादलित वोटरों में भी बीजेपी सेंध लगाने में कामयाब हुई है पर विधानसभा में इन मतदाताओं का रुख क्या होगा, यह आने वाला वक्त ही तय करेगा. यादव अब भी लालू के साथ हैं तो कुर्मी और कोइरी मतदाताओं के लिए नीतीश ही एकमात्र विकल्प हैं. पर धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण होता है तो लालू और नीतीश बिहार की सियासत में हाशिये पर चले जाएंगे. ऐसे में करीबन 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता अहम हैं. क्या विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए लालू और नीतीश साथ आएंगे?

इसके बारे में फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी और जातिगत समीकरण इस दोस्ती के खिलाफ हैं. भले ही जनता दल के जमाने में यादव और कुर्मी जात कभी एक साथ हुआ करते थे. पर वर्चस्व की लड़ाई में बिहार में बहुत कुछ बदल चुका है. अन्य पिछड़ा वर्ग में इन दोनों जातियों के अलावा भी अन्य जातियां हैं जिनकी भूमिका अहम हो गई है. इन सबके बीच यह साफ हो गया है कि सियासत सिर्फ लोकसभा चुनाव ही नहीं बल्कि राज्यसभा के चुनावों में भी हावी रहती है. नीतीश ने जहां इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है तो बीजेपी चुपचाप बिना सामने आए शतरंज की बिसात पर अपने दांव खेल रही है.

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