scorecardresearch
 

बिहार में BJP और महागठबंधन के बीच 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात', सीमांचल में रोचक हो रही सियासी जंग

महागठबंधन में नीतीश कुमार की एंट्री के बाद बीजेपी अपने दम पर बिहार में पैर पसारने में जुटी है. इसी कड़ी में अमित शाह 23-24 सितंबर को सीमांचल का दौरा करेंगे और रैली को संबोधित करेंगे. शाह की रैली के जवाब में महागठबंधन ने भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सीमांचल में रैली करने की रूप रेखा बनाई है.

Advertisement
X
अमित शाह और नीतीश कुमार
अमित शाह और नीतीश कुमार

बिहार में सियासी बदलाव के बाद अब सीमांचल राजनीतिक का अखाड़ा बनने जा रहा है. एनडीए से नाता तोड़कर नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं तो बीजेपी बिहार में अपने पैर पसारने की तैयारी कर रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 23-24 सितंबर को मुस्लिम बहुल सीमांचल के पूर्णिया और किशनगंज में रैली करेंगे तो महागठबंधन ने उसी इलाके में रैली करने की रूप रेखा बनाई है. इस तरह बिहार में बीजेपी और महागठबंधन एक दूसरे को किसी तरह का कोई सियासी मौका नहीं देना चाहते.
 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीजेपी से नाता तोड़ने और महागठबंधन में लौटने के बाद अमित शाह सीमांचल के दो दिवसीय दौरे पर 23-24 सितंबर को रहेंगे. मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र के पूर्णिया और किशनगंज इलाके में अमित शाह के दौरे को लेकर बीजेपी जबरदस्त तैयारी में लगी हुई है.

Advertisement

अश्विनी चौबे ने स्पष्ट किया है कि अमित शाह के मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में दौरे का मुख्य मकसद वहां पनप रहे अलगाववादी और पीएफआई के नेटवर्क को ध्वस्त करना है. ऐसे में जो लोग उनके समर्थन में हैं और तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं, वे बेचैन हैं. 

महागठबंधन भी करेगा सीमांचल क्षेत्र में जनसभाएं

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय अमित शाह के दौरे के बाद अब महागठबंधन ने भी फैसला किया है कि सीमांचल क्षेत्र में जनसभाएं करेंगे. बीजेपी के रैली का जवाब देने के लिए महागठबंधन ने भी सीमांचल के पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार में संयुक्त महागठबंधन की ओर से महारैली यानी बड़ी रैली करने की रूप रेखा बना रही. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के अगुवाई में महागठबंधन रैली करेगा. 

JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि अमित शाह सीमांचल में रैली कर बिहार के साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी मंशा है कि ध्रुवीकरण हो. भाजपा के पास बिहार में सांप्रदायिक तनाव फैलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. वो इसी तरह की कोशिश कर चुनावी फायदा उठाना चाहते हैं. हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाइयों को विभाजित करने का प्रयास करना चाहते हैं, लेकिन बिहार की महागठबंधन की सरकार पूरी तरह से सचेत है. उनकी कोई मंशा सफल नहीं होगी. 

Advertisement

ललन सिंह ने कहा कि अमित शाह की रैली के जवाब में महागठबंधन की भी रैली होगी, लेकिन यह साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी एकता बढ़ाने के लिए होगी. इसके लिए हमने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से आग्रह किया था जिसे उन्होंने मान लिया है और और हमने रैली को लेकर फैसला कर लिया है. हमें पूरी उम्मीद है कि महागठबंधन के तमाम सहयोगी इसमें शामिल होंगे.

बिहार के सीमांचल में बीजेपी और महागठबंधन के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है. बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार में 35 प्लस सीटें जीतने का टारगेट रखा है तो महागठबंधन विपक्षी एकजुटता पर काम कर रहा है. बिहार में खुद को महागठबंधन मजबूत मान रहा है और दूसरे राज्यों में भी ऐसी ही कवायद की जा रही है. इसी के चलते बिहार की सियासी तपिश काफी गर्म रहने वाली है.

सीमांचल में 40 से 70 फीसदी आबादी अल्पसंख्यकों की

माना जा रहा है कि शाह महागठबंधन के मजबूत दुर्ग में मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाकर और नीतीश सरकार के खिलाफ माहौल बनाकर राज्य में फतेह करने की सियासी बिसात बिछाएंगे. बीजेपी ने शुरू से ही सीमांचल को अपने टारगेट में इसलिए रखा है, क्योंकि इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है. सीमांचल में 40 से 70 फीसदी आबादी अल्पसंख्यकों की है. खासकर इस इलाके में बांग्लादेश घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में अमित शाह अपने सीमांचल दौरे पर इस मुद्दे को रैली में उठा सकते हैं.

Advertisement

दरअसल, सीमांचल के जिलों में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है, जिसके चलते बीजेपी जनसंख्या के असंतुलन और घुसपैठ को मुद्दा बनाती रही है. इतना ही नहीं महागठबंधन के दलों पर इस इलाके में तुष्टिकरण के आधार पर वोटों खींचने का आरोप लगाती रही है. जेडीयू के साथ होने के चलते बीजेपी खुलकर हिंदुत्व कार्ड नहीं खेलती थी, लेकिन बदले हुए माहौल में अपने एजेंडे पर सियासी समीकरण सेट करने का मौका दिख रहा है.

सीमांचल में चार लोकसभा सीट

बीजेपी बिहार में 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से अपनी जमीन तैयार करने में जुट गई है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने इस क्षेत्र की 4 लोकसभा सीटों में से एक अररिया से जीत सकी थी तो एनडीए में रहते हुए जेडीयू को कटिहार और पुर्णिया सीट मिली थी. ये दोनों ही सीटें परंपरागत रूप से बीजेपी की मानी जाती रही हैं. इसके अलावा किशनगंज सीट से कांग्रेस को जीत मिली थी. अब जेडीयू ने रास्ते अलग कर लिए हैं तो बीजेपी यहां एक बार फिर से चार की सीटों सीटों पर जीत के लिए प्लान बना रही है. 

सीमांचल में 24 विधानसभा सीट

सीमांचल के इलाके में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से 16 पर महागठबंधन का कब्जा है. कांग्रेस के पांच आरजेडी के पास सात सीटें हैं तो जेडीयू के पास चार सीटें हैं. भले ही यह इलाका मुस्लिम बहुल है, लेकिन यहां अति पिछड़े और पिछड़े वोटर की भी अच्छी खासी आबादी है. आरजेडी यहां पर मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिए मजबूत मानी जाती है तो जेडीयू मुस्लिम और अतिपिछड़े के दम पर जीतती रही है. 

Advertisement

मुस्लिम वोटों के सहारे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी सीमांचल में 5 सीटें जीतकर बिहार में दमदार एंट्री की थी, लेकिन उसके चार विधायक आरजेडी के साथ चले गए हैं. ओवैसी की पार्टी दोबारा से सीमांचल में सक्रिय हैं तो बीजेपी की नजर भी इसी इलाके पर है. सीमांचल के किशनगंज में एक समय बीजेपी के नेता शाहनवाज हुसैन सांसद रह चुके हैं और अब बिहार में वो सक्रिय हैं. 

 

Advertisement
Advertisement