बिहार में आरजेडी की छतरी के नीचे दिग्गज 'यादव' नेताओं की गोलबंदी हो रही है. पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव घर वापसी करने जा रहे हैं. देवेंद्र यादव अपने समर्थकों के साथ बुधवार को लोहिया जयंती के मौके पर आरजेडी का दामन थामेंगे. साथ ही वो अपनी पार्टी समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक का विलय आरजेडी में करेंगे. इससे पहले शरद यादव ने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का विलय कर चुके हैं और अब बारी देवेंद्र यादव की है.
बिहार में शरद यादव और देवेंद्र प्रसाद यादव ने कभी आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर सियासी पारी का आगाज किया, लेकिन वक्त के साथ एक दूसरे के विरोधी हो गए थे. आपातकाल के दौर में निकले इन तीनों ही नेताओं का अपना-अपना सियासी आधार रहा है. शरद यादव तो लालू प्रसाद यादव के खिलाफ लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं तो देवेंद्र यादव आरजेडी के खिलाफ किस्मत आजमा चुके हैं.
शरद यादव और देवेंद्र यादव ने एक दौर में नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ रहते हुए लालू यादव के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. इसका आरजेडी को सियासी खामियाजा भी भुगतना पड़ा था, लेकिन वक्त ने दोनों ही नेताओं को ऐसी जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है कि जिसके खिलाफ अभी तक बगावत का झंडा लेकर चल रहे थे अब उसी के झंडे के नीचे आकर बीजेपी और नीतीश कुमार से दो-दो हाथ करेंगे.
बता दें कि आपातकाल के खिलाफ शरद यादव और देवेंद्र यादव ने अपनी सियासी पारी का आगाज जेपी आंदोलन से किया था. शरद यादव 1974 में मध्य प्रदेश के जबलपुर से सांसद बन गए तो देवेंद्र यादव 1977 में बिहार से विधायक चुने गए. वहीं, लालू यादव ने भी इस दौर में सियासत में कदम रखा. तीनों ही नेता एक साथ चले और जनता दल तक साथ रहे. देवेंद्र यादव बिहार में कर्पुरी ठाकुर की सरकार में मंत्री रहे तो लालू यादव और शरद यादव केंद्र में थे. हालांकि, तीनों नेताओं की सियासी राह तब जुदा हुई जब लालू यादव मुख्यमंत्री बने.
जनता दल से अलग लालू यादव ने आरजेडी का गठन कर लिया तो शरद यादव ने जेडीयू बना ली. देवेंद्र यादव कुछ समय तक आरजेडी में रहे और फिर जेडीयू में शामिल हो गए. इस दौरान दोनों ही नेता कई बार सांसद बनने से लेकर केंद्र में मंत्री रहे. देवेंद्र प्रसाद यादव वीपी सिंह और एचडी देवगौड़ा की सरकार में मंत्री रह चुके हैं और पांच बार झंझारपुर सीट से सांसद रहे. शरद यादव जनता पार्टी की सरकार से लेकर जनत दल, संयुक्त मोर्चा और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे.
शरद यादव और देवेंद्र यादव ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर लालू यादव से बिहार के सियासी मैदान में दो-दो हाथ किए, जिसमें वो सफल भी रहे. हालांकि, नीतीश कुमार के साथ लंबी पारी खेलने के बाद देवेंद्र यादव ने नाता तोड़ा और 2017 में शरद यादव ने अपनी अलग सियासी राह पकड़ी. देवेंद्र यादव ने समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक का गठन किया तो शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल बनाई, लेकिन दोनों ही नेता को कोई भी सफलता नहीं मिली. ऐसे में अब दोनों ने मौके की नजाकत को समझते हुए आरजेडी के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया.
शरद यादव तीन दशकों से अधिक समय के बाद वह अब दोबारा लालू प्रसाद के साथ आए हैं और यह ऐसे वक्त पर हो रहा है जब दोनों नेता अपने राजनीतिक करियर के अंतिम छोर पर दिख रहे हैं. वहीं, देवेंद्र यादव ढाई दशक के बाद आरजेडी में वापसी कर रहे हैं. शरद यादव ने अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करने के दौरान कहा था कि यह कदम (विलय) देश में मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बिखरे हुआ जनता परिवार को एक साथ लाने के लिए मेरे नियमित प्रयासों की एक पहल है. सामाजिक न्याय के एजेंडे को फिर से मजबूत करना है.
दरअसल, बिहार की सियासत जिस तरह से लालू यादव के जेल जाने के बाद आरजेडी को तेजस्वी यादव ने मजबूती के साथ खड़ा किया है. ऐसे में बीजेपी और नीतीश विरोधी समाजवादी नेताओं को आरजेडी एक विकल्प के रूप में दिख रही है. ऐसे में आरजेडी से अलग रहते हुए दोनों ही नेता सफल नहीं हो सके हैं और अब उन्होंने आरजेडी में अपनी पार्टी का विलय करके मजबूत सियासी ठिकाना तलाश लिया है, जिससे वो आगे की राजनीतिक पारी को बढ़ा सकें.