बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई मंचों पर बिहार के विकास का दावा कर चुके हैं. यह सच भी है और कई लोगों ने भी माना है कि बिहार की तस्वीर बदल रही है, लेकिन यह भी एक हकीकत है कि बिहार के 81 फीसदी से ज्यादा घरों में अब भी शौचालय नहीं है.
यह आंकड़ा बिहार के विकास की हकीकत को बयां कर रहा है. सरकार ने हालांकि इस ओर पहल करते हुए घर-घर शौचालय निर्माण का अभियान चलाया है और मुखिया या जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने के लिए घरों में शौचालय निर्माण को अनिवार्य कर दिया गया है.
ऐसा नहीं कि शौचालय को लेकर लोगों में जागरुकता नहीं है. बिहार में महिलाएं शौचालय को लेकर ज्यादा जागरुक हुई हैं और वे अब ऐसे घरों में ब्याह करना ही नहीं जाना चाहतीं, जिस घर में शौचालय नहीं है.
गया जिले के लखनपुर पंचायत की रहने वाली ललिता इन दिनों गांव में शौचालय बनने से खुश है. वह कहती है कि पहले किसी के जमीन पर शौच कर देने से विवाद हो जाता था. इसी समस्या को देखते हुए एक स्वयंसेवी संगठन ने पंचायत में करीब 160 शौचालयों का निर्माण करवाया है. वह कहती हैं कि पहले गरीबों के घर में प्लास्टिक शीट से शौचालय बनाया जाता था.
दूसरी तरफ, औरंगाबाद जिले के नेउरा गांव की रहने वाली अमिषा खुद नित्यक्रिया में असुविधा की पीड़ा सहते-सहते आजिज आ गई हैं, लेकिन वह अपनी देवरानी को शौचालय का तोहफा देना चाहती हैं. वह कहती हैं कि उनके देवर शादी तय है मगर वह नहीं चाहती हैं कि उनकी देवरानी को भी नित्यक्रिया के लिए परेशान होना पड़े.
वह कहती हैं कि उनके घर में शौचालय का निर्माण हो रहा है और यह शौचालय वह देवरानी को तोहफे में देंगी. उनका कहना है कि सचमुच शौच के लिए बाहर खुले में जाना सबसे ज्यादा परेशानी का कारण है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ तो बहू को घूंघट में रहने की नसीहत दी जाती है और दूसरी ओर उसे बाहर खुले में बैठकर बेपर्दा होना पड़ता है.
वैसे यह कहानी केवल ललिता या अमिषा की नहीं है. राज्य के प्रत्येक क्षेत्र में कमोबेश हालत यही है. यह 21वीं सदी के उस बिहार की कहानी है जहां की धरती पर जन्मे सुलभ इंटरनेशल के संस्थापक डॉ. विंदेश्वर पाठक शौचालय निर्माण को एक आंदोलन का रूप देकर कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं. इधर हालांकि लोगों में जागरुकता आई है. कम आय वाले लोग सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के तहत शौचालय बनाने की बात कर रहे हैं.
राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्र ने बताया कि अब सरकार शौचालय निर्माण के लिए 9100 रुपये दे रही है. उन्होंने कहा कि मनरेगा योजना से 4500 रुपये और निर्मल भारत अभियान के तहत 4600 रुपये दिए जा रहे हैं. लाभार्थी को खुद सिर्फ 900 रुपये खर्च करना है.
मंत्री कहते हैं कि सरकार ने निर्मल ग्राम और प्रखंड बनाने के लिए कई पुरस्कारों की घोषणा की है. जिन पंचायतों में सभी घरों में शौचालय होगा, उसे निर्मल ग्राम पुरस्कार दिया जाएगा तथा जिन प्रखंडों में शत-प्रतिशत घरों में शौचालय निर्माण होगा. उसे निर्मल प्रखंड पुरस्कार दिया जाएगा. ऐसे प्रखंडों को 25 लाख रुपये दिए जाएंगे.
नीतीश मिश्र बताते हैं कि चालू वित्तवर्ष में 10 लाख शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है. बिहार को वर्ष 2022 तक खुले में शौच से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. मंत्री भी मानते हैं कि बिहार में 17.6 प्रतिशत परिवारों में ही शौचालय है.
वह कहते हैं कि सरकार ने पंचायत और नगरपालिका चुनाव लड़ने वाले जनप्रतिनिधियों को अपने घर में शौचालय निर्माण कराना अनिवार्य कर दिया है, अब जिन प्रतिनिधियों के घर में व्यक्तिगत शौचालय नहीं होगा, वे चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे.