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बिहार को रेल बजट में 'इनायत' का इंतजार

देश को सबसे अधिक रेल मंत्री देने वाले बिहार को नरेन्द्र मोदी सरकार के पहले रेल बजट से काफी उम्मीद है. बिहार में कई ऐसी रेल परियोजनाएं हैं जिसमें काम तो शुरू हुआ परंतु वह वर्षों के बाद भी अधूरा है जबकि कई रेलगाड़ियों की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं.

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देश को सबसे अधिक रेल मंत्री देने वाले बिहार को नरेन्द्र मोदी सरकार के पहले रेल बजट से काफी उम्मीद है. बिहार में कई ऐसी रेल परियोजनाएं हैं जिसमें काम तो शुरू हुआ परंतु वह वर्षों के बाद भी अधूरा है जबकि कई रेलगाड़ियों की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं. बिहार के लोगों का आरोप है कि पिछले दो-तीन वर्षों के रेल बजट में लगातार बिहार की उपेक्षा हो रही है. जो कुछ भी बिहार को मिल रहा है वह लॉलीपॉप से ज्यादा कुछ नहीं है.

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लोग मानते हैं कि बिहार आज रेल के क्षेत्र में काफी पीछे है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, लोजपा के अध्यक्ष रामविलास पासवान जब देश के रेल मंत्री थे तो बिहार में कई रेल परियोजनाएं आई और कई महत्वपूर्ण रेलगाड़ियां भी मिली परंतु उसके बाद से बिहार को रेल मंत्रालय की इनायत कभी नहीं मिल पाई.

बिहार में कई ऐसे क्षेत्र भी हैं जो आज तक रेल पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. लोगों का मानना है कि ऐसे तो बिहार ने कई रेल मंत्री दिए हैं और इस सरकार में भी बिहार के रामविलास पासवान समेत कई मंत्री हैं ऐसे में इस रेल बजट से बिहार को कई उम्मीदें हैं.

बिहार में पूर्व रेल मंत्री लालू के ड्रीम प्रोजेक्ट में मधेपुरा विद्युत इंजन कारखाना था. दस वर्षों के बाद भी कारखाना शुरू होने की बात तो दूर अभी तक इस परियोजना के लिए कोई बड़ी प्रगति नहीं हुई है. जब इस कारखाने की आधारशिला रखी गई थी तब इसके निर्माण की लागत 1000 करोड़ रुपये बताई गई था.

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जब देश के रेल मंत्री के पद पर लालू प्रसाद थे तब 2006 में छपरा के रेल पहिया संयंत्र को मंजूरी मिली थी परंतु अब तक इस कारखाने से रेल का पहिया नहीं निकल सका है. 31 जुलाई 2010 की समय अवधि तक बनकर तैयार हो जाने वाले इस कारखाने में प्रतिवर्ष एक लाख पहिया बनाने का लक्ष्य था.

इसी तरह हरनौत रेल कारखाना आज तक सरजमीं पर नहीं उतर सका है तो दीघा-सोनपुर सड़क सह रेल पुल का काम अब तक पूरा नहीं हो सका है. इसी तरह मुंगेर में गंगा नदी पर निर्माणाधीन रेल सह सड़क पुल का निर्माण कार्य भी 70 प्रतिशत से ज्यादा पूरा हो चुका है परंतु यह बीच में ही रुक गया है.

पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अर्थशास्त्री एन के चौधरी कहते हैं कि रेल मंत्री तो बिहार से कई हुए परंतु रेल के मामले में आज भी बिहार काफी पिछड़ा है. वे कहते हैं कि बिहार का एक बड़ा क्षेत्र नेपाल के साथ जुड़ा हुआ है जिसके लिए रेलों की संख्या इन क्षेत्रों में बढ़ना काफी आवश्यक है. उनका कहना है कि मोदी के 'अच्छे दिन' बिहार के लिए अवश्य होने चाहिए.

बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स का भी मानना है कि पटना से नई दिल्ली और मुंबई के बीच और एक्सप्रेस ट्रेनों की जरूरत है. बिहार के लोगों का कहना है कि राज्य में आज पर्यटकों की संख्या गोवा जैसे पर्यटक स्थलों से भी अधिक है ऐसे में आवागमन की सुविधा न होना इस क्षेत्र की उपेक्षा होगी. स्थानीय लोग कहते हैं कि बिहार और झारखंड की राजधानी रांची को जोड़ने के लिए भाया डालटनगंज होकर भी एक्सप्रेस ट्रेन की जरूरत है.

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बहरहाल, बिहार के लोगों को पेश होने वाले रेल बजट से कई आशा हैं, ऐसे में बिहारवासियों का कहना है अब तो रेल के क्षेत्र में बिहार के लिए 'अच्छे दिन' आने ही चाहिए.

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