बिहार की सियासत में रोज एक मोड़ आ रहे हैं. सूबे की सत्ता पर भले ही बीजेपी और जेडीयू काबिज हैं, लेकिन दोनों ही दलों के रिश्ते को लेकर हर रोज नए-नए दावे किए जा रहे हैं. आरसीपी सिंह के जेडीयू से इस्तीफे के बाद राजनीति और भी गरमा गई है. पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में रविवार को हुई नीति आयोग की बैठक से सीएम नीतीश कुमार ने दूरी बनाए रखा तो दूसरी तरफ जेडीयू ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर रहने का फैसला किया है. इस तरह टकराव बना हुआ. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नीतीश-बीजेपी के बीच ये रिश्ता क्या कहलाता है?
बता दें कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू ने 2020 में भले ही मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही हैं, लेकिन दोनों दलों के बीच सियासी तल्खी बनी हुई है. जातिगत जनगणना से लेकर एनआरसी-एनपीआर और अग्निपथ योजना सहित कई मुद्दों पर नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग स्टैंड लिया था. वहीं, नीतीश ने अपने ओएसडी को जेडीयू से बाहर निकाला तो बीजेपी के साथ नजदीकियां आरसीपी सिंह की तरह बढ़ गई. जेडीयू बनाम बीजेपी का मामला आरसीपी सिंह के बहाने फिर सतह पर आ गई है.
वहीं, पिछले दिनों पटना में बीजेपी अपने विभिन्न मोर्चों की संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर 200 विधानसभा सीटों के लिए रूप रेखा तैयार की तो इसके जवाब में जेडीयू ने कहा है कि उसकी तैयारी सभी 243 सीटों के लिए है. ऐसे में राष्ट्रीय नीति आयोग की बैठक ही नहीं पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले चार कार्यक्रमों में नीतीश कुमार के ना शामिल होने की वजह से भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री सोमवार को अपना जनता दरबार एक बार फिर से शुरू कर रहे हैं.
बीजेपी और जेडीयू के बीच दोस्ती की डोर से एक-एक धागा उधड़ता जा रहा है. फिलहाल दोस्ती की ये डोर टूटने के कगार पर है या नीतीश कुमार इसे खींच कर बीजेपी को काबू में रखने के प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं. यह सवाल इसीलिए भी उठ रहा है कि क्योंकि सूबे के तीन महत्वपूर्ण दलों के विधायक दल की बैठकें बुलाईं हैं. तीनों ही दलों की बैठकें अगले दोनों दिनों में हो रही हैं. आरजेडी सोमवार को बैठक कर रही है तो जेडीयू और जीतनराम मांझी की HAM मंगलवार को बैठक करेंगी, जिसके चलते सियासी पंडित इसके अलग-अलग निहितार्थ निकाल रहे हैं.
मोदी-शाह के कार्यक्रम से नीतीश की दूरी
पिछले एक महीने पर ही गौर करें तो देखने में आता है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है. कई बार ऐसा हुआ है जब कि केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में नीतीश कुमार शामिल ने दूरी बनाए रखा. 17 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में 'हर घर तिरंगा' अभियान को लेकर मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई गई थी. इसमें नीतीश कुमार नहीं शामिल हुए थे. इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई भोज में भी आमंत्रण के बावजूद नीतीश कुमार नहीं पहुंचे. 25 जुलाई को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहम समारोह में नीतीश कुमार नहीं पहुंचे थे.
पीएम मोदी की अध्यक्षता में रविवार को नीति आयोग की बैठक हुई, जिसमें नीतीश कुमार शामिल नहीं रहे. नीति आयोग सरकार का थिंक टैंक है यानी यह सरकार की नीतियों का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाता है. ऐसे में नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुई, लेकिन सोमवार को मुख्यमंत्री अपना जनता दरबार आयोजित कर रहे हैं और उस कार्यक्रम में खुद शामिल होंगे. पिछले कुछ हफ्तों से उनके स्वास्थ्य और अन्य व्यस्तताओं के कारण रद्द कर दिया गया था, लेकिन फिर से शुरू हो रहा है. ऐसे में मोदी की बैठक से दूरी बनाए रखा तो दूसरी तरफ जनता कार्यक्रम में शिरकत कर रहे हैं.
मोदी कैबिनेट से दूर रहेगी जेडीयू
जेडीयू ने ऐलान किया है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगी. आरसीपी सिंह जेडीयू से एकमात्र नेता केंद्र सरकार में मंत्री थे, लेकिन उनकी कुर्सी चली गई और अब वो भी पार्टी छोड़कर चले गए हैं. जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन (ललन) सिंह ने कहा कि केंद्रीय कैबिनेट का जेडीयू हिस्सा नहीं होगी. 2019 में ही आम सहमति के बाद सीएम नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया था कि हम केंद्र सरकार में शामिल नहीं होंगे और हम इसके साथ काफी मजबूती से खड़े हैं.
दरअसल, जेडीयू ने एनडीए गठबंधन के तहत केंद्र में दो मंत्री पद मांगे थे, लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व इस पर राजी नहीं हुआ था. इस वजह से नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल से बाहर रहने का फैसला किया. हालांकि, सीएम नीतीश कुमार के मर्जी के बगैर जेडीयू के अध्यक्ष रहते हुए आरसीपी सिंह खुद केंद्र मंत्री बन गए थे. बीजेपी के लिए आरसीपी सिंह के मीठे-मीठे बोल नीतीश कुमार को कड़वे लगे. इसका खामियाजा यह हुआ कि पहले उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा और रविवार को पार्टी से बाहर हो गए.
आरसीपी सिंह के जेडीयू छोड़ते ही सियासी घमासान छिड़ गया है और जुबानी जंग तेज हो गई है. आरसीपी सिंह ने जेडीयू को डूबता जहाज बताया और कहा कि नीतीश कुमार कभी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे. इसके उसके जवाब में ललन सिंह ने कहा कि जेडीयू डूबता नहीं, तैरता हुआ जहाज है. कुछ लोग इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ लोग उस जहाज में छेद करना चाहते हैं. नीतीश कुमार ने उन लोगों की पहचान कर ली है, जो नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. जेडीयू की सीटें 43 जनाधार के चलते नहीं बल्कि षडयंत्र की वजह से हुआ. उन्होंने कहा कि तब एक मॉडल तैयार किया गया था, जिसका नाम था चिराग पासवान और अब दूसरा चिराग मॉडल तैयार करने का षड्यंत्र था.
बता दें कि बीजेपी भले ही केंद्र की सत्ता में आठ साल से काबिज हो, लेकिन बिहार में अभी तक अपने दम पर न तो सरकार बना पाई है और न ही अपना मुख्यमंत्री. नीतीश कुमार के सहारे ही बीजेपी बिहार की सत्ता में बनी हुई है. 2020 के चुनाव में बीजेपी जरूर 73 सीटें जीतकर जेडीयू से बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही बैठने में कामयाब रहे. ऐसे में बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ा रही है, लेकिन अभी तक स्थिति नहीं बन पाई है.
बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडा पर बिहार में अपने सियासी कदम बढ़ा रही है और साथ ही सामाजिक समीकरण को भी साधा जा रहा है. इसी मद्देनजर बीजेपी के सभी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में की गई. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पटना की बैठक में दावा किया कि बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी से अधिक सीटें जीतेगी. हालांकि, बिहार की 40 विधानसभा सीटों में 39 पर तो एनडीए का ही कब्जा है तो क्या वे महज एक सीट के बारे में यह बात कह रहे थे, जिस पर कांग्रेस का कब्जा या फिर जेडीयू और एलजेपी को मिली सीटों पर भी चुनाव लड़ने का इरादा है. अमित शाह ने जिस तरह से कहा कि 2024 का लोकसभा और 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. इसके चलते भी जेडीयू के साथ रिश्ते में टकराव दिख रहा है.
जेडीयू संसदीय बोर्ड के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले दिनों कहा था कि 2024 में लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन रहेगा या नहीं रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है. भविष्य की बात अभी नहीं कह सकता हूं. ऐसे ही बात जेडीयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने भी कही थी कि बीजेपी और जेडीयू अगला चुनाव साथ लड़ेंगे. अभी इस बात को हम कैसे कह सकते हैं. इससे साफ जाहिर है कि जेडीयू और बीजेपी के बीच जितने दिन रिश्ते चलने थे वो चल चुके हैं, लेकिन अब दोस्ती टूट की कगार पर खड़ी है?