बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी शायद राजनीतिक रूप से इतने तन्हा कभी नहीं थे जितना अब हैं. अब तो जैसे साया भी उनके साथ नहीं रहा. जब उन्होंने पटना के अपने सबसे अहम साथी को भी महज कुछ मिनटों के (औपचारिकता भर) लिए अपने साथ पाया तो अपनी भावनाओं को छिपा नहीं पाए.
14 नवंबर बाल दिवस के मौके पर पटना एयरपोर्ट पर जो कुछ हुआ, वह बीजेपी के पितामह की पार्टी में हैसियत बताने के लिए काफी था. शाम 3 बजे पटना एयरपोर्ट पर तीन मंत्रियों के स्वागत में जुटी भीड़ ने एयरपोर्ट की धज्जियां उड़ा दी, भीड़ रनवे तक जा पहुंची और मंत्रियों को भीड़ से बचने के लिए बस में सवार होना पड़ा. दूसरी तरफ उसी वक्त आडवाणी तन्हा, बिल्कुल अकेले पटना के दानापुर में बच्चों के एक कार्यक्रम शिरकत कर रहे थे.
पटना के दानापुर में शोषित समाज के बच्चों के बीच बैठे, आडवाणी के साथ एक भी बीजेपी नेता मौजूद नहीं था. उनके काफी करीबी और बड़े समर्थक माने जाने वाले बिहारी बाबू यानी शत्रुघन सिन्हा भी आडवाणी के पास आए तो जरूर, लेकिन ये सिर्फ औपचारिकता भर था. कुछ ही मिनटों में औपचाकिता निभाकर बिहारी बाबू कार्यक्रम के बीच से निकल गए. आडवाणी एक बार फिर उस कार्यक्रम में बिलकुल तन्हा रह गए, लेकिन जब उन्होंने मंच पर बोलना शुरू किया तो उनका ये दर्द सामने आ गया.
उधर पटना एयरपोर्ट पर लगभग उसी वक्त भगदड़ जैसी स्थिति थी, जब नए नवेले मंत्रियों के लिए जुटी समर्थकों की भीड़ ने पटना एयरपोर्ट पर सुरक्षा की धज्जियां उड़ा दीं. ये साफ हो गया कि आडवाणी पटना आए जरूर, लेकिन उन्हें बीजेपी की ओर से पूछने वाला कोई नही था. हालांकि एक न्यूज ऐंजेसी से बात करते हुए आडवाणी ने ये जरूर कहा कि उन्हे पीएम नहीं बन पाने का कोई मलाल नहीं है और देश इस वक्त बड़े बदलाव से गुजर रहा है.
आडवाणी की इस पटना यात्रा ने एक बात तो साफ कर दी कि कभी बीजेपी को अपने हाथों से सजाने-संवारने वाला ये शख्स इतना तन्हा हो चुका है जिसके लिए पार्टी और नेताओं के पास कोई वक्त नहीं है.