बिहार में जातिगत जनगणना कराने की दिशा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जो बुधवार शाम चार बजे प्रस्तावित है. बीजेपी ने जातिगत जनगणना के मसले पर नीतीश कुमार से पहले ही समर्थन देने का वादा कर रखा है, जिसके चलते वो सर्वदलीय बैठक में शामिल भी होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जगनणना को असंभव बताने वाली बीजेपी आखिर बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के एजेंडे का समर्थन करने को कैसे राजी होगी?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य स्तर पर जातिगत जनगणना कराने की ठान चुके हैं, जिसे आरजेडी का पूरा समर्थन हासिल है. ऐसे में नीतीश ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जिसमें बिहार के सभी दल के नेता शामिल होंगे. बिहार के संसदीय एवं शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि विधानसभा में प्रतिनिधित्व वाले सभी दलों के सदस्य इस बैठक में शामिल होंगे और उनके रुख से पता चलता है कि सभी राजनीतिक दल जातिगत जनगणना से सहमत हैं.
सर्वदलीय बैठक में क्या होगा?
सर्वदलीय बैठक में जातिगत जनगणना को लेकर सभी दलों का समर्थन हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके क्रियान्वयन के लिए मंत्रियों की बैठक बुलाएंगे. मंत्रिपरिषद की बैठक में जातिगत जनगणना कराने के लिए एक प्रस्ताव लाया जाएगा. नीतीश सरकार इसे पारित करवाने के बाद बिहार में लागू करने का प्रयास करेगी. नीतीश सरकार अपने संसाधन पर राज्य में जातीय जनगणना कराना चाहती है.
एकसाथ क्यों आ गए नीतीश और तेजस्वी?
दरअसल, यह सारा खेल पिछड़ी जातियों के वोट बैंक का है, जिनकी आबादी 52 फीसद से ज्यादा बताई जाती है. इसीलिए जेडीयू से लेकर आरजेडी तक के सुर जातिगत जनगणना पर एक हैं. पिछले साल 23 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में तेजस्वी यादव सहित बिहार से दस सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जातीय जनगणना कराए जाने की मांग की थी. केंद्र सरकार की ओर से यह कहा गया कि जातिगत जनगणना संभव नहीं है, क्योंकि अब विलंब हो चुका है और जनगणना का फार्मेट नहीं बदला जा सकता. ऐसे में अगर कोई राज्य सरकार चाहे तो अपने स्तर से इसे करा सकती है.
मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े समुदाय के लोग कहते हैं कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है. ऐसे में ओबीसी नेता जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं, जिसके चलते साल 2011 में सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस सर्वे आधारित डेटा जुटाया गया था, लेकिन इसे प्रकाशित नहीं किया गया. ऐसे में आरजेडी ने जातीय जनगणना कराने की मांग को लेकर मोर्चा खोला दिया, जिसके बाद जेडीयू भी सुर में सुर मिलाने लगी.
क्या बीजेपी हो गई मजबूर?
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जातीय जनगणना के मुद्दे पर एक साथ आ गए, जो बीजेपी के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा था. ऐसे में नीतीश कुमार को समर्थन देने का बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी बन गई थी. बिहार के जाति समीकरण से लेकर सियासी हालत ऐसे हैं, जहां बीजेपी अभी भी नीतीश से अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकती. इसके अलावा इसी साल जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर जेडीयू और नीतीश कुमार की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. जेडीयू और आरजेडी जिस तरह से एक साथ खड़े दिख रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के विरोध करने का कोई सियासी असर नहीं होता और उल्टा ओबीसी विरोधी होने का इल्जाम भी लग सकता था.
बिहार की सियासत लंबे समय से ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बीजेपी से लेकर आरजेडी और जेडीयू बिहार में ओबीसी को केंद्र में रखकर अपनी सियासत कर रही हैं. ऐसे में जातिगत जनगणना की डिमांड ओबीसी समुदाय के बीच से उठ रही है. अन्य पिछड़ी जातियों को लग रहा है कि उनकी आबादी का दायरा बड़ा है. ऐसे में जातीय जनगणना के जरिए आरक्षण के 50 फीसदी की सीमा टूटने की ओबीसी को उम्मीद दिख रही है. ऐसे में बिहार की सियासत में कोई भी दल कैसे जातिगत जनगणना का विरोध करने का जोखिम भरा कदम उठा सकती है.
बीजेपी के एजेंडे में ओबीसी
बिहार के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी भले केंद्रीय स्तर पर जातीय जनगणना का विरोध करती रही हो, लेकिन बिहार में वो समर्थन में खड़ी हुई है. ओबीसी राजनीति को बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकती है, क्योंकि इस वक़्त यह अपने उभार पर है. बीजेपी भी इस बात को समझती है. पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने सफल चुनावी अभियानों को देखा है. ओबीसी में प्रभुत्व वाली जातियों के बदले जिन अतिपिछड़ी जातियों का प्रभुत्व नहीं रहा है, उन्हें सियासी तवज्जो देना बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा रहा है. इस तरह नीतीश कुमार के जातिगत जनगणना एजेंडे के समर्थन करना बीजेपी की सोची-समझी रणनीति है.
जनगणना हो भी गई तो क्या होगा?
बीजेपी इस बात को भी बेहतर तरीके से समझ रही है कि जनगणना कराने की जिम्मेदारी राज्य की नहीं बल्कि केंद्र सरकार की होती है. ऐसे में नीतीश कुमार अपने स्तर पर बिहार में जातिगत जनगणना करा भी लेते हैं तो भी उसकी कोई वैधता नहीं होगी. इससे न तो आरक्षण पर कोई असर पड़ेगा और न ही किसी तरह. ऐसे में यह भी जरूरी नहीं है कि नीतीश सरकार की जातिगत जनगणना रिपोर्ट को केंद्र सरकार स्वीकार ही करे.
हालांकि, यह बात जरूर है कि नीतीश सरकार राज्य स्तर पर जातिगत जनगणना कराकर देश के सामने अपने बिहार का एक जातीय आंकड़ा सामने रख सकती है. इसके आधार पर जातिगत जनगणना मुद्दे पर जेडीयू देश में एक बहस खड़ी कर सकती है. इससे ज्यादा उस रिपोर्ट की कोई अहमियत नहीं होगी, क्योंकि न तो राज्य अपने स्तर से ओबीसी के आरक्षण का दायरा बढ़ा सकते हैं और न ही उसे लागू कर सकते हैं. इन्हीं सारे समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने जातिगत जनगणना पर नीतीश के एजेंडे को समर्थन करने का फैसला किया.