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बिहार: जातीय जनगणना मामले में जल्द होगी सुनवाई, नीतीश सरकार फिर पहुंची पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. मगर, बिहार सरकार मामले की शीघ्र सुनवाई पूरी करने की अर्जी के साथ फिर पटना हाईकोर्ट पहुंची है. बिहार सरकार के एडवोकेट जनरल पीके शाही ने इस मामले में जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाई है.

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पटना हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
पटना हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

बिहार में जातीय जनगणना के मामले में सुनवाई शीघ्र पूरा करने की अर्जी के साथ बिहार सरकार फिर पटना हाईकोर्ट पहुंची है. सरकार नौ मई को हाईकोर्ट में अपील के साथ दलील रखेगी. सरकार के एडवोकेट जनरल पीके शाही ने इस मामले में जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाई है. दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को बिहार में जातिगत जनगणना पर रोक लगा दी थी.

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हाईकोर्ट ने कहा था कि अब तक जो आंकड़े इकट्ठा किए गए हैं, उनको नष्ट न किया जाए. कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई दो महीने बाद यानी तीन जुलाई को तय की थी. मगर, बिहार सरकार का अदालत में कहना था कि जातिगत जनगणना का काम 80 फीसदी पूरा हो चुका है. ऑफलाइन काम करीब-करीब पूरा हो चुका है. इसी साल सात जनवरी से शुरू हुई जनगणना का काम 15 मई को पूरा होना तय था.

जातीय जनगणना पर पांच सौ करोड़ रुपये का खर्च

सरकार ने इस अभियान के लिए बिना कोई कानून बनाए पांच सौ करोड़ रुपये खर्च कर काम शुरू भी कर दिया. मगर, काम पूरा होने से ऐन वक्त पहले जातीय जनगणना मामला हाईकोर्ट में गया. पटना हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वी चंद्रन की बेंच ने ये फैसला सुनाया.

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बता दें कि नीतीश सरकार लंबे समय से जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में रही है. नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है. हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ रही है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि जातिगत जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी. केंद्र का कहना था कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है.

केंद्र क्यों नहीं चाहती जातिगत जनगणना? 

केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के समर्थन में नहीं है. पिछली साल फरवरी में लोकसभा में जातिगत जनगणना को लेकर सवाल किया गया था. इसके जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि संविधान के मुताबिक, सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की ही जनगणना हो सकती है. इसके अलावा दूसरी वजह ये भी मानी जाती है कि जातिगत जनगणना से देश में 1990 जैसे हालात बन सकते हैं. फिर से मंडल आयोग जैसे किसी आयोग को गठन करने की मांग हो सकती है. इसके अलावा आरक्षण की व्यवस्था में भी फेरबदल होने की संभावना है.

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