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जातिगत जनगणना पर नीतीश इतने मुखर क्यों? समझें JDU की सियासी रणनीति

बिहार में बीजेपी के सहयोग के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना कराने को लेकर सर्वदलीय बैठक एक जून को बुलाई है. इस दौरान नीतीश राज्य स्तर पर जातीय जनगणना कराने के लिए लोगों की राय लेंगे और कैबिनेट से उसे मंजूरी देंगे. नीतीश कुमार जातीय जनगणना पर फ्रंटफुट कर खेलकर एक तीर से कई सियासी समीकरण पर निशाना लगा रहे हैं?

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जातीय जनगणना के लिए नीतीश कुमार पूरी तरह तैयार
  • बिहार में जातीय जनगणना कराकर क्या संदेश देंगे नीतीश
  • सीएम नीतीश कुमार की नजर क्या 2024 के चुनाव पर लगी है?

जातिगत जनगणना की मांग को लेकर एक बार फिर से सियासत तेज हो गई है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य स्तर पर जातीय जनगणना कराने का इरादा ठान लिया है. इसे लेकर उन्होंने एक जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जिसमें विचार-विमर्श के बाद बिहार में जातिवार जनगणना कराने के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी देंगे. जातीय जनगणना के दांव से नीतीश कुमार ने एक तीर से कई सियासी समीकरण साधने का दांव चला है.  

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जातिगत जनगणना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर बीजेपी खुलकर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है. बीजेपी की बिहार इकाई के कुछ नेता भले ही जातिगत जनगणना करवाने के पक्ष में हों, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी सहमत नहीं है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय संसद में पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकार की जातिगत जनगणना कराने की कोई योजना नहीं है. बीजेपी सरकार इस तरह अपना स्टैंड साफ कर चुकी है तो नीतीश कुमार बिहार में तेजस्वी यादव के सुर में सुर मिलाते हुए जातीय जनगणना कराने की दिशा में कदम उठाने जा रहे हैं. ऐसे में आखिर नीतीश कुमार जातिगत जनगणना को लेकर फ्रंटफुट पर क्यों खेल रहे? 


जातीय जनगणना पर सारा क्रेडिट तेजस्वी न ले जाएं
बता दें कि 1990 के दशक में मंडल कमीशन लागू होने के बाद जिन क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ, उसमें लालू यादव की आरजेडी से लेकर नीतीश कुमार की जेडीयू तक शामिल है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जातिगत जनगणना की मांग को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं तो नीतीश कुमार कैसे पीछे रह सकते हैं. दोनों ही दलों का सियासी आधार ओबीसी वोटबैंक पर टिका हुआ है. ऐसे में नीतीश कुमार जातिगत जनगणना पर सारा राजनीतिक लाभ तेजस्वी यादव को नहीं उठाने देना चाहते हैं, जिसके चलते राज्य स्तर पर जातीय जनगणना कराने का बड़ा सियासी दांव चल रहे हैं. नीतीश कुमार को पता है कि इस मुद्दे पर बीजेपी अगर अपना कदम खींचती है तो उन्हें तेजस्वी का साथ मिल जाएगा. 

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बीजेपी की ओबीसी राजनीति का काउंटर प्लान
बीजेपी के समर्थन से बिहार सीएम बनने के बावजूद नीतीश कुमार का जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मुखर रहने का मकसद बीजेपी के ओबीसी राजनीति को काउंटर करने का प्लान है. नीतीश ओबीसी राजनीति को नज़रअंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि इस वक़्त यह अपने उभार पर है. बीजेपी भी इस बात को समझती है. पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के सफल चुनावी अभियानों को देखा है. ओबीसी में प्रभुत्व वाली जातियों के बदले जिनका प्रभुत्व नहीं रहा है, उन्हें तवज्जो देना बीजेपी की अहम चुनावी रणनीति रही है. बिहार में पार्टी ने जिन दो नेताओं को दो उप-मुख्यमंत्री बना रखा है, वे भी ओबीसी हैं. ऐसे में नीतीश कुमार की कोशिश जातिगत जनगणना कराकर बीजेपी के समीकरण को तोड़ने और ओबीसी जातियों को एक बड़ा सियासी संदेश देने का है. 

बिहार में ओबीसी वोटर निर्णायक भूमिका में है
बिहार की सियासत लंबे समय से ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बीजेपी से लेकर आरजेडी और जेडीयू बिहार में ओबीसी को केंद्र में रखकर अपनी सियासत कर रही हैं. ऐसे में जातिगत जनगणना की डिमांड ओबीसी समुदाय के बीच से उठ रही है. अन्य पिछड़ी जातियों को लग रहा है कि उनकी आबादी का दायरा बड़ा है. ऐसे में अगर जातिगत जनगणना होती है तो आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा टूट सकती है और उसका लाभ ओबीसी को मिलेगा. ऐसे में जातीय जनगणना की मांग को नीतीश कुमार कैसे नजर अंदाज कर सकते हैं. बिहार के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी भले केंद्रीय स्तर पर जातीय जनगणना का विरोध करती रही हो, लेकिन बिहार में वो समर्थन में खड़ी हुई है. 

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जेडीयू की सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने की कवायद
नीतीश कुमार अपने और अपनी पार्टी के भविष्य के लिए एक नए राजनीतिक आधार की रचना करने में जुटे हैं, क्योंकि अब वो समय नहीं है जब नीतीश कुमार की मर्जी के बिना जेडीयू में पत्ता भी नहीं हिलता था. बिहार में जेडीयू अब तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है. विधानसभा चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा को दोबारा साथ लिया है, जिसके तहत नीतीश एक बार फिर से  कुर्मी, कोइरी और अन्य पिछड़ा वर्ग के गठजोड़ बनाने की दांव चला है. इस तरह वो अपनी सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत कर रहे हैं. बिहार में ओबीसी-ईबीसी के नेतृत्व के लिए राम विलास पासवान के जाने से जो जगह खाली हुई है, वो भी नीतीश भरना चाहते हैं. 

क्या 2024 पर है नीतीश कुमार की नजर
दो साल के बाद लोकसभा चुनाव है, जिस पर नीतीश कुमार की नजर है. मुख्यमंत्री बनने के बाद ही वो सक्रिय हैं और बिहार में दौरा भी इन दिनों खूब कर रहे हैं. नीतीश कुमार की इस सक्रियता में ये संकेत मिल रहे हैं कि उनकी नज़र साल 2024 में होने वाले आम चुनावों पर है. ऐसे में उन्हें मालूम है कि अगर अपने सियासी आधार को बनाए रखना है तो उसके लिए सक्रिय रहना होगा. इस तरह जातीय जनगणना पर स्टैंड लेकर वह बीजेपी को भी ये संदेश देना चाहते हैं कि बिहार में मोदी उनके बॉस नहीं हैं. बिहार में मोदी जो चाहेंगे वह नहीं होगा, बल्कि वह जो चाहेंगे वो होगा. 

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जातीय जनगणना पर सभी दलों को एकजुट करेंगे
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि हमलोग शुरू से ही जाति आधारित जनगणना कराना चाहते हैं. इस बार सभी पार्टियों की बैठक करके और निर्णय लेकर कैबिनेट के माध्यम से इसको स्वीकृत किया जाएगा. इसके बाद राज्य स्तर पर जातीय जनगणना कराने का काम शुरू कर दिया जाएगा. यही इसका तरीका है. इसके लिए बैठक में सबकी राय ली जायेगी कि कैसे और बेहतर ढंग से जातीय जनगणना बिहार में करायी जाए. सरकार ने भी इसके लिये पूरी तैयारी की है, लेकिन सबकी राय लेने के बाद ही कैबिनेट में इसका प्रस्ताव लाया जाएगा.य फिर इस पर काम शुरू किया जाएगा. 
 

 

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