बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं. बिहार सरकार ने आंकड़े जारी कर ये बता दिया है कि सामान्य, ओबीसी, एमबीसी के साथ ही एससी-एसटी की सूबे की आबादी में हिस्सेदारी कितनी है? बिहार सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक सूबे की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक है जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी करीब 63 फीसदी है.
बिहार में सवर्ण 15.52, अनुसूचित जाति 19 और अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 1.68 फीसदी है. जातियों की बात करें तो यादवों की आबादी 14 फीसदी, ब्राह्मण 3.66 और राजपूत आबादी 3.45 फीसदी है. भूमिहार 2.86 फीसदी है. इन सबके बीच जो सबसे बड़ा कंफ्यूजन है, वो ओबीसी आबादी को लेकर है.
आंकड़ों के मुताबिक 63 फीसदी ओबीसी में बीसी यानी पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 27 फीसदी ही है. अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी एमबीसी की हिस्सेदारी 36 फीसदी है. अब सबसे अधिक कंफ्यूजन इसे लेकर ही है कि ये बीसी और एमबीसी क्या है? कौन सी जाति किस श्रेणी में आती है. दरअसल, बीसी और एमबीसी सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ी जातियों के बीच का विभाजन हैं.
बीसी में ये जातियांः कुशवाहा (कोईरी), जदुपतिया, जोगी, बनिया, यादव, रौतिया, शिवहरी, सोनार, सुकियार, कुर्मी, सैंथवार, गोस्वामी आदि.
एमबीसी में ये जातियांः केवट, खटिक, गुलगुलिया, कहार, कमकर, टिकुलहार, तुरहा, राजभर, मल्लाह, माली, बिंद, पाल, नाई, बढ़ई, तेली, चौरसिया, राजवंशी, हलवाई, पटवा आदि.
मुंगेरी लाल कमीशन से क्या है कनेक्शन
अब आइए जानते हैं कि जातिगत जनगणना के आंकड़ों का मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट से क्या कनेक्शन है? दरअसल, आदजादी के बाद बिहार में पिछड़ा वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को लेकर बहस तेज हो गई थी. देश की आजादी के 24 साल बाद साल 1971 में बिहार सरकार ने अलग-अलग जातियों की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का पता लगाने के लिए मुंगेरीलाल कमीशन का गठन किया.
साल 1971 में गठित मुंगेरी लाल कमीशन ने 1975 में अपनी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंप दी. मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने साल 1978 में बिहार विधानसभा में पेश किया था. ये वही दौर था जब पिछड़ी जातियों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कमीशन की मांग जोरो पर थी. साल 1979 में केंद्र सरकार ने मंडल कमीशन का गठन किया था लेकिन उससे भी एक साल पहले बिहार के मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट विधानसभा में भी पेश हो गई थी.
कमीशन ने 1976 में सौंपी थी रिपोर्ट
मुंगेरी लाल कमीशन ने फरवरी, 1976 में अपनी रिपोर्ट बिहार को सरकार को सौंप दी थी. मुंगेरी लाल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सामाजिक, शैक्षणिक और सरकारी नौकरी, व्यापार में पिछड़ेपन को आधार बनाते हुए पिछड़ी 128 जातियों की सूची तैयार की. कमीशन ने 128 जातियों को बीसी और एमबीसी में बांटा था. बीसी में 34 और एमबीसी में 94 जातियों को रखा गया था.
इस कमीशन ने बीसी के लिए नौकरियों में 26 फीसदी और शिक्षण संस्थानो में प्रवेश के लिए 24 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी. बाद में इस लिस्ट में और भी जातियां जुड़ीं और अब बीसी और एमबीसी का आंकड़ा 150 जातियों के करीब पहुंच चुका है. मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट को साल 1978 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने विधानसभा में पेश किया और इसे अपनाने का ऐलान किया.
बीसी-एमबीसी आरक्षण के लिए निकला ये फॉर्मूला
मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट को लेकर हंगामे, विरोध को दरकिनार कर बिहार सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए जो फॉर्मूला तैयार किया, उसमें बीसी और एमबीसी के लिए 2:3 का अनुपात निर्धारित किया गया. बीसी के लिए राज्य सरकार ने 8 और एमबीसी के लिए 12 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया.
साल 1979 में गठित मंडल कमीशन की सिफारिशें जब 1992 में लागू हुईं, वीपी सिंह की सरकार ने ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी. इधर बिहार विभाजन के बाद जब झारखंड राज्य का गठन हुआ, सूबे में आरक्षण का फॉर्मूला भी बदला. एससी-एसटी को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिए जाने के बाद ओबीसी और एमबीसी में 2:3 के अनुपात में आरक्षण जारी रहा.