नीतीश कुमार ने सोमवार को सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनके साथ दो डिप्टी सीएम भी होंगे. लेकिन नीतीश कुमार के सामने इस बार बड़ी चुनौतियां हैं. नीतीश के सामने चुनौतियां इसलिए ज्यादा हैं क्योंकि इस बार बीजेपी उनसे ज्यादा मजबूत है. बीजेपी के साथ उनका रिश्ता तो सीएम वाला ही है लेकिन शर्तें नई हैं. ये नई सरकार में भी दिख रहा है. लेकिन नीतीश कुमार आज भी कितने ही कमज़ोर हों, वो कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं. 20 साल से बिहार की राजनीति में उनका दबदबा है. इतने उतार-चढ़ाव के बीच भी सीएम की कुर्सी पर आज भी वही हैं. उनके लिए चुनौतियां ज़रूर हैं, लेकिन उनके सियासी दांव पेच कई चुनौतियों को मात दे चुके हैं.
नीतीश जिधर जीत उधर!
20 साल पहले नीतीश कुमार पहली बार सीएम बने थे. लेकिन 7 दिन में ही कुर्सी चली गई थी. 7 दिन का सीएम कहकर उनका बहुत मज़ाक उड़ाया गया था. किसने सोचा था, वही 7 दिन के सीएम नीतीश कुमार नया रिकॉर्ड बना देंगे. किसने सोचा था कि नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के सीएम पद की शपथ लेंगे. नीतीश दो दशक से बिहार की राजनीति के चाणक्य हैं. वो जिधर होते हैं, बिहार में जीत उसी की होती है. इस बार के चुनाव में 15 साल की नाराज़गी के बावजूद सीएम की कुर्सी पर अगर नीतीश कुमार बैठे हैं तो ये मामूली बात नहीं है.
नीतीश के नाम रिकॉर्ड बनाने का मौका
नीतीश कुमार अगर पांच साल सरकार चला लेंगे और सीएम बने रहेंगे तो वो बिहार में सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड तोड़ देंगे. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा 17 साल 52 दिन मुख्यमंत्री थे. नीतीश कुमार अब तक 14 साल 82 दिन बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. नीतीश कुमार का 20 साल से बिहार में दबदबा है. लेकिन ये दबदबा ऐसे ही नहीं है.
नीतीश कुमार उस दौर के नेता हैं, जिस दौर में बिहार में लालू यादव और रामविलास पासवान जैसे नेता निकले. लेकिन लालू और पासवान जैसी जातीय ताकत ना नीतीश के साथ थी, ना उन्हें शुरुआत में लालू और पासवान जैसी सफलता मिली. लगातार तीन हार के बाद पहला चुनाव नीतीश कुमार ने 1985 में जीता. 1989 में पहली बार वो लोकसभा पहुंचे. 1990 से उन्होंने बिहार में लालू यादव का उदय देखा.
लालू की राजनीति के बीच 15 साल वो बिहार की राजनीति में जगह बनाने की कोशिश करते रहे. 2005 में जाकर उन्हें सफलता मिली, जब वो पहली बार पूरे पांच साल के सीएम बने. 2010 में इसी सफलता को अपने पार्टनर बीजेपी के साथ रिपीट किया. और फिर 10 महीने छोड़कर अगले 10 साल बिहार के सीएम रहे, फिर चाहे गठबंधन में उनके साथ कोई भी हो.
पूरे कैलकुलेशन के साथ चलते हैं चाल
नीतीश कुमार की एक एक चाल में राजनीति का पूरा कैलकुलेशन होता है. जिस बीजेपी के साथ आज उन्होंने सरकार बनाई, उसे उन्होंने नरेंद्र मोदी के नाम पर 2013 में छोड़ भी दिया था. जिस लालू राज का उन्होंने बिहार में अंत किया था, 2015 में उनके साथ जाने से भी नहीं हिचके. और जब दो साल में माहौल बदला देखा तो 2017 में फिर से पुराने साथी बीजेपी के साथ आ गए.
और अब इसी बीजेपी के साथ उन्होंने फिर से बिहार जीता और शपथ लेने के साथ चौथे कार्यकाल की शुरुआत की है. ये बात अलग है कि उनके साथ अब पहले वाली बीजेपी नहीं है. नए तेवर वाली बीजेपी के साथ उन्हें चलना है.
नए तेवर वाली बीजेपी से नीतीश कुमार को चुनौती ज़रूर मिलेगी, लेकिन नीतीश को राजनीति का मिस्टर कूल कहा जाता है. वो तालमेल बनाने के तरीके निकाल लेते हैं. बीजेपी में उनकी सुशील मोदी वाली कड़ी टूटी है. लेकिन नीतीश कुमार इस पर कुछ नहीं बोले. जेडीयू-बीजेपी के बीच सत्ता के बंटवारे पर बड़ी खटपट नहीं हुई. ये बदली हुई राजनीति में नई शर्तों पर नए तालमेल के संकेत हैं.