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बांस के सुप-दउरा की जगह पीतल के बरतन.. आस्था के महापर्व छठ के तौर-तरीकों में आ रहा बदलाव

बदलते वक्त के साथ छठ पूजा भी हाईटेक होती जा रही है. आधुनिक दौर में छठ पूजा में पीतल के सूप और दउरा की मांग बड़ी है. जिसकी वजह से बांस से बने सुप, दउरा कारोबार पर खासा असर पड़ा है.

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बांस से बने सूप और दउरा का धंधा हुआ मंदा
बांस से बने सूप और दउरा का धंधा हुआ मंदा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बांस से बने सूप और दउरा का धंधा हुआ मंदा
  • छठ में भी मांग नहीं बढ़ने से पुश्‍तैनी पेशे पर संकट

लोकआस्था का महापर्व छठ पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. बदलते वक्त के साथ छठ पूजा भी हाईटेक होती जा रही है. आधुनिक दौर में छठ पूजा में पीतल के सूप और दउरा की मांग बड़ी है. जिसकी वजह से बांस से बने सुप, दउरा कारोबारा पर खासा असर पड़ा है. छठ पर्व में बांस के सूप, डाला, दउरा, कोनिया का अलग ही महत्व होता है. लेकिन आधुनिक दौर में लोग अपनी जरुरत के हिसाब से पीतल, तांबा, स्टील का डाला और सुप उपयोग करने लगे है. 

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बांस से बने सूप और दउरा का धंधा हुआ मंदा

सुपौल में इसका असर बांस से सुप, डाला बनाने वाले मरीक जाति के कामगार की माली हालत में पड़ रहा है. इन लोगों का कहना है कि पहले उन्हें महापर्व छठ का बेसब्री से इंतजार रहता था. महीने भर पहले से ही परिवार के सभी लोग सूप और दौरा बनाने में जुट जाते थे. समय के साथ इसमें बदलाव होता गया अब लोग स्टील, पीतल, तांबे के बर्तनों को ज्यादा महत्व देने लगे. हालात ऐसे हो गए हैं कि नौबत भुखमरी तक पहुंच गई है. बांस के बने परंपरागत सामान की डिमांड कम होने के कारण मरीक जाति के लोग अब अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर मजदूरी करने पर मजबूर हैं. 

मरीक जाति के कामगार की माली हालत में पड़ा असर

बता दें, छठ पर्व पर भगवान भास्कर को अर्पित करने की सामग्री में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है सूप, जिसमें फल-सब्जियां और अनाज रखकर भगवान भास्कर को समर्पित किया जाता है. परंपरा के साथ बांस के बने सूप की मौजूदगी पवित्रता का संदेश देती है. 

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धार्मिक अनुष्ठानों में बांस से बनी अन्य सामग्री का इस्तेमाल कम हो रहा है

छठ और अन्य पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों में भी लोग परंपरागत सूप व बांस से बनी अन्य सामग्री का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. आम दिनों में लोग प्लास्टिक के अलावा अन्य धातु की बने सामग्रियों का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं. 

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