लोक जनशक्ति पार्टी दो गुटों में बंट गई है. पशुपति पारस और सांसदों की बगावत के बाद चिराग पासवान बैकफुट पर आ गए हैं और वर्चस्व की जंग लड़ रहे हैं. सियासी संकट में घिरे चिराग ने कहा कि परिवार ने मेरी पीठ में छुरा घोंपा है तो बीजेपी ने मंझधार में छोड़ दिया. ऐसे में चिराग ने बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को याद दिलाया कि बिहार में जब नीतीश कुमार ने उनका साथ छोड़ दिया था तब उनकी पार्टी एलजेपी मजबूती के साथ एनडीए के साथ खड़ी थी.
लोकसभा सांसद चिराग पासवान ने द हिंदू को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि बीजेपी ने लगता है कि मेरा साथ छोड़ दिया है, क्योंकि बीजेपी के किसी भी नेता ने मुझसे कोई संपर्क नहीं किया है. यह हमारे लिए दुख की बात है, क्योंकि मेरे पिता ने पूरे दिल से बीजेपी और प्रधानमंत्री का समर्थन किया था. राम मंदिर, सीएए से लेकर अनुच्छेद 370 हटाने और तीन तलाक के मुद्दे पर हम सरकार के साथ थे जबकि जेडीयू इन सभी मुद्दों पर उनके साथ नही थी. चिराग ने कहा कि संकट की इस घड़ी में जब मुझे उनकी (बीजेपी) जरूरत थी और मुझे उम्मीद थी कि वे कम से कम मेरा साथ देंगे, लेकिन किसी ने कोई संपर्क नहीं किया.
चिराग पासवान ने बीजेपी को याद दिलाया कि इस बात को नहीं भूला जाना चाहिए कि हमने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम घोषित किए जाने के बाद भी उनसे हाथ मिलाया था जबकि उनके पुराने साथी नीतीश कुमार ने उन्हें छोड़ दिया था. ऐसे में हमारे पिता और हमारे पासवान वोटर्स ही थे जिन्होंने उनका साथ दिया था. इसके बाद भी बीजेपी नेताओं ने हमें इस संकट की घड़ी में अकेला छोड़ दिया.
पशुपति पारस को एलजेपी संसदीय दल का नेता चुने जाने को लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने जिस तरह तुरंत सहमति दी है, उसे लेकर चिराग पासवान ने शनिवार को स्पीकर से मुलाकत की थी. उन्होंने कहा कि स्पीकर से मैंने कहा था कि यह निर्णय लेने से पहले उन्हें कम से कम मुझसे बात करनी चाहिए थी. यहां तक कि संसद की नियम पुस्तिका भी इसे बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, कि संसदीय दल के नेता को पार्टी द्वारा तय किया जाना है, सदस्यों द्वारा नहीं. साथ ही चिराग ने कहा कि इस बात पर भरोसा करना बेहद मुश्किल है कि एलजेपी में हुई इस बगावत का बीजेपी के बड़े नेताओं को पता नहीं रहा होगा.
चाचा पशुपति पारस की बगावत के बाद एलजेपी में अकेले पड़े चिराग पासवान कहते हैं कि मेरे ही परिवार के सदस्यों ने मुझे छोड़ दिया तो मैं किसी को कैसे दोष दूं? उन्होंने मेरी पीठ में मेरे चाचा (पशुपति कुमार पारस), मेरे भाई (प्रिंस राज) छुरा घोंपा है. साथ ही चिराग ने एलजेपी की टूट के पीछे जेडीयू को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि नीतीश कुमार हमेशा से ही दलित नेतृत्व को बांटने का काम किया है. वो अभी तक मेरे पिता के पीछे थे और अब मेरे विरुद्ध हैं. दलितों और महादलितों को विभाजित किया, जिससे अनुसूचित जातियों में एक उप-विभाजन हुआ. नीतीश कुमार दलित समाज को मजबूत होते नहीं देखना चाहते हैं.
बिहार में अकेले चुनाव लड़ने के सवाल पर चिराग ने कहा कि राज्य में जिस तरह से अकेले चुनाव लड़ने से हमें समर्थन मिला है, उससे हम खुश हैं. बिहार में हर कोई नीतीश कुमार का विकल्प चाहता था और चुनाव में हमें 6 फीसदी वोट मिले हैं. एलजेपी को गठबंधन में केवल 15 सीटों की पेशकश की गई थी. अगर मैं इसके लिए राजी हो जाता, तो अगले चुनाव के समय तक एलजेपी के पास एक ही रास्ता बचता कि वह किसी क्षेत्रीय या राष्ट्रीय पार्टी में विलय हो जाती. इसके अलावा आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ आगे नहीं बढ़ सकते जो आपकी विचारधारा का सम्मान नहीं करता है. नीतीश कुमार किसी अन्य सहयोगी को जगह दिए बिना अपना एजेंडा तय करना चाहते हैं जबकि गठबंधन सरकारें न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर चलती हैं.