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मेरे पापा को ICU बेड मिल जाता तो उनकी जान बच जाती, डराती है बिहार की हकीकत

श्याम सुंदर के बेटे कहते हैं कि पापा को 28 तारीख से ही भर्ती करवाने लेकर आए थे लेकिन ICU बेड नहीं मिल पा रहा था. इलाज के अभाव में उनकी जान चली गई. कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ग्रामीण इलाकों वाले बड़े राज्यों को अपनी चपेट में ले रही है.

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बिहार के कई अस्पातलों के हाल बेहाल (फोटो- आजतक)
बिहार के कई अस्पातलों के हाल बेहाल (फोटो- आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार में भी कोरोना से हाल बेहाल
  • तेजी से बिगड़ रही है गांव की सूरत
  • राज्य के अस्पतालों की हालत खराब

मेरे पापा को आईसीयू नहीं मिला. आईसीयू मिल जाता तो पापा की जान बच जाती. कल ऑक्सीजन 66 था आज घटकर 40 हो गया. मैं बार-बार नंबर लगाने जाता लेकिन पापा को ऑक्सीजन नहीं मिला. मेरे पापा की जान बच सकती थी. आंखों में आंसू, कलेजे में दर्द लेकर श्याम सुंदर शर्मा के दोनों बेटे अपने पापा के मृत शरीर को लेकर बिहार के भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के प्रांगण में बैठे, बार-बार यही कह रहे थे. 

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श्याम सुंदर के बेटे कहते हैं, 'पापा को 28 तारीख से ही भर्ती करवाने लेकर आए थे लेकिन ICU बेड नहीं मिल पा रहा था. इलाज के अभाव में उनकी जान चली गई. कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ग्रामीण इलाकों वाले बड़े राज्यों को अपनी चपेट में ले रही है. हालात भयानक हैं. बिहार के अलग-अलग अस्पतालों में चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था की तस्वीरें सामने लाने के लिए आजतक बिहार के भागलपुर जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल पहुंचा, जहां अस्पताल ही बीमारियों का केंद्र बनने वाला है.

परमान अली अपने बड़े भाई को इलाज के लिए एंबुलेंस में अस्पताल लेकर आए, लेकिन कुछ ही देर के भीतर अब अपने भाई के शव को उसी एंबुलेंस में लेकर जा रहे हैं. कागजी कार्रवाई में खिड़की दर खिड़की भागने और समय पर ऑक्सीजन इलाज न मिलने के चलते उनके भाई की जान चली गई. 

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'ठीक से इलाज नहीं हो रहा यहां' 

परमान अली कहते हैं, "बड़े भाई साहब को लेकर आया था. उनका ऑक्सीजन लेवल काफी नीचे चला गया था. कागज बनवाने में और वार्ड तक ले जाने में इतना समय लोगों ने लगा दिया कि उन्हें नहीं बचा पाए. ठीक से इलाज नहीं हो रहा है यहां." 

परमान अली कहते हैं कि जब ऑक्सीजन लेकर उन्हें वार्ड में ले जाया गया तब अस्पताल का स्टाफ नहीं जानता था कि ऑक्सीजन कैसे लगाएं और वह उन्हीं से मदद मांग रहा था. श्याम सुंदर और परमान अली जैसे न जाने कितने इस अस्पताल में बदहाली का शिकार बन चुके हैं.

राजकुमार सिंह अस्पताल के वार्ड में भर्ती हैं और उनकी पत्नी और पत्नी के भाई, बाहर बेचैन हैं. क्योंकि आरोप है कि उनके बहनोई को सही इलाज ही नहीं मिल रहा है. राजकुमार सिंह के रिश्तेदार का कहना है, "मेरे बहनोई अंदर भर्ती हैं लेकिन 25 घंटे से कोई डॉक्टर देखने ही नहीं आया वह तड़प रहे हैं. लेकिन कंट्रोल रूम से लेकर किसी भी खिड़की पर कोई सुनवाई नहीं है और अब उनको आईसीयू में ट्रांसफर करवाया गया है." 

'कोरोना मरीज के साथ सोने के मजबूर'

कोविड वार्ड में मरीजों के साथ ही उनके परिवार के सदस्यों को भी रहना पड़ता है. राजेंद्र कुमार कहते हैं, "कोविड के बावजूद भी हमें अपने मरीज के साथ रहना पड़ता है. ऑक्सीजन के अलावा अस्पताल की ओर से और कोई व्यवस्था नहीं की गई है. ना तो कोई देखने ही आता है. जब कोई देखेगा ही नहीं हमारे मरीज को तो उसे मरता हुआ नहीं छोड़ सकते उसके साथ ही सोना पड़ता है."

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यहां संक्रमित मरीजों के संपर्क में आने वाले परिवार वालों को टेस्टिंग करवाना तो बहुत बड़ी बात है. राजकुमार सिंह की पत्नी कहती है कि टेस्ट करवाने के लिए न जाने कहां-कहां चक्कर लगाए लेकिन कोई सुनवाई नहीं है मैं गर्भवती हूं ऐसे में करूं तो क्या करूं.

सरिता देवी के साथ तो लापरवाही की हद हो गई. उनके पति अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन कागज का पता नहीं. पति की कोविड रिपोर्ट नेगेटिव बताई गई लेकिन उन्हें संक्रमित मरीजों के साथ रखा गया है. और तो और सरिता देवी का कहना है कि फोन पर उन्हें मैसेज तक दे दिया गया कि अपने पति को यहां से ले जाइए, इसके बावजूद उन्हें डिस्चार्ज नहीं कर रहे. 

'मारने की कोशिश हो रही'

सरिता देवी कहती है कि यहां इलाज नहीं हो रहा है बल्कि मारने की कोशिश हो रही है. आजतक से सरिता देवी ने कहा, "मेरे पति की हालत खराब हो गई थी और उनका ऑक्सीजन स्तर गिरकर 35 हो गया था. तब हमने उन्हें 30 तारीख को भर्ती कराया. कोई दवा नहीं दी गई, सिर्फ ऑक्सीजन दिया गया और अस्पताल वाले कहते हैं कि ऑक्सीजन तो दिया जा रहा है, बड़ी बात है. जानबूझकर उनकी जान ले रहे हैं." 

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सरिता देवी को उनके पति के इलाज के कागज के लिए दरबदर चक्कर लगाने पड़ रहे हैं इसीलिए आजतक ने नर्सिंग रूम में जाकर उनके बारे में जानकारी हासिल करनी चाही. नर्स ने कहा कभी इधर जाइए कभी उधर जाइए लेकिन किसी को पता नहीं था कि सरिता देवी के पति के कागज कहां हैं या उनका इलाज कैसे होगा?

प्रत्येक मिनट पर मरीज स्ट्रेचर पर आते दिखाई देंगे. कई ऐसे भी हैं जिन्हें अपनों के लिए बेड नहीं मिला तो जमीन पर लिटा कर ही इलाज हो रहा है. स्वरूप कुमार के पिता का ऑक्सीजन लेवल डाउन हो गया है, लेकिन उन्हें बेड ही नहीं मिल पाया. इसलिए अस्पताल के एक कमरे के कोने में जमीन पर ही उन्हें लेटा दिया गया है. अब वह इंतजार कर रहे हैं कि कोई डॉक्टर आए एक बार उन्हें देखें तो सही से दवा शुरू हो. 

स्वरूप कहते हैं, "पिताजी को लेकर के आए हैं काफी टाइम हो गया लेकिन कोई देखने ही नहीं आ रहा है. बेड नहीं मिला है तो वहां जमीन पर ही उनको लिटा कर इलाज किया जा रहा है.'

हालांकि हेल्थ मैनेजर बृजेश सिंह कहते हैं कि ना तो ऑक्सीजन की किल्लत है ना दवाइयों की किल्लत है. अस्पताल में नर्स और डॉक्टर के स्टाफ में भी कोई कमी नहीं है और सब कुछ बहुत बढ़िया है. 

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बिहार के सरकारी अस्पतालों में अगर कोई कदम रख दे तो उसे यह समझ में आ जाएगा कि यहां लापरवाही संक्रमण से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा है. महामारी बड़ी है, संक्रमित मरीजों की संख्या कहीं ज्यादा है. लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या पर कभी सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया. अब ऐसी त्रासदी आई है जिसके लिए कहीं से कोई तैयारी दिखाई नहीं देती. क्या होगा अगर बिहार जैसे राज्यों में त्रासदी की ये अभी सिर्फ शुरुआत हो?

 

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