मुजफ्फपुर की एक घटना से एक बार बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली है. एक गरीब आदमी सुरेश मंडल को पत्नी का शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल सका. इसकी वजह से चादर में लपेट कर अपने कंधे पर अस्पताल से शव लेकर पति को पैदल निकलना पड़ा.
मामला मीडिया में आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जांच के आदेश दिए. बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था के सुधार के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन यह उदाहरण उस व्यवस्था की पोल खोलता है. खैर जहां के स्वास्थ्य मंत्री विधानसभा में प्रश्न का जवाब देने के लिए उपस्थित नही होते, वहां क्या उम्मीद की जा सकती है. कुछ महीने पहले ओडिशा में इसी तरह के मामले में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे.
सुरेश मंडल की पत्नी श्यामा देवी पिछले 18 फरवरी से मुजफ्फपुर के सदर अस्पताल में भर्ती थीं. इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. जब शव ले जाने की बारी आई तो एंबुलेंस नही मिला सका. सुरेश मंडल ने अपनी पत्नी के इलाज में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी थी, लेकिन अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया. यहां तक कि शव को घर तक ले जाने के पैसे भी उसके पास नही थे.
ऐसे में वह अस्पताल के चक्कर काटता रहा, अधिकारियों और नर्स से मिन्नतें करता रहा. डूयूटी पर तैनात नर्स से जब उसने अपनी परेशानी बताई तो उसने कहा कि 1099 पर फोन करो और दरवाजा बंद कर दिया. उसने 1099 पर फोन किया तो किसी ने फोन ही नही उठाया. काफी मिन्नतें करने के बाद आउटसोर्स स्टाफ राजेश कुमार ने उसे एंबुलेंस दिलाने का भरोसा दिलाया. दो घंटे इंतजार के बाद भी एंबुलेंस नही मिला.
जेब में पैसे नही थे, सब्र का बांध टूट रहा था, ऐसे में सुरेश क्या करता? उसने अपनी पत्नी को चादर में लपेट कर कंधे पर रखा और निकल पड़ा अपने गांव की तरफ. मामला जब मीडिया में आया तो मुजफ्फपुर के सिविल सर्जन ने मामले की जांच कर कार्रवाई करने का भरोसा दिया, लेकिन जांच और कार्रवाई वह कर भी क्या सकती है, जबकि पूरा का पूरा सिस्टम ही फेल है.