
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होते ही सासाराम स्थित मां ताराचंडी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. कोरोना महामारी का श्रद्धालुओं की संख्या पर कोई खास असर देखने के लिए नहीं मिल रहा है. इस शक्तिपीठ की मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है. (इनपुट : मनोज कुमार सिंह )
यहां स्थित है ये शक्तिपीठ
बिहार में रोहतास जिले के सासाराम से महज छह किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पर्वत की कैमूर श्रृंखला की गोद में मां ताराचंडी का मंदिर है. इस मंदिर के आस-पास पहाड़, झरने एवं अन्य जल स्रोत हैं. यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे, तब संपूर्ण सृष्टि भयभीत हो गई थी.
उस दौरान देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था. जहां-जहां सती के शरीर का खंड (टुकड़े) गिरे उसे शक्तिपीठ माना गया. सासाराम का ताराचंडी मंदिर भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है. कहा जाता है कि माता सती की तीसरी आंख इसी जगह गिरी थी, जिसे तारा के नाम से जाना जाता था और असुर चंड का वध करने के बाद ताराचंडी के नाम से विख्यात हुईं.
उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़
कोरोना जैसी महामारी के समय में भी श्रद्धालुओं की संख्या पर कोई खास प्रभाव नहीं दिख रहा है.
प्रतिदिन माता के दरबार में बड़ी संख्या में भक्त दूर दूर से आते हैं. यहां माता के नेत्ररूप की पूजा होती है. इस स्थान को मनोकामना सिद्धि देवी भी कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि सच्चे हृदय से जो भी मांगा जाता है, मां वो हर मुराद पूरी कर देती हैं.
भगवान परशुराम ने की थी आराधना
मां भगवती के तीन नेत्र माने जाते हैं. बायां नेत्र बंगाल के रामपुर में गिरा, जिसे तारापीठ कहते हैं. दायां नेत्र सोनभद्र नदी में गिरा, जिसे सोनभद्रा मां कहते हैं और तीसरा नेत्र सासाराम से 6 किलोमीटर दूरी कैमूर पहाड़ी पर गिरा, जिसे मां ताराचंडी कहते हैं.
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कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने राजा सहस्त्रबाहु को पराजित करने के लिए मां ताराचंडी की आराधना की थी. दुर्गा सप्तशती के अनुसार महिषासुर के दो सेनापति चंड और मुंड में से चंड का वध इसी जगह मां के हाथों से हुआ था, जिसके बाद देवी मां ताराचंडी के नाम से विख्यात हुईं.
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