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विधान परिषद चुनाव को लेकर बिहार में फिर आरजेडी, कांग्रेस के बीच नूरा-कुश्ती

उपचुनाव के दौरान कांग्रेस को कुशेश्वर स्थान सीट न मिलने पर गठबंधन तोड़ने का ऐलान भी कर दिया था. चुनाव परिणाम आने पर महागठबंधन के दोनों ही सहयोगियों को नुकसान उठाना पड़ा था.

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कांग्रेस-आरजेडी में फिर दरार
कांग्रेस-आरजेडी में फिर दरार
स्टोरी हाइलाइट्स
  • विधान परिषद चुनाव को लेकर आरजेडी-कांग्रेस में ठनी
  • आरजेडी को लालू यादव का वादा याद दिला रही कांग्रेस

बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव होने वाला है. जाहिर है सियासी पार्टियों के बीच इन सीटों के लिए तालमेल होना काफी जरूरी है. एनडीए यानी बीजेपी और जेडीयू के बाद बिहार में दो पार्टियां कांग्रेस और आरजेडी कई मुद्दों पर एक साथ चलने का दावा करती हैं. 

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इस दावे में कितना दम है, ये कभी दिखाई नहीं देता है. कई राजनीतिक मसलों पर दोनों पार्टियों के सुर अलग हो जाते हैं, लेकिन बात यदि पार्टी के स्वार्थ की हो, तो दोनों पार्टियों की खींचतान सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन जाती है. 

ताजा मामला बिहार विधान परिषद की 24 सीटों को लेकर हैं. जहां कांग्रेस और आरजेड़ी में सीटों को लेकर खींचतान शुरू हो गई है. कांग्रेस 7 सीटों पर अपना दावा ठोक रही है. आरजेड़ी चार सीट से ज्यादा देने के मूड में नहीं है. स्थिति वैसी ही होती जा रही है, जैसी हाल में बिहार विधानसभा के उपचुनाव में देखी गई थी.

आरजेडी दिला रही है पूर्व समझौतों की याद

विधान परिषद के चुनाव को लेकर आरजेडी मुखर है. कांग्रेस को सीधे-सीधे 2015 के सियासी समझौते को याद दिला रही है. आरजेडी ने मात्र चार सीटों की पेशकश कर दी है. वहीं कांग्रेस नाराज है. कारण है कि कांग्रेस के दावे वाले सीटों पर आरजेड़ी ने पहले ही अपने उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी शुरू कर दी है. 

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इतना ही नहीं आरजेडी की ओर से उन उम्मीदवारों को सियासी लॉलीपॉप भी थमा दिया गया है. हालांकि आरजेड़ी ने अभी तक उम्मीदवारों की असली सूची जारी नहीं की है. लेकिन अंदरखाने से मिल रही सूचना के बाद से कांग्रेस खेमे में तिलमिलाहट देखने को मिल रही है.

क्या है 2015 वाला आरजेड़ी-कांग्रेस समझौता

दरअसल 2015 के विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस ने पूर्णिया, सहरसा और कटिहार के साथ पश्चिम चंपारण जैसी सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. इस बार कांग्रेस सहरसा से अपनी दावेदारी वापस ले चुकी है. कारण ये है कि कांग्रेस इस बार दरभंगा, बेगूसराय, सीतामढ़ी और भागलपुर जैसी नई सीटें मांग रही है. 

कांग्रेस इन सीटों को हर हाल में अपने पाले में करना चाह रही है. लेकिन आरजेड़ी-कांग्रेस के बीच भाकपा की दावेदारी से इनकार नहीं किया जा सकता, जिसकी दावेदारी हमेशा भागलपुर सीट पर रही है.

लालू का वादा याद दिला रही है कांग्रेस

कांग्रेस आरजेड़ी के नये नेतृत्व यानी तेजस्वी यादव को लालू यादव के उस बयान की याद दिला रही है, जिसमें लालू ने कहा था कि कांग्रेस को विधान परिषद की सात सीटें दी जा सकती हैं. इसी आधार पर कांग्रेस ने मन बना लिया और अपनी चाहत वाली सीटों की मंशा जाहिर कर दी. 

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इतना ही नहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात भी की थी और बातचीत में 7 सीटों वाली दावेदारी की याद दिलाई. मदन मोहन झा इस उम्मीद में भी हैं कि आरजेडी इन सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी. कांग्रेस के अंदर से खबर आ रही है कि पार्टी इस बार समझौता नहीं होने की स्थिति में सात से अधिक सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर देगी.

कांग्रेस की नाराजगी की मूल वजह

कांग्रेस की नाराजगी की वजह से ये भी है कि जिस सीट के लिए कांग्रेस पूरी तरह तैयार है, वो सीट पश्चिम चंपारण की है. लेकिन आरजेड़ी ने बिना सलाह के वहां से अपना उम्मीदवार तय कर दिया है. इतना ही नहीं बेगूसराय में भी आरजेडी के उम्मीदवार बकायदा प्रचार में जुट गए हैं. 

आरजेडी की ओर से बार-बार कांग्रेस को सियासी औकात दिखाया जा रहा है. कांग्रेस को मात्र 4 सीटें देने की बात कही जा रही है. कांग्रेस में इस बात को लेकर नाराजगी है और बिहार कांग्रेस इस बात से आलाकमान को अवगत कराने की बात कह रहा है.

आरजेडी का अपना तर्क 

उधर, सियासी चर्चाओं की मानें, तो  आरजेडी की अपनी दलील है. आरजेडी का मानना है कि कांग्रेस बिहार में आरजेडी के मुकाबले कहीं खड़ी नहीं है. आरजेडी की मानें, तो कांग्रेस के पास सक्षम उम्मीदवार नहीं है. आरजेडी का कहना है कि कांग्रेस यदि सक्षम उम्मीदवारों की सूची देती है, तो वो इस पर विचार करेंगे कि सीटों की संख्या बढ़ाई जाए की नहीं. 

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अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस क्या बिहार में आरजेडी की पिछलग्गू बनकर ही रह जाएगी या अपना कोई स्टैंड लेगी. यदि दोनों पार्टियों के बीच बातचीत से मसला नहीं सुलझता है, तो स्थिति उपचुनाव वाली भी हो सकती है.

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