scorecardresearch
 

केदारनाथ ना बन जाए पटना का किनारा

करीब डेढ़ दशक पहले जब पटना में गंगा ने अपना रास्ता बदला तो कई लोगों को इसी बहाने अपनी किस्मत बदलने का मौका मिल गया. जहां से 15 साल पहले गंगा कलकल करती बहती थी, उसी गंगा के गोद में भू-माफियां ने देखते-देखत बड़े अपार्टमेंट्स खड़े कर दिए.

Advertisement
X

करीब डेढ़ दशक पहले जब पटना में गंगा ने अपना रास्ता बदला तो कई लोगों को इसी बहाने अपनी किस्मत बदलने का मौका मिल गया. जहां से 15 साल पहले गंगा कलकल करती बहती थी, उसी गंगा के गोद में भू-माफियां ने देखते-देखत बड़े अपार्टमेंट्स खड़े कर दिए.

Advertisement

केदारनाथ हादसे के बाद सरकार की नींद भी टूटी लेकिन तबतक तो गंगा की गोद में कंक्रीट का जंगल बसने लगा था पर इस साल जब गंगा अपने पुराने रौ मे लौटी तो पटनावासियों के होश उड़ गए. आज गंगा का पानी इन बन रहे अपार्टमेन्ट्स को न सिर्फ छू चुका है बल्कि कई अपार्टमेंन्टस तो गंगा के बीचोबीच नजर आने लगे हैं.

पटना का दीघा-कुर्जी और राजापुर का ये वो इलाका है जहां दर्जनों की तादात में गंगा किनारे बने घाट अब सिर्फ गंगा की यादे बनकर रह गए है. इन घाटों से कई सौ मीटर आगे गंगा की गोद में अब आपको रिहायशी आशियाने नजर आएगे लेकिन भला हो गंगा मे आई बाढ़ का जिसने इस साल भू-माफियां और सरकारी मिली भगत की कलई खोलकर रख दी.

जहाँ कुछ साल पहले तक गंगा अपने वेग में बहा करती थी वहां आज बहुमंजिला इमारतें बन चुकी हैं. बिल्कुल गंगा की गोद में बने इन बहुमंजिली इमारतों का आलम ये है वहां जाने के लिए भी नाव से पहुंचना होगा. पिछले कुछ सालों में यहां देखते देखते बहुमंजिला इमारतों की बाढ़ सी आ गई है हालांकि अबतक किसी इमारत में लोगों का बसेरा नहीं बना है पर आने वाले वक्त में ये गंगा की गोद में बसने वाले शहर की तस्वीर हो जाएगी. गंगा के किनारे बसे लोगों की माने तो ये जमीन गंगा के किनार बसे गांववालों और मधुआरों की जमीन है जिस पर भू-माफियाओं ने अपनी बुरी नजर डाल रखी है.

Advertisement

'बिल्डिंग के बेसमेंट में पानी'
स्थानीय किसान और गंगा में मछली मारकर जीवन चलाने वाले सतेन्द्र का कहना है कि जो बिल्ड़िंग यहां बनी उसके बेसमेंट में काफी पानी है, इसमें जो रहेगा उसकी जिंदगी और मौत तो गंगाजी के हाथों मे होगी. ये मधुआरों की जमीनें है लेकिन जिधर देखिए चारों तरफ अपार्टमेंट बन रहा गंगा में, इसे आप गंगा की गोद ही समझिए,जब सूखता है तो यहां खेती होती हैं.

जबकि दूसरे किसान शिवम की माने तो गंगा में ये तीन चार साल से बन रहा है और ये किसानों की जमीन हैं जहां किसान खेती करते है. ये गंगा की गोद में जमीन है पर फिर भी सरकार ऑर्डर कैसे देता है, ये समझ में नहीं आता है. यहां काफी खतरा हो सकता है जब पानी सूखता है तो यहां काफी दलदल होता हम लोग इसमें धंस जाते हैं कैसे यहां अपार्टमेट बन रहा है समझ से परे है

बिल्डरों की सरकार से मिलीभगत
1975 में आई बाढ़ के बाद सरकार ने गंगा के किनारे एक बांध बनाया और बांध के बाहर के इलाके को फ्लड जोन घोषित कर दिया. ये इलाका पटना नगर निगम के अंदर भी नहीं आता लेकिन बिल्डरों ने इस सरकारी मिली भगत से अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया. पिछले कुछ सालों में इन जमीनों पर प्लान पास होने लगे और पीआरडीए ने नक्शा तक पास करना शुरू कर दिया लेकिन और देखते ही देखते यहां बहुमंजिला इमारतों की बाढ़ सी आ गई. लेकिन केदारनाथ हादसे के बाद न सिर्फ सरकार की नींद टूटी बल्कि अदालत ने भी यहाँ निर्माण पर रोक लगा दी.

Advertisement

अब वही बिल्डर सरकार को कोस रहे हैं कि आखिर सरकार ने उन्हें वहां इमारतों को बनाने की इजाजत क्यों दी. मेरीडियन कन्सट्रक्शन लिमिटेड के सीएमडी अबु दोजाना कहते हैं कि-हमें नहीं लगता है हमने कोई गलती की है, हमे नहीं लगता कि ये फ्लड जोन है, सरकारी दस्तावेज मे अगर ये फ्लड एरिया है तो सरकार ने हमें क्यों परमीशन दिया कि तुम बनाओ बिल्डिंग. सरकार वोटबैंक की राजनीति कर रही है.'

दरअसल सरकार तब जागी जब पटना हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इसे अवैध बताते हुए दो महीने पहले रोक लगा दी. दलील थी कि गंगा की गोद में रिहायशी इमारतें लोगों की जान पर बन सकती है. मगर इन बिल्डरों की दलील है कि सरकार अगर उन्हें इजाजत दे तो वो गंगा में बुर्ज खलीफा बना देंगे. उधर पटना के मेयर अफजल इमाम का दावा है कि पहले गलतियां हो गई लेकिन अब कार्यवाई कर रहे हैं.

गंगा के बीच में कंक्रीट का जंगल
कैसे बस रहा है गंगा के बीच में कंक्रीट का जंगल, ये कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. गंगा किनारे बसे लोगों की जमीनों को भू-माफियाओं और बिल्डरों ने खरीदना शुरू कर दिया. गंगा किनारे की जमीन खरीदकर ये भू-माफिया गंगा के भीतर तक जमीन खरीदते और अतिक्रमण करते चले गए.

Advertisement
Advertisement