बिहार में बिजली की कमी दूर करने और मछली उत्पादन में वृद्धि करने के लिए राज्य सरकार एक अनोखा तरीका अपनाने जा रही है. गांवों के बड़े-बड़े तालाबों में अब नीचे मछली पालन होगा और ऊपर बिजली तैयार की जाएगी.
इस संबंध में एक शोध कराया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि ऊपर बिजली उत्पादन से तालाब के पानी में मछली पालन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा. इसके बाद सरकार ने इस योजना पर अमल करने की ठान ली है.
सरकार का मानना है कि मछली पालन के लिए आदर्श तापमान 26 डिग्री से 32 डिग्री सेल्सियस है. बिहार में गर्मी के मौसम में कुछ दिनों को छोड़ दिया जाए तो आमतौर पर यहां की जलवायु मछली पालन के लिए पूरी तरह उपयुक्त है. यही स्थिति सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की भी है.
एक अनुमान के मुताबिक, यहां वर्ष भर में 80 दिन सूरज की रोशनी कम होती है, शेष दिन पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी मिलती है. इससे सौर ऊर्जा से बिजली पाना बहुत मुश्किल नहीं है. इस प्रयोग से सौर ऊर्जा से सस्ती और निर्बाध बिजली के साथ मछली भी मिलेगी. पशु एवं मत्स्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इसके लिए बिहार स्टेट पॉवर होल्डिंग कंपनी ने ऑनलाइन टेंडर निकाला है और जल्द ही यह योजना राज्य की सरजमीं पर देखने को मिलेगी.
अधिकारी ने बताया कि तालाब के ऊपर अलग किस्म के बड़े-बड़े सोलर प्लेट लगेंगे और नीचे पानी में मछली पालन होगा. इन सोलर प्लेटों पर सूरज की रोशनी पड़ेगी और बिजली का उत्पादन होगा. वर्तमान वित्त वर्ष में 200 से ज्यादा तालाब बनेंगे, जिसमें 250 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इससे न केवल लोगों को सस्ती बिजली मिलेगी, बल्कि उन्हें स्वरोजगार भी मिलेगा. यदि इन तालाबों में यह योजना सफल हो जाती है तो आने वाले दिनों में पुराने और जीर्ण-शीर्ण तालाबों में भी यह योजना लागू की जाएगी. मत्स्य निदेशालय ने कोलकाता के मत्स्य वैज्ञानिकों से इस संबंध में शोध भी कराया था, जिससे पता चला कि बिजली उत्पादन से मछलीपालन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि उत्पादन में वृद्धि होगी.
राज्य के पशु और मत्स्य संसाधन मंत्री गिरिराज सिंह ने बताया कि नीचे मछली और ऊपर बिजली का मॉडल अनोखा प्रयोग होगा. इससे जहां राज्य में बिजली की कमी दूर करने में मदद मिलेगी, वहीं सोलर प्लेट लगने से तालाब का तापमान भी मछली उत्पादन के लिए अनुकूल होगा. एक अनुमान के मुताबिक, पूरे बिहार में प्रतिदिन 44 टन मछली की खपत है, लेकिन राज्य में मछली का उत्पादन कम होने से यहां आंध्र प्रदेश से मछली आती है.
पटना के मत्स्य वैज्ञानिक डॉ. टुनटुन ने कहा कि राज्य में मछली की खपत अधिक है, लेकिन उत्पादन का लक्ष्य हासिल नहीं होने के कारण बाहर से मछलियां मंगवानी पड़ती है.