बिहार की राजधानी पटना स्थित आसरा शेल्टर होम मामले में आजतक के हाथ अहम दस्तावेज लगे हैं. इसमें खुलासा हुआ है कि मनीषा दयाल और चिरंतन कुमार ने बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग से आसरा शेल्टर होम चलाने का काम लिया था. इसके लिए नीतीश कुमार सरकार से इनको 76 लाख रुपये सालाना मिला करता था.
इसके लिए छह फरवरी 2018 को एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) तैयार किया गया, जिस पर आसरा शेल्टर होम और बिहार समाज कल्याण मंत्रालय ने दस्तखत किए. यह इकरारनामा 1000 रुपये के स्टांप पेपर पर किया गया.
इस MoU पर समाज कल्याण विभाग की ओर से डायरेक्टर ने दस्तखत किए, जबकि अनुमाया ह्यूमन रिसोर्सेज फाउंडेशन (आसरा शेल्टर होम को चलाने वाली एनजीओ) की ओर से सेक्रेटरी चिरंतन कुमार ने हस्ताक्षर किए. इस इकरारनामे से समाज कल्याण विभाग के सेक्रेटरी भी बचते नजर नहीं आ रहे हैं, क्योंकि डायरेक्टर उनके ही बदले MOU पर दस्तखत करते हैं.
50 महिलाओं के इलाज के लिए 1500 रुपये महीने वाला डॉक्टर
इस एमओयू के मुताबिक आसरा शेल्टर होम में 50 महिलाओं के लिए एक डॉक्टर रखना था, जिसको सिर्फ 1500 रुपये महीने मेहनताना देने का प्रावधान किया गया था. इसके अलावा इन महिलाओं की दवाइयों पर सिर्फ 500 रुपये महीने खर्च का प्रावधान रखा गया था. इस एमओयू में ऐसी कई बातें हैं, जिनसे पता चलता है कि घोटाले और गड़बड़ियों की शुरुआत शेल्टर होम के खुलने के साथ ही शुरू हो गई थीं.
इन गड़बड़ियों का खुलासा सिटी मजिस्ट्रेट की शुरुआती जांच में हुआ है, जो एफआईआर में दर्ज हैं. इस एफआईआर की कॉपी आजतक के पास है.
इस एफआईआर में सिटी मजिस्ट्रेट ने यह भी साफ लिखा कि आसरा शेल्टर होम में लड़कियों की मौत तय वक्त पर इलाज न मिलने से हुई. इन लड़कियों के इलाज में बड़ी लापरवाही बरती गई और इसकी वजह थी बिहार सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय से मिलने वाले पैसों की बंदरबांट.
1000 रुपये के स्टाम्प पेपर पर MoU
चिरंतन कुमार 1000 रुपये का स्टांप पेपर समाज कल्याण विभाग के पास लेकर गया था. विभाग से एनजीओ के काम का सौदा फाइनल होने के बाद उसने यह स्टाम्प छह फरवरी 2018 को अपने नाम खरीदा था. फिर इसी दिन सरकार के साथ एमओयू साइन हुआ. गौर करने वाली बात यह है कि इस एमओयू में अनुमाया ह्यूमन रिसोर्सेज फाउंडेशन के प्रेसिडेंट का जिक्र तो है, लेकिन अब तक इनकी पहचान लोगों के सामने नहीं आई है.
एनजीओ के प्रेसिडेंट के नाम पर क्यों डाला जा रहा पर्दा
यहां सवाल यह उठ रहा है कि आखिर मामले की जांच कर रही पटना पुलिस आसरा शेल्टर होम चलाने वाली एनजीओ के प्रेसिडेंट के नाम को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही है? मामले में कहीं ऐसा तो नहीं कि मनीषा दयाल और चिरंतन कुमार की एनजीओ के प्रेसिडेंट और गवर्निंग बॉडी के सदस्यों में बड़े और रसूखदार लोग शामिल हों. क्या पुलिस को इस बात का डर सता रहा है कि एनजीओ के प्रेसिडेंट का नाम सामने आने से मामले में शामिल बड़े-बड़े लोग बेनकाब हो जाएंगे.
आसरा शेल्टर होम चलाने के लिए मिलते थे 76 लाख रुपये हर साल
इस एमओयू में बहुत सारी बातों का जिक्र है. जहां तक आसरा शेल्टर होम चलाने के बदले भुगतान का सवाल है, तो दस्तावेजों से साफ है कि मनीषा दयाल और चिरंतन कुमार को साल में कुल 76 लाख रुपये मिलते थे.
दस्तावेजों के मुताबिक ये तय हुआ था कि आसरा शेल्टर होम में 50 लड़कियों या महिलाओं को रखा जाएगा. इसके अलावा शेल्टर होम में लड़कियों या महिलाओं की संख्या ज्यादा होने पर अधिक भुगतान का प्रावधान भी रखा गया था.
MoU से शेल्टर होम के खर्च का हुआ खुलासा
एमओयू से हर खर्च का पूरा हिसाब सामने आ गया है. आसरा शेल्टर होम में बुनियादी व्यवस्थाएं 50 लड़कियों या महिलाओं के लिए ही करनी थी. आसरा शेल्टर होम में उन महिलाओं या लड़कियों को रखा जाता था, जो मानसिक रूप से बीमार थीं या उनको परिवार ने छोड़ दिया था या फिर भटकती हुई मिली थीं.
एमओयू से यह भी साफ होता है कि इसके लिए सरकार की ओर से कब और कितना भुगतान किया जाएगा. दस्तावेज के मुताबिक समय-समय पर मनीषा दयाल और चिरंतन कुमार को भुगतान किया भी गया. किस चीज में कितना खर्च किया जाना है, इसका भी जिक्र दस्तावेज में है.