बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की चारा घोटाले के देवघर कोषागार से फर्जी तरीके से 90 लाख रुपये निकालने के मामले आरसी 64 ए/96 में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सीबीआई की विशेष अदालत में पेशी हुई. इस मामले में स्पेशल कोर्ट कल अपना फैसला सुनाएगाी.
मामले में लालू यादव और जगनाथ मिश्रा सहित 22 लोग आरोपी हैं. पहले इस कांड में कुल 34 आरोपी थे. इनमें से 2 आरोपियों को सरकारी गवाह बनाया गया है जबकि 10 लोगो की मौत हो चुकी है. गौरतलब है कि चाईबासा कोषागार से जुड़े करीब 38 करोड़ की अवैध निकासी के मामले अर्थात आरसी 20 ए/96 में सीबीआई कोर्ट ने सितम्बर 2013 में लालू यादव को पांच साल की सजा और 25 लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी.
पटना से रांची पहुंचे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के चेहरे से चिर-परिचित मुस्कान और बात-बात में ठिठोली और चुटीला अंदाज गायब दिखा. मामले का फैसला कल स्पेशल सीबीआई कोर्ट के जस्टिस शिवपाल सिंह सुना सकते हैं.
90 के दशक में चारा घोटाले का जिन्न बाहर आया था तो इसे एक बड़ा घोटाला माना गया था. 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले की कहानी 1994 से शुरू होती है. दरअसल केंद्र सरकार गरीब आदिवासियों को अपनी योजना के तहत गाय, भैंस, मुर्गी और बकरी पालन के लिए आर्थिक मदद मुहैया करा रही थी. इस दौरान मवेशी के चारे के लिए भी पैसे आते थे. लेकिन गरीबों के गुजर-बसर और पशुपालन में मदद के लिए केंद्र सरकार तरफ से आए पैसे का गबन कर लिया गया था.
बिहार की राजनीति पर दाग बन गया चारा घोटाला
बिहार की राजनीति पर इसका जोरदार असर पड़ा. घोटाला सामने आया तो जनता में इसकी जमकर भर्त्सना की गई. अविभाजित बिहार के इस सबसे बड़े घोटाले में नौकरशाह, नेता और बिजनेस से जुड़े कई बड़े नाम शामिल थे. मामले का खुलासा जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने किया जब जनवरी 1996 में अनियमितता के आरोपों की जांच के सिलसिले में पशुपालन विभाग के दफ्तरों और चाईबासा कोषागार पर छापा मारा गया. इस दौरान ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर फर्जी कंपनियों द्वारा कोषागारों से अवैध निकासी कर पैसे की हेराफेरी की गई है. अभी के झारखंड के चाईबासा, गोड्डा, दुमका, रांची और देवघर जैसे आदिवासी इलाकों में जमकर लूट हुई थी. मामले की जांच आगे बढ़ने पर इसकी आंच तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव तक पहुंच गई. विपक्ष ने पीआईएल दायर कर मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. तत्कालीन बिहार सरकार ने इसका विरोध किया यह कह कर किया था कि बिहार के जांच पदाधिकारी ही इस पूरे मामले की जांच करेंगे. जिसके बाद पहले यह मामला हाईकोर्ट फिर उसके बाद उच्चतम न्यायालय तक पंहुचा.
लालू के खिलाफ अन्य तीन मामलों में भी डे-टू-डे हो रही है सुनवाई
उच्चतम न्यायालय ने 11 मार्च 1996 में मामला अपने हाथो में ले लिया. 27 मार्च 1996 में चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी के मामले में पहली प्राथमिकी दर्ज की गई. 23 जून 1997 को इस मामले में लालू प्रसाद को आरोपी बनाया गया. दरअसल सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि लालू प्रसाद यादव को इस गड़बड़ी और घोटाले की पूरी जानकारी थी क्योंकि वे मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ वित्त मंत्री भी थे. 30 जुलाई 1997 को लालू प्रसाद ने सीबीआई कोर्ट में आत्म-समर्पण कर किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. 5 अप्रैल 2000 में अदालत ने आरोप तय किए, इस दौरान झारखण्ड का गठन हुआ जिसके बाद 5 अक्टूबर 2001 में उच्चतम न्यायालय ने मामले को झारखण्ड ट्रांसफर कर दिया. 17 सितम्बर 2013 में कोषागार मामले में बहस पूरी होने के बाद विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 30 सितम्बर 2013 में अदालत ने बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया. 3 अक्टूबर 2013 में सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया है. जिसके बाद लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल भेज दिया गया.